बुन्‍देलखण्‍ड का शाहरुख भी कहते हैं इस कलाकार को

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माया नगरी कहते हैं जिसे, लोग दीवाने हैं उसकी चकाचौंध के और अधिकतर युवा उसे पाने की ललक में परेशान हैं। जल्‍दी से पैसा और नाम कमाने की धुन मेंं बिना कुुुछ सोचे समझे बस लगे है एक मुकाम पाने केे प्रयास में। कई लोग इसको हासिल भी कर लेते है, तो कई लोग अपना पूरा जीवन संघर्ष में गुजार देते हैं। ऐसे में संघर्ष में उनका घर परिवार और नाते रिश्‍तेदार भी दूर हो जाते हैं। पर जो मुकाम पा लेते हैं, उनको लोग अपना आईडियल बना लेते हैं।
हिन्‍दी फिल्‍म इण्‍डस्‍ट्री का क्रेज हमेशा से ही रहा है और हीरो बनने के लिए घर भागने का चलन आज भी पुराना नहीं हुआ है। यह बात अलग है कि कुछ लोग सही रास्‍ते से मुम्‍बई जाने लगे हैंं। रास्‍ता कोई भी हो, लेकिन सपना वही है कि मुम्‍बई पहुंचकर हीरो बनना है और जल्‍दी से जल्‍दी हिट फिल्‍में देकर खूब सारा धन कमाना है और वापिस आकर जो लोग बुरा बोलते हैं। उनको कर दिखाना है। यह कहानी पूरी फिल्‍मी है और उसके बाद भी युवा इसको हकीकत बनाने में लगे रहते हैं, लेकिन इस लाइन को अपना सब कुछ मानकर पूरे जी जान से लगे रहने वालों को मालूम है कि यह रास्‍ता आसान नहीं है। ऐसा ही एक नाम है, जोकि अब बुन्‍देलखण्‍ड में एक जाना पहचाना हो चुका है और कई लोग उसको बुन्‍देलखण्‍ड का शाहरुख खान भी कहते हैं। यह है देवदत्‍त बुधौलिया।

asiatimes.in की सम्‍पादकीय टीम को अपनी कहानी सुनाते हुए देवदत्‍त बताते हैं, कि उनका कैरियर अभी उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाया है, लेकिन बुन्‍देलखण्‍डी फिल्‍म ‘ढरकोला’ उनके लिए एक मील का पत्‍थर साबित हुई और इसको लोगों ने काफी सराहा। झांसी ही नहीं वरन मुम्‍बई में भी उनके काम की तारीफ के साथ एक पहचान मिली। स्‍व. जयप्रकाश बुधौलिया व श्रीमती सोना बुुुुधौलिया के सात बच्‍चों (चार भाई व तीन बहन) में सबसे छोटे देवदत्‍त बुधौलिया को फिल्‍में देखने का काफी शौक रहा और बचपन में स्‍कूल गोलकर इन्‍होंने ‘शोले’ फिल्‍म देखी और यहीं से एक्‍टिंग का शौक इनके दिमाग में लग गया। समय बीता और उसके बाद शाहरुख खान एक ब्राण्‍ड बन चुके थे, जिनकी मिमिक्री करना और दोस्‍तों को हंसाना इनका शौक रहा। सबसे पहले यह सुभाष गंज में होने वाली रामलीला में एक रोल की मांग करने गए, तो इनको वहां से भगा दिया गया, लेकिन धीरे धीरे नुक्‍कड़ नाटक और तमाम रंगमंच के रोल करने के बाद देवदत्‍त ने वहां एक बार भगवान राम का किरदार निभाया। 14 वर्ष की उम्र में हीरो बनने का भूत इस कदर सवार हुआ कि यह अपने घर से भाग कर मुम्‍बई पहुंच गए और वहां सात आठ दिन यूं ही घूमते रहे और आखिर वहां से वापिस आना पड़ा।
घरवालों की डांट और मार के डर से एक्‍टिंग को कुछ कम कर देवदत्‍त ने जैसे तैसे अपनी पढ़ाई की और उसके बाद रेलवे के फॉर्म भरना प्रारम्‍भ किया, जिसका परीक्षा केन्‍द्र मुम्‍बई ही भरते रहे। अक्‍सर वहां जाते रहे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। यहां नुक्‍कड़ नाटक करते करते इनको बुन्‍देलखण्‍ड के साथियों का साथ मिला और ढरकोला फिल्‍म में काम मिला।


उसके बाद जब फिल्‍म आई, तो हर जगह इनको तारीफ मिली और काम मिलना प्रारम्‍भ हो गया। मुम्‍बई में कई सीरियल्‍स में काम किया, जिसमें चिड़ियाघर, सावधान इण्‍डिया, जोधा अकबर, साथिया साथ निभाना, अकबर बीरबल, पीटरसन हिल आदि प्रमुख हैं। हाल ही में देवदत्‍त ने भूमाफिया फिल्‍म में सह खलनायक की भूमिका निभाई है और अब धीरे धीरे इनको काम मिलना प्रारम्‍भ हो चुका है। यह आज भी थियेटर को पहला प्‍यार मानते हैं और झांसी में थियेटर के विकास को लेकर प्रदेश सरकार से मदद की उम्‍मीद रखते हैं। वर्तमान में यह नवोदित कलाकारों को मुफ्त में एक्‍टिंग का प्रशिक्षण देते हैं।
बुन्‍देलखण्‍ड के कलाकारों की स्‍थिति को लेकर दुखी होकर देवदत्‍त कहते हैैं कि वह और उनके कई साथी बुन्‍देलखण्‍ड की इण्‍डस्‍ट्री को लेकर काफी प्रयासरत हैं और इसके लिए सरकारी मदद की दरकार है। यहां संसाधनों की कमी है और यहां से बाहर गए लोग भी इसके बारे नहीं सोच रहे हैं। यदि यहां फिल्‍मकार आकर अपनी फिल्‍मों की शूटिंग करें, तो यहां के लोगों को काम ही नहीं मिलेगा। इससे बुन्‍देलखण्‍ड की फिल्‍म इण्‍डस्‍ट्री को बनाने में काफी मदद मिलेगी। उनको कहना है कि भोपाल व अन्‍य कई शहरों में थियेटर या नाटक के लिए एक अलग से स्‍थान तय है और सरकार से सहायता मिलती है, लेकिन झांसी में ऐसा कुछ नहीं है। यहां एक ढंग का हॉल तक नहीं है, जो हम स्‍थानीय कलाकारों के लिए हो।

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