नई शिक्षा नीति में संस्कृत को रोजगारोन्मुखी बनाने पर जोर: डॉ अवधेश प्रताप सिंह

वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई महिला महाविद्यालय में हुआ संस्कृत सप्ताह समारोह का समापन

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झाँसी। उत्तर प्रदेश सरकार के निर्देश स्वरूप हिंदी विभाग बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी एवं वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई महिला महाविद्यालय झाँसी के संयुक्त तत्वाधान में संस्कृत सप्ताह समारोह का आयोजन 19 अगस्त से 25 अगस्त तक किया गया। इसके अंतर्गत संस्कृत पत्र लेखन प्रतियोगिता संस्कृत काव्य पाठ एवं संस्कृत संभाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई महिला महाविद्यालय झाँसी में आयोजित समापन समारोह में मुख्य अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉक्टर अवधेश प्रताप सिंह ने कहा की संस्कृत में रोजगार के अनेक संभावनाएं हैं एसएससी परीक्षा से लेकर के यूपीएससी की परीक्षा में संस्कृत के छात्र बैठ सकते हैं। विगत कई वर्षों के परिणाम देखने से यह सिद्ध होता है कि संस्कृत के छात्रों ने अधिक मात्रा में सफलता अर्जित की है इसके साथ ही सेना, पत्रकारिता एवं अनुवाद के क्षेत्र में भी संभावनाएं हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय एवं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के द्वारा चल रहे शोध कार्य में ऐसा देखने में आया है की अनुवाद की दृष्टि से संस्कृत की भाषा सबसे अधिक उपयुक्त है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हैं वीरांगना महारानी रानी लक्ष्मीबाई महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ बी बी त्रिपाठी ने संस्कृत वाणी में कहा –
भानो: दीधितयस्तमोअपहरने सिद्दा जगत्यां श्रुतं
प्राणायामविधि ब्रुवन्ति मुनयः पुष्णाति देहं हवि
यज्ञं मन्त्रपवित्रितंच पयसां मेघो धराम् बिन्दुभि
श्रेय प्राणभृताम तनोति भुवने संस्कारतः संस्कृतम्.

संसार में सभी जन जानते हैं कि सूर्य की किरणें अंधकार को समाप्त करने में सक्षम है। योगाचार्य ने बताया है की प्राणायाम विधि से मानव शरीर पुष्ट होता है। इसी प्रकार मंत्रों से पवित्र हविष्य से यज्ञ सफल होता है। देववाणी संस्कृति संस्कारों के माध्यम से समस्त प्राणियों का जनकल्याण करती है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉक्टर ओम प्रकाश शास्त्री ने कहा की संस्कृत भाषा जन्म से लेकर के मरण तक के संस्कारों को अपने में समेटे हुए हैं संस्कृत भाषा और साहित्य अध्ययन से सचित के छात्र योग वास्तु शास्त्र ज्योतिष विज्ञान खगोल विज्ञान आयुर्विज्ञान जैसे क्षेत्रों में अपना कैरियर बना सकते हैं। उन्होंने बताया कि शासन से मांग रखी गई है कि इन पाठ्यक्रमों को बीए के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। कार्यक्रम के संयोजक एवं हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ पुनीत बिसारिया ने कहा कि संस्कृत भाषा संस्कृति की सुरक्षा, मानव संस्कार और नैतिक मूल्य का आधार। शोध अध्ययन से निष्कर्ष प्राप्त हुआ है की संस्कृत सुनने से मानसिक स्वास्थ्य लाभ मिलता है। उन्होंने कहा की वर्तमान कि कई वैज्ञानिक उपलब्धियों का संदर्भ हमें संस्कृत वांग्मय में देखने में मिलता है। सहसंयोजक डॉ कौशल त्रिपाठी ने कहा कि जहां अन्य विषय अर्थ संग्रह प्रधान है। वहीं संस्कृत भाषा अर्थ के सही उपयोग का ज्ञान देती है। कार्यक्रम का संचालन डॉ अनुभा श्रीवास्तव ने किया। इस अवसर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में हिमांशु यादव को प्रथम राजीव चतुर्वेदी और कामद दिक्षित को द्वितीय स्थान एवं यशस्वी अग्रवाल को तृतीय स्थान प्रदान किया गया।

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