किसान पराली न जलायें, एनटीपीसी 5500 रु प्रति टन से लेगा पराली

** पराली अब लायेगी खुशहाली, पराली से हो रहा विद्युत निर्माण ** एनटीपीसी ने पराली आधारित ईधन से विद्युत उत्पादन योजना को किया शुरु ** किसान पराली से अतिरिक्त आमदनी कर आय बढ़ाये

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झांसी। बुन्देलखण्ड सहित विभिन्न स्थानों में धान की कटाई के बाद गेहूं की फसल की समय से बुवाई और लागत को कम करने के लिये पराली को खेत में जलाना एक आम बात है। हर वर्ष पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और अन्य जगहों पर लाखों टन पराली को जलाने से निकला धुआं, हवा की गुणवत्ता को खराब करने के साथ हवा में धुलने से सांस लेने में काफी मुश्किल पैदा होती है। जिससे त्वचा, आंखों की बीमारी, सांस व फेफड़े की बीमारी एवं कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी की सम्भावना उत्पन्न हो जाती है।
जनपद में पराली जलाने से होने वाले नुकसान को रोकने के लिये जिलाधिकारी आन्द्रा वामसी ने किसानों को जागरुक करते हुये कहा कि पराली अब आय का जरिया है, इसमें आग न लगाये। उन्होने कहा कि धान का पुआल व फसली अवशेष (पराली) को जलाने से आर्थिक हानि के साथ-साथ मिट्टी की उत्पादकता क्षमता व उर्वरता पर काफी प्रभाव पड़ता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पराली में नाइट्रोजन, फास्फोटस और पोटाश की मात्रा होती है, जिसे जलाने के स्थान पर यदि खेत में उपयोग किया जाया तो एनपीके की उचित मात्रा मिल जायेगी तथा मिट्टी के तापमान, पीएच, नमी आदि भी प्रभावित नही होगी तथा खेत की मिट्टी भी उपजाऊ होगी। जिलाधिकारी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में ‘‘पराली दो खाद लो’’ योजना को उन्नाव जिले से शुरु किया गया है। निःसंदेह इसके बेहतर परिणाम आयेंगे, इससे पर्यावरण और किसानो दोनों का लाभ हुअ है। इस योजना के तहत किसान को दो ट्राली पराली के बदले एक ट्राली गोबर खाद दी जा रही है। जिससे मृदा में जीवाश्म की वृद्वि हो रही और उत्पादन में भी सुधार आ रहा।
जिलाधिकारी ने बताया कि पराली से एनटीपीसी द्वारा विद्युत निर्माण किया जा रहा है, जिससे धान तथा अन्य कृषि अवशेषों से बने गठठे (पेलेटस) को कोयले के साथ आंशिक रुप से प्रतिस्थापित कर विद्युत उत्पादन में सहयोग किया जा रहा है, जिसे तकनीकी भाषा में बायोमास को-फायरिंग भी कहते है। उन्होने बताया कि उ0प्र0 में सार्वजनिक क्षेत्र की नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी) की दादरी स्थित इकाई में पराली आधारित ईधन से विद्युत उत्पादन योजना को शुरु किया गया है। पंजाब में पराली से कोयला बनाने वाले सात कारखाने है जो एनटीपीसी को कोयला बेचकर विद्युत निर्माण में मदद कर रहे है। एनटीपीसी द्वारा किसान को एक टन पराली के लिये करीब 5500 रुपये दिये जा रहे है। संयंत्र को रोजना 1 हजार टन कृषि अवशेषों की आवश्यकता है, इसके साथ ही देश भर में फैले 21 ताप बिजलीघरों में पेलेटस की आपूर्ति हेतु रुचि पत्र आमंत्रित किये गये जिसकी खपत 19440 टन प्रतिदिन है। उन्होने कहा कि हमारे किसान भी जागरुक हो इसके लिये लगातार प्रयास किये जा रहे है। खुली बैठकों में कृषि विभाग के अधिकारी सहित अन्य अधिकारी भी पराली से होने वाले नुकसान की जानकारी देंगे तथा पराली से कैसे आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जाये, उसकी भी जानकारी किसानों को देंगे। उन्होने बताया कि पंजाब के गांव गद्दाडोब में एक फैक्टरी में 05 वर्ष से पराली से बिजली बनाने का काम कर रही है, जो करीब 05 हजार किसानों से पराली खरीदकर बिजली का निर्माण करती है, अब फैक्टरी के 20 किलोमीटर के दायरे में किसान अब पराली में आग नही लगाते बल्कि उसे फैक्टरी में बेचते है। जिससे सलाना 06 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन किया जाता है और बिजली बोर्ड को 6.30 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बेचा जाता है।
जिलाधिकारी ने बताया कि एक एकड़ खेत में दो टन तक पराली निकलती है। इस समय हर साल करीब 154 मिलियन टन कृषि अवशेष पैदा होता है, जिसको यदि इस्तेमाल किया जाये तो 30 हजार मेगावाट बिजली पैदा होगी, जो 1.5 लाख मेगावाट क्षमता के सोलर पैनल से होने वाले बिजली उत्पादन के बराबर है। इससे लगभग 1 लाख करोड़ का बाजार खड़ा हो सकता है। भारत सरकार ने बायोमास को-फायरिंग को प्रोत्साहन के लिये नीति निर्देश भी जारी कर दिये है तथा इस कदम से कृषि अवशेषों के एकत्रीकरण, संग्रहण एवं उससे पेलेटस के निर्माण क्षेत्र में निवेश को बढावा देने के साथ कृषि अवशेषों के लिये बाजार मिलेगा तथा साथ ही व्यापार व रोजगार के अवसर सृजित होंगे।

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