नारी को नमन : परिवार की देखभाल के साथ करती हैं यह सभी समाजसेवा (भाग 7)

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न मां की ममता मिली अाैैैर न पिता का लाड़

झांसी। जब आपको पता न हो आपके माता पिता आपसे चाहते क्‍या हैं और आप उनको मनाने में पूरी तरह समर्पित हो जाओ, जिसके बाद आपको मालूम हो कि यह तो मेरे माता पिता ही नहीं। मुझे तो किसी ने इनको सौंपा है। ऐसे में जिंदगी क्‍या मोड़ ले लेगी आप सोच ही नही सकते, लेकिन झांसी में पैदा हुई ललितपुर में ब्‍याही गईं श्रीमती गीता अग्रवाल ने सारी परेशानियां झेल कर न सिर्फ परिवार को सम्‍भाला, बल्‍कि अपनी पहचान बनाई औैर आज सभी बच्‍चों के विवाह के बाद खुद दूसरों की जिंदगी संवारने को प्रयासरत हैं।
इस सम्‍बंध में श्रीमती गीता अग्रवाल बताती हैं कि मैैं कहावत के अनुसार चांदी का चम्‍मच लेकर झांसी महानगर में पैदा हुई, लेकिन पैदा होते ही मेरा चांदी का चम्‍मच मेरे ही लोगों ने चुरा लिया। कहने का मतलब जहां लोग दान में रूपये, पैसे, जेवर, रोटी या अन्‍य सामान देते हैं, वहां बेटी होने के कारण मेरे माता पिता ने मुझे पैदा होते ही अपने बड़े भाई को दान में दे दिया। उस घर में मेेेेरे नाज नखरे उठाए तो गए, लेकिन कभी उन सभी सुख सुविधाओं में ममता और अपनत्व की कहीं न कहीं कमी खलती रही। गुजरता वक्त कब क्या दिखा यह कोई नही जानता, 17वें साल में ही मुझे पता चला कि मैं जिनके साथ रह रही हूँ। वह मेरे माता-पिता नहीं हैं। अब शुरू हुई मेरी तलाश। अपनी माँ के सामने होने पर भी मैं पागलों की तरह उन्हें खोज रही थी। वहीं मेरी माँ भी नारी होने का दंश झेलते हुए चुप रहीं। 18 वें साल में मेरी शादी हो गई। अपने माता-पिता के साथ ना रह पाने के कारण और ज्यादा ना पढ़ पाने से मेरे अन्दर कई खामियां रहीं, लेकिन मैंने यह तय कर लिया था कि जैसी जिंदगी मैंने जी है। अपने बच्चों को मै ऐसे नही जीने दूंगी। बस यह मेरे जीवन का एक ऐसा मोड़ रहा और इसके चलते मैंने अपने पांच बच्‍चों को कभी भी किसी तरह का अहसास नहीं होने दिया और उनको अच्छी शिक्षा देेेेकर काबिल बनाया। घर परिवार के अनेक झंझावतों से जूझते हुए मैं अपने बच्चों के लिए हमेशा ढाल बनकर खड़ी रही। मैंने अपनी पहचान बनाने के लिए बच्चों के साथ पढ़ाई की। अंग्रेजी शिक्षा के साथ ही सिलाई कढ़ाई व पेन्टिंग स्कैचिंग जैसे गुण सीखे। जब मेरी बेटियों का हाईस्कूल इण्टर का पेपर होता था, तो मुझे लगता जैसे मेरी भी परीक्षा आज ही होगी और परिणाम भी आएगा। समय बीतता गया और बच्‍चे अपना मुकाम बनाते गए। उन्‍होंने बताया कि आज मैं उम्र के उस पडाव में हूँ, जहाँ मेरे पति मुझे छोड़ कर जा चुके है। सभी बच्चे अपने क्षेत्रों में नई पहचान बना रहे हैं। ऐसे में मैं कैसे संतुष्‍ट रहती मैंने भी एक मुकाम तय किया औा संयुक्त उधोग व्यापार मण्डल ललितपुर में सक्रिय भूमिका निभा रही हूँ और अपनी इस नई पहचान से बहुत खुश हूँ। मुझे आज खुद पर अभिमान है कि मैंने अपनी जिंदगी जोकि पल पल मेरा इम्तिहान लेती रही और मैं हमेशा ही हिम्मत से खड़ी रही। आज हर जरुरतमंद को मदद की दरकार है, जिसको लेकर हमारा संगठन और मैं पूरी तरह सक्रिया भ्‍ाूूमिका निभाते हैं। अंत में मैैं बस यही कहना चाहूंगी कि हर रूप में मां, बहन, बेटी, पत्नी, सखा, प्रेमिका, शिक्षिका और कई-कई रूप नारी के हैं और नारी जो स्वच्छ बहता पानी है। जो हर रूप में, हर स्थिति में ढल जाती है, जिसके बिना जीवन अधूरा है, प्यासा है,नारी जिससे यह सृष्टि तृप्त होती है, जो जीवन आधार है। ऐसी होती है नारी

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