कुछ नहीं बिकता जहां, पर पिताजी की गद्दी देती है बरकत

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सफलता की कहानियों के क्रम में दूसरी कड़ी पेश करने जा रहे है, जोकि झांसी के एक ऐसे व्‍यापारी नेता की जुबानी है। इसमें वह सफल व्‍यवसायी ही नहीं बनेे, बल्‍कि दूसरे व्‍यापारियों की समस्‍याओं को समझा और उनको दुख तकलीफ में सहारा भी दिया। बात इतने तक ही सीमित रह जाती, तो कुछ नहीं था। उन्‍होंने अपनी प्रतिभा से व्‍यापारियों का एक महत्‍वपूर्ण पुरस्‍कार भाजपा नेता व महाराष्‍ट्र के एक बड़ेे व्‍यापारी नितिन गडकरी, जोकि वर्तमान मेंं केन्‍द्रीय परिवहन व गंगा सफाई मंत्री भी हैंं, उनके साथ 2010 में मंच साझा कर भामाशाह अवार्ड भी हासिल किया।

अपने माता पिता के लाडले व नौ भाई बहनों में सबसे छोटे भाई हाेने के कारण परिवार में सबके प्‍यारे रहे। इसका कारण है कि आज भी पिता केे देहांंत के बावजूद उनकी पुस्‍तैनी दुकान को भी अपनी जिम्‍मेदारी समझ कर चला रहे हैंं। पिता तम्‍बाकू व सुपारी का व्‍यवसाय करते थे, जो समाज के लिए सही नहीं मानते हुए इन्‍होंंने काम को तो आगे नहीं बढ़ाया पर दुकान आज भी बदस्‍तूर खुलती है और अपने समय पर बंद होती है। माता पिता के आर्शीवाद और मेहनत को साथ जोड़ लिया जाए तो काम करने वालों को दिक्‍कतें आती हैंं, लेकिन सफलता का स्‍वाद जरूर मिलता है। कुछ ऐसे ही विचारों के साथ अपनी सफलता की कहानी एशिया टाईम्‍स की सम्‍पादकीय टीम के वरिष्‍ठ सदस्‍य एवं पूर्व सम्‍पादक दैनिक भ्‍ाास्‍कर झांसी डॉ. हरिमोहन अग्रवाल के साथ झांसी के सफल व्‍यवसायी व उप्र व्‍यापार मण्‍डल के प्रांंतीय अध्‍यक्ष संजय पटवारी ने अपने जीवन के उतार चढ़ाव शेयर किए।

उन्‍होंने बताया कि वह स्‍व. श्री बद्रीप्रसाद पटवारी व स्‍व. श्रीमती चम्‍पा बाई के सबसे छोटे पुत्र हैं। वह और पढ़ाई में बहुत अच्‍छे छात्र नहीं रहे, लेकिन छात्र जीवन से ही वह राजनीति की ओर प्रेरित हुए और एलवीएम इण्‍टर कालेज व बुुुन्‍देलखण्‍ड महाविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी करने के साथ ही इंदिरा गांधी विचार मंच से जुड़ गए। इससे उनको एक पहचान मिली। पिता के बंटवारे मेें उन्‍होंने पुस्‍तैनी कारोबार को चुना, लेकिन उसको ज्‍यादा किया नहीं। उसके बाद वह एक अन्‍य संगठन से जुड़ गए और उसके युवा अध्‍यक्ष बन गए, जिसके बाद से ही उनकी लोकप्रियता के कारण कई विरोधी सक्रिय हो गए और आए दिन संगठन में उथल पुथल मची रहती थी। इससे उन्‍होंने वह संगठन छोड़़ दिया और एक नए संगठन की नींव रखी। उप्र व्‍यापार मण्‍डल के वर्तमान में सभी जगह 18700 के लगभग सदस्‍य हैं। उन्‍होंने बताया कि विरोधियों ने जिला प्रशासन से लेकर सरकार तक उनकी तमाम शिकायतें की और आज भी बदस्‍तूर जारी हैं। इसके लिए उन्‍होंने व्‍यापारी हित में मुकदमे झेले, 15 दिन की जेल काटी और लाठी भी खाईं। इसका नतीजा आज उनका एक मजबूत संगठन के रुप में उनको मिला। उन्‍होंने बताया कि पुस्‍तैनी धंधेे के साथ वह संगठन को तैयार कर रहे थे, उन्‍हीं दिनों व्‍यापारी अक्‍सर अपनी समस्‍याएं लेकर आते रहे, जिनमें कभी वह चोरी होने की बात करते तो कभी किसी और दिक्‍कत की। ऐसे में सुरक्षा को देखते हुए उन्‍होंने खुद ही सिक्‍योरिटी एजेंंसी खोली और व्‍यापारियों को गार्ड्स उपलब्‍ध कराने लगे और एक साथ कई सारे लोगों को रोजगार उपलब्‍ध कराया। तकनीक के बढ़ने के साथ ही उन्‍होंने सीसीटीवी कैमरों का काम किया। वह भी सफल रहा। संगठन और व्‍यवसाय के साथ परिवार से भी जुड़े रहे और सभी भाई बहनों को बराबर इज्‍जत आदर दिया और आज वह ख्‍ाुुुद एक बेटी और एक बेटे के पिता हैं। बेटी बैंगलोर में यूएस की कम्‍पनी में जाॅॅॅब कर रही है, तो बेटा बुुन्‍देलखण्‍ड विश्‍वविद्यालय से फूड टेक की पढ़ाई कर रहा है। वह दिल्‍ली के एक अन्‍य व्‍यापारियों के संगठन कैट के पदाधिकारी भी हैं। वह स्‍वयं काेे आजीवन व्‍यापारियों की सेवा के लिए समर्पित मानते हैं। इसके अलावा कई समाजसेवी संगठनों के सक्रिय सदस्‍य व पदाधिकारी भी हैं।

