उत्‍तम गुणों के कारण श्रीराम को मर्यादा पुरुषाोