विवि: आगामी युवा महोत्‍सव में परचम लहराना कार्यशाला का उद्देश्‍य

0 छात्र-छात्राओं का सर्वागींण विकास विवि का उत्तरदायित्व: प्रो. सहगल 0 बीयू में छह दिवसीय सांस्कृतिक कार्यशाला आरंभ-2018 का हुआ प्रारम्भ

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झांसी। विश्वविद्यालय में पठन पाठन के अतिरिक्त सांंस्कृतिक कार्यक्रमों तथा खेल प्रतियोगिताओं का भी निरन्तर आयोजन किया जाना चाहिये, जिससे छात्र-छात्राओं का सर्वागींण विकास हो सके, यही विश्‍वविद्यालय का उत्तरदायित्व भी है। यह विचार बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के वरिष्ठ आचार्य प्रो. वीके सहगल ने बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के गांधी सभागार में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक प्रकोष्‍ठ द्वारा आयेाजित छह दिवसीय सांस्कृतिक कार्यशाला आरंभ-2018 के उद्घाटन के अवसर व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि इस प्रकार की कार्यशाला छात्रों में अनुशासन और सहभागिता को बढ़ाते हैं। विश्वविद्यालय के कुलसचिव चंद्रपाल तिवारी ने कहा कि प्रत्येक छात्र की रूचि, योग्यता एवं ग्रहण करने की क्षमता भिन्न-भिन्न होती है। यह हमारा उत्तरदायित्व है कि विवि मेंं अध्ययन करने वाले प्रत्येक छात्र-छात्रा को उसकी रूचि के अनुसार अध्ययन तथा पाठ्य सहगामी कार्य प्राप्त हो सकें। अपनी रूचि एवं योग्यता के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने पर छात्र-छात्रा का चतुर्मुखी विकास हो सकेगा। कुलसचिव तिवारी ने कहा कि इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि हम कम से कम विश्वविद्यालय स्तर पर एक विविधतापूर्ण माहौल तैयार करें, ताकि विश्वविद्यालय के छात्र हर क्षेत्र में अपनी योग्यता का प्रदर्शन कर सकें। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजन निरन्तर एक समयावधि के बाद होते रहने चाहिये।
कार्यक्रम का प्रारम्भ करते हुए विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक समन्वय एवं विश्‍वविद्यालय की सहायक अधिष्‍ठाता छात्र कल्याण डा. रेखा लगरखा ने कार्यशाला आरम्भ-2018 के प्रतिभागियों तथा प्रशिक्षकों का स्वागत करते हुए कहा कि बुन्देलखण्ड विश्‍वविद्यालय की साहित्यिक, सांस्कृतिक टीम निरन्तर क्षेत्रीय एवं राष्‍ट्रीय युवा महात्सवों में शीर्ष मुकाबले तक तो पहुंंच जाते हैंं, परन्तु अन्तिम परिणाम हमारे पक्ष में नही आ पाता है। इसलिए विवि के सांस्कृतिक प्रकोष्‍ठ ने इस कार्यशाला का आयोजन किया है, ताकि विवि के प्रतिभागी छात्र-छात्राएं आगामी युवा महोत्सवों में अपना तथा विवि का परचम लहरा सकेंं। सहायक अधिष्ठाता छात्र कल्याण डा. मुन्ना तिवारी ने कहा कि कला चेतना दो प्रकार की होती है। पश्चिमी कला चेतना चेतना अनुकरण की है, जिसमें सभी उपकरण उपलब्ध होते हैं, तभी कलाकार अभिनय कर सकता है। जबकि भारतीय कला चेतना अनुकृतम की है जिसके अंतर्गत एक कलाकार मात्र अपने हाव भाव द्वारा ही संपूर्ण दृश्य का मंचन कर सकता है। अधिष्‍ठाता छात्र कल्याण प्रो. देवेश निगम ने प्रतिभागियों का आव्हान किया कि वे इस कार्यशाला का लाभ उठाये। उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन से पहले छात्र अपनी प्रतिभा निखारने हेतु लाभ नहींं उठा पाते थे। कार्यक्रम का प्रारंभ मंचासीन अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र के आगे दीप प्रज्जवलन तथा तथा पुष्‍पार्चन से किया गया।

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