साथी के लिए जान को डाला जोखिम में


संगठन के नगर अध्‍यक्ष संतोष साहू अपने अध्‍यक्ष के बारे में बताते हैं कि एक बार ग्‍वालियर रोड स्‍थित एक व्‍यापारी की प्रिंटिंग प्रेस में आग लग गई और उसकी सूचना मिलने पर हम सभी लोग वहां पहुंचे। देखा तो अाग बहुत भयंकर थी, सब तरफ मुआयना कर ही रहेे थे, कि हमारे अध्‍यक्ष जी पता नहीं कहां गायब हो गए। जब उनको ढूंढा गया तब वह आग लगने वाले स्‍थान पर जहां फायर ब्रिगेड के लोग अंदर जाने की हिम्‍मत नहीं कर पा रहे थे। वह अंदर चले गए। उनके पीछे अन्‍य लोग भी गए और उसी रास्‍ते से आग पर काबू पाया गया। जब अध्‍यक्ष जी बाहर आए तो काफी धुआं उनके अंदर जा चुका था और ऐसे में उन्‍होंने ठण्‍डा पानी पी लिया, जिससे अचानक उनकी तबियत बिगड़़ गई। झांंसी में चेकअप कराने के बाद उनको दिल्‍ली रेफर किया गया, जहां काफी दिन इलाज कराने के बाद उनकी तबियत मेें सुधार हो सका। इससे आज हम सभी संगठन के लोगों की हिम्‍मत बढ़ चुुकी है और हम लोग भी अध्‍यक्ष जी की तरह ही बनने का प्रयास करते हैं।


संगठन के नगर संयोजक चौधरी फिरोज बताते हैं कि एक बार अध्‍यक्ष जी किसी पूर्व संगठन में युवा अध्‍यक्ष पद पर थे, जहां एक वरिष्‍ठ पदाधिकारी के आगमन पर उनको बुलाया नहीं गया था। ऐसे में उन्‍होंने अपने साथियों को एकत्र किया और उस पदाधिकारी का उस मंच पर ही काफी बड़े स्‍तर पर सम्‍मान कर दिया। बाद में उक्‍त पदाधिकारी को मालूम हुआ कि अध्‍यक्ष जी को नहीं बुलाया गया था, तो ऐसे में उन्‍होंने इनके स्‍थान पर इनके कई समर्थकों को संगठन से निकाल दिया, जोकि इनको नागवार गुजरा और इन्‍होंने उस संगठन को छोड़ कर उप्र व्‍यापार मण्‍डल की नींव रखी। आज इस संगठन से हम सब खुश हैं और हम सभी व्‍यापारियों की समस्‍याओं का निदान होता रहता है।

उप्र व्‍यापार मण्‍डल के नगर शाखा के कोषाध्‍यक्ष सुनील नैनवानी बताते हैं कि उनकी जानकारी के अनुसार उप्र के व्‍यापार मण्‍डल के गठन से पूर्व श्री पटवारी जी ने एक महिलाओं का दंगल एलवीएम कालेज में कराया था, जिसमें शिक्षक सीताराम गुप्‍ता जी का सम्‍मान किया गया था। उस दंंगल मेंं चालीस हजार से ज्‍यादा दर्शक आए थे और इस कार्यक्रम से उनका काफी नाम हुआ था। ऐसे अध्‍यक्ष की छत्रछाया में हम सभी युुुुवाओं का मार्गदर्शन होता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

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