विवि : मिर्गी के दौरे पर भारी पड़ सकता है यह छोटा सा फल

0
1736

झांसी। बुंदेलखंड क्षेत्र में बहुतेरी मात्रा में पाए जाने वाला बेर (ज़ीज़ुफुस मोर्तिआना) के फ्रूट पल्प पर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय परिसर स्थित बायोमेडिकल संस्थान द्वारा हाल ही में की गयी शोध में अति उत्साहित करने वाले परिणाम सामने आए हैं। पूर्व में बेर के फल पर हुए अब तक के शोध में उक्त फल लिवर संबधी रोगों, अस्थमा, कैंसर रोधी, घाव भरने, उदर रोग, एंटी-माइक्रोबियल एवं ब्लड प्यूरीफायर के रूप में जाना जाता रहा है, परन्तु उक्त फल के पल्प पर विश्वविद्यालय के इनोवेशन सेंटर में उपलब्ध मशीनो के सहयोग से किये शोध में उपर्युक्त के अलावा भी अन्य महत्वपूर्ण औषधीय गुण जैसे की मिर्गी को ठीक करने, ऐक्षिक स्केलेटल मसल को कमजोर करने संबधी बीमारी को ठीक करने, मानव प्रतिरक्षा तंत्र में बदलाव करने एवं शुक्राणुओं को बनने से रोकने वाले फाइटोकेमिकल कंपाउंड्स की पहचान की गयी है। उक्त पूरे पौधे के मेथनोलिक अर्क का निर्धारित वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के बाद क्रोमैटोग्राफिक अध्ययन में लगभग 150 से अधिक फाइटोकेमिकल कंपाउंड्स की पहचान की गयी है, जिनमे से कुछ मुख्य कंपाउंड्स जैसे कि मोलिनेट, क्लिंडामाइसीन, डोडेकानोइक एसिड, लेवेतरिरसेतम, प्रोपीलोक्टानोइक एसिड आदि के थेरप्यूटिक इफेक्ट्स के आधार पर उक्त फल में एंटी एपिलेप्सी (मिर्गी), इम्मुनोमॉडलटेर, एम्योट्रॉफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (मसल सम्बन्धी बीमारी) को ठीक करने, एंटी-बायोटिक, एंटी- फर्टिलिटी सम्बन्धी गुण पाए गए हैं। प्रारम्भिक शोध में आये परिणाम काफी उत्साहित करने वाले हैं, जिनके आगे अध्ययन के आधार पर मिर्गी, मसल सम्बन्धी बिमारियों की लिए नयी दवा की खोजी जा सकती है। उक्त अध्ययन बायोमेडिकल विभाग के शिक्षक डॉ. लवकुश द्विवेदी के निर्देशन में शोध छात्र पंकज कुशवाहा द्वारा किया गया हैं, जोकि फार्माकोग्नॉसी से सम्बंधित एक अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित किये जाने हेतु स्वीकृत भी हो चुका है। उक्त जानकारी डॉ. लवकुश द्वारा दी गई।

LEAVE A REPLY