जैविक खेती को अपनायें स्वयं स्वस्थ रहे, मृदा को स्वस्थ बनायें

************बुन्देलखण्ड के किसान जैविक दहलन/तिलहन को अपनायें और आय को दोगुना बढ़ायें *************खेत पर मेड़ और मेड़ पर अण्डी का पेड़, यदि है तो कीट फसल को नुकसान नही पहुंचायेंगे

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झाँसी। मुख्य विकास अधिकारी शैलेष कुमार ने पं0दीनदयाल उपाध्याय सभागार में आयोजित नेशनल फ्रूड सिक्योरिटी मिशन-टीबीओ मिनीमिशन के तहत वृक्ष जनित तेल कार्यक्रम सेमीनार का विधिवत दीपप्रज्जवित करते हुये शुभारम्भ किया।
मुख्य विकास अधिकारी ने सेमीनार का शुभारम्भ करते हुये उपस्थित किसानों से आव्हान किया कि वैज्ञानिकों द्वारा जो जानकारी दी जा रही है उन्हें आत्मसात करते हुये खेती किसानी में अपनायें ताकि जो मेहनत की जा रही है, उसका अधिक लाभ मिले। उन्होने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और किसान की आय कृषि पर निर्भर है। अतः अब समय आ गया कि किसान खेती के साथ वृक्षजनित तेल पेड़ पर फोकस करें क्योंकि ऐसे वृक्ष बुन्देलखण्ड क्षेत्र में लम्बे समय तक जीवित रहते है और लगातार आय वृद्वि में सहायक होते है।
मुख्य विकास अधिकारी ने कहा कि नीम का पेड़ औषधीय गुणों से भरपूर है हमारे पूर्वज इसका बखूबी इस्तेमाल करते थे, परन्तु आज की आधुनिक खेती में इसका प्रयोग कमतर हो जाने से फसल व मृदा को नुकसान हो रहा है। उन्होने कहा कि हमें अब पुनः बिना रसायन उर्वरक के खेती को बढ़ावा देना होगा ताकि हमें फसल का वाजिब दाम मिले और मृदा का स्वास्थ्य भी बेहतर रहे। उन्होने कहा कि नीम बड़े काम का औषधीय वृक्ष है जिसका उपयोग टूथपेस्ट, क्रीम, दवाईयां, साबुन के साथ नीम कोटिंग यूरिया व कीटनाशक के रुप में बड़े स्तर पर इस्तेमाल कर रहे है। उन्होने कहा कि किसान नीम की पत्तियों, निमौली का कई प्रकार से प्रयोग में ला सकते है।

सेमीनार में मुख्य वक्ता के रुप में बोलते हुये मुख्य विकास अधिकारी शैलेष कुमार ने उपस्थित किसानों से कहा कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र में पानी की उपलब्धता कम है। पठारी क्षेत्र होने के कारण पानी ठहरता नही है। इस स्थिति में कम पानी वाली फसलों की ओर अधिक फोकस करना होगा, उन्होने कहा कि हमें अब जैविक खेती की ओर बढ़ना है ताकि जैविक उत्पाद के अच्छे दाम मिल सके। उन्होने बताया कि अब जैविक उत्पाद के लिये मार्केट उपलब्ध कराया जा रहा है, जिससे किसान की आय में बढ़ोत्तरी होगी और खेत की मिटटी भी पोषक तत्वों से भर जायेगी। वृक्षजनित तेल सेमीनार में वैज्ञानिक डॉ. पीके सोनी ने नीम व अण्डी के पेड़ को बेहद हितकारी व लाभकारी बताते हुये कहा कि यदि किसान अपने खेत की मेड़ पर अण्डी का पेड़ लगा ले तो इससे खेत सुरक्षित रहेगा तथा फसल भी कीटों से सुरक्षित रहेगी। इसके साथ ही अण्डी के तेल को बेच किसान अतिरिक्त लाभ ले सकता है। उन्होने बताया कि वैज्ञानिक शोध से यह स्पष्ट है चने के साथ अलसी की बुवाई की जाये तो चने में उक्टा नही लगता। अलसी की फसल में अतिवर्षा तथा ओलावृष्टि से भी नुकसान नही होता है। किसान अलसी खाने से 52 बीमारियों से बच सकता है। किसान अलसी बुवाई करें और लाभ कमायें। इसमें कम पानी का प्रयोग होता है तथा खाद नही डाली जाती है, इसकी खेती में सल्फर का प्रयोग होता है।
कार्यक्रम में केन्द्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान संस्थान के डॉ. हदयेश अनुरागी ने कहा कि भारत आज भी तेल के लिये दूसरे देशों पर निर्भर है और बहुत सारा तेल हर साल आयात करता है। तिलहन फसलों के अतिरिक्त वृक्षजनित तेल की आज बहुत ज्यादा जरुरत है, क्योकि इसमें 30 से 70 प्रतिशत तक तेल निकलता है। जो खाद्य और बिना खाद्य भी है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में परम्परागत पेड़ जैसे नीम, महुआ आदि पेड़ों तथा गैर परम्परागत पेड़ जैसे रतनजोत, करंज आदि का बहुत स्कोप है। इसमें तेल के अलावा और भी उत्पाद मिलते है जिनका उपयोग कास्मेटिक, जैव ईधन, मेडीसन उद्योग में बहुत है।उन्होने किसानों को सुझाव देते हुये कहा कि मुनंगा, रतनजोत, करंज, लक्ष्मीताक आदि वृक्षों को खेत की मेड़ पर फसलों के बीच आसानी से लगा सकते है, इससे पर्यावरण संरक्षण में भी फायदा होगा।
वृक्षजनित तेल कार्यक्रम सेमीनार में केवीके वैज्ञानिक डा विमलराज यादव ने कहा कि वृक्षजनिक तेल हेतु बुन्देलखण्ड की जलवायु उपयुक्त है तेल उत्पादन करने वाले वृक्ष अरण्डी के उत्पादन उसकी तकनीक तथा उपयुक्त प्रजाति जैसे टाइप-3, तराई-4 सहित अन्य प्रजातियों के बारे में विस्तार से बताया। वृक्षजनित तेल सेमीनार में सर्वप्रथम मुख्य विकास अधिकारी द्वारा फीता काटकर कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया। मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण के उपरान्त दीपप्रज्जवलित कर सेमीनार का शुभारम्भ हुआ। इस मौके पर जेडीए एसएस चौहान, प्रभारी डीडी कृषि केके सिंह, एसडीओ श्रीमती डिम्पल केन, संजीव कुमार सिंह, संजय कुमार, विवेक कुमार, बीएसए विपिन कुमार, अनिल कुमार, दीपक कुमार, लल्ला सिंह सहित अन्य अधिकारी, कर्मचारी व किसान उपस्थित रहे। सेमीनार का संचालन आर के सिंह द्वारा किया गया।

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