नारी को नमन : परिवार की देखभाल के साथ करती हैं यह सभी समाजसेवा (भाग दो)

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आत्‍मिक शांति के साथ भूल जाती हैं अपने दुख

झांसी। पति के न रहने के बाद एक महिला पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है और उस पर जब उसके दाे बच्‍चे भी हों। ऐसे में ससुराल पक्ष के सहयोग और परिजनों के साथ से किसी तरह खुद को सम्‍भाला। बच्‍चों की परवरिश करते हुए खुद को घर में कैद सा कर लिया। यह बात इनके साथियों को अच्‍छी नहीं लगी और उन्‍होंने डेन नेटवर्क का कार्य करने वाले स्‍व. संजय मल्‍होत्रा की धर्मपत्‍नी को अपने साथ समाजसेवा के कार्य में जोड़ा और उनको घर से बाहर निकाला।
आगे अपने बारे में बताते हुए श्रीमती सारिका मल्‍होत्रा ने बताया कि उनके पति के देहांत को पांंच वर्ष हो चुके हैं। वह एक संयुक्‍त परिवार में रहती हैं। स्‍नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही उनका विवाह करा दिया गया था। पढ़ाई के दौरान कुछ और करने का मौका ही नहीं मिला और विवाह के बाद सब कुछ परिवार के अनुसार चल रहा था कि अचानक उनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। पहले एक दाे साााल तो कुछ समझ ही नहीं आया। उन्‍होंने खुद को घर में ही कैद सा कर लिया थ्‍ाा। उनके परिवार के लोग ही सब कुछ देख रहे थे और बच्‍चे अपनी पढ़ाई पूरी करने में लगे रहे। इस दौरान उनके साथियों ने उनकी इस परिस्‍थिति से उनको बाहर निकालने की ठानी।
इसमें परिजनों का सहयोग रहा और उन्‍होंने समाज सेवा के कार्यों में रुचि लेना शुरु कर दिया। धीरे धीरे यह सब अच्‍छा लगने लगा। पति के देहांत के बाद उनकी स्‍मृृृृति में कई वर्ष बैडमिण्‍टन टूर्नामेण्‍ट कराया गया। समाज सेवा के कार्य में उनके रचबस जाने के कारण इस बार से पति की स्‍मृति में रक्‍तदान शिविर लगाया गया।
उन्‍होंंने बताया कि समाजसेवा के कार्य से जहां दूसरे के दुखों को देखकर अपना दुख भूलने में मदद मिलती है। वहीं एक आत्‍मिक शांति सी मिलती है। वर्तमान में वह समर्पण सेवा समिति की सदस्‍य और महिला व्‍यापार मण्‍डल की सदस्‍य हैं। ऐसे में अक्‍सर संगठन के सदस्‍यों के साथ त्‍यौहार और विशेष मौकों पर गरीबों व असहायों के साथ वक्‍त बिताते हैं और उनके दुखों व समस्‍याओं को दूर करने का प्रयास करते रहते हैं।

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