विवि : कुलपति ने विद्यार्थियों संग शिक्षकों की ली हिंदी की क्‍लास

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झांसी। आधुनिकता उन तार्किक एवं वैज्ञानिक मूल्यों के साथ विकसित होती है, जो देश, काल और परिस्थितियों से निरपेक्ष रहकर शाश्वत रहते हैं। उक्‍त बातें बुन्‍देलखण्‍ड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र दुबे ने “हिन्दी साहित्य में आधुनिकता का परिप्रेक्ष्य” विषय पर एम ए हिन्दी के विद्यार्थियों को पढ़ाते हुए व्‍यक्‍त कीं। अपनी कक्षा में उन्होंने विस्तारपूर्वक आधुनिकता की परिभाषा, उसके विकास क्रम तथा हिन्दी पट्टी और साहित्य जगत में इसके प्रसार पर बात की।
प्रोफेसर दुबे ने सन 1793 के लॉर्ड कॉर्नवालिस द्वारा ज़मींदारी प्रथा की शुरुआत करने तथा सन 1820 में थॉमस मुनरो द्वारा इस्तमरारी बन्दोबस्त करने से होते हुए उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध्द तक चलने वाले ऐतिहासिक विकास क्रम की चर्चा करते हुए बताया कि साहित्य में इसकी जड़ें कबीर से होते हुए क्रमागत ढंग से भारतेन्दु हरिश्चंद्र तक पहुँची और भारतेन्दु बाबू ने आधुनिकता को साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में हिन्दी जगत में प्रतिष्ठित करने का महती कार्य किया। उन्होंने भारत में आधुनिकता के प्रचार प्रसार में तीन घटनाओं को महत्त्वपूर्ण करार दिया। ये थीं- रेल, डाक संचार और प्रिंटिंग प्रेस। यद्यपि अंग्रेज़ों द्वारा भारत में इन तीन माध्यमों का विकास उनकी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु किया गया किन्तु कालान्तर में इन्होंने भारत को आधुनिक बनाने, विश्व से जोड़ने और अंततोगत्वा स्वतन्त्र कराने में महती भूमिका का निर्वाह किया। उन्होंने बताया कि भारतेन्दु ने नाटक शीर्षक से लिखे विनिबंध में देशवत्सलता को साहित्य की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ज़रूरत बताया, जो आधुनिकता की पूर्वपीठिका प्रस्तुत करता है। उनके अनेक नाटकों तथा कविताओं में देश का धन विदेश चले जाने और देश के अंधकार निद्रा में पड़े होने पर दुःख जाहिर किया गया है। इससे पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मुन्ना तिवारी ने कुलपति जी का हिन्दी विभाग में स्वागत किया। ज्ञातव्य है कि हिन्दी विभाग की स्थापना से ही कुलपति जी हिन्दी विभाग में लगातार कक्षाएँ लेते रहे हैं। आज की इस कक्षा में विभाग के शिक्षकों ने भी विद्यार्थी की भूमिका में उनके व्याख्यान को पूर्ण मनोयोग से सुना। अंत में डॉ पुनीत बिसारिया ने सभी के प्रति आभार जताया।

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