लोहागढ़ के ग्रामवासियों ने लड़ी थी रानी झांसी के लिए अंग्रेजों से लड़ाई: डॉ. चित्रगुप्त

रानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस पर विशेष

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झाँसी। जिले के समथर कस्बे से 7 किमी की दूरी पर बसा है, लोहागढ ग्राम। पहाङीनुमा ऊचाई पर मौजूद लोहागढ की गढी अपने अतीत के संघर्ष को बयाँ करती नजर आती हैं, जब गांव के किसान-मजदूरों ने भी अंग्रेजों से टक्कर ली थी।
इतिहासकार डा चित्रगुप्त बताते हैं कि ईस्ट इण्डिया कंपनी की बढती ताकत का कारण देशभक्त रियासतों पर अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों के चरम पर थी। इन्हीं रियासतों में झांसी को अपने अधीन करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी बङी सेना लेकर यहाँ हमला बोल दिया। यहां की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना सहित इनका कङा मुकाबला किया। ईस्ट इंडिया कंपनी के पास अत्याधुनिक हथियार थे। अंग्रेजों की भारी सेना के हमले के कारण तहत रानी को झांसी छोङकर कालपी पहुँचना था, जहाँ उन्हें दूसरी मराठी सेना का सहयोग मिलता। रानी झांसी किले से निकलकर कालपी के लिए रवाना हुई, लेकिन अंग्रेजी सेना उनके पीछे लग गयी। रानी लक्ष्मीबाई समथर के पास लोहागढ से होकर निकली तो लोहागढ के ग्रामवासियों को पता चला कि अंग्रेजी सेना रानी साब के पीछे है, तो पूरे ग्रामीण एकजुट हो गये। गांव के किसान, मजदूर सहित सभी वर्ग के स्त्री पुरुष अपने परंपरागत हथियार तीर तलवार, गढासे, कुल्हाड़ी आदि से अंग्रेजी सेना से मुकाबला करने को तैयार हो गये। रानी को गांव से सुरक्षित निकल जाने दिया और यह अफवाह उङा दी गयी कि रानी लोहागढ गढी में सुरक्षित है। अंग्रेजी सेना तक ये खबर पहुँची तो उस सेना ने लोहागढ पर हमला कर दिया। गांव वासियों ने जमकर मुकाबला किया और अपने परंपरागत हथियारों से ही अंग्रेजी एनफील्ड रायफल वाले सैनिकों को भागने पर मजबूर कर दिया, लेकिन इस संघर्ष में अनेक ग्रामवासी शहीद हो गये। घर घर मौत ने डेरा जमा लिया था।

उसी दिन गांव के एक वीर यौद्धा, जन श्रुतियों में उन्हें दुल्हासाब कहा जाता है, का विवाह होकर उसी दिन दुल्हन विदा हुई थी, लेकिन दुल्हासाब अपनी तलवार लेकर अंग्रेजों से भिङ गये। दर्जनों सैनिक मार डाले। अंग्रेजी सैनिक उनके दुल्हे के रूप में और सहरा पहने देखकर आश्चर्य कर रहे थे। दुल्हा साब काफी समय तक लङते रहे, लेकिन पीछे से एक गोली उनको निशाना बना कर मारी गयी। जनश्रुति के अनुसार किसी दुश्मन सैनिक ने घायल दुल्हासाब का सिर काट लिया, लेकिन फिर भी वे काफी देर तक लङते हुऐ शहीद हो गये। इस युद्ध में अनेक ग्रामवासी शहीद हो गये लेकिन उन्होने रानी की रक्षा करने में सफलता प्राप्त की थी। आज भी इन शहीदों की समाधियां गांव में बनी हुई हैं। जहां लोग श्रद्धा से पूजते हैं।

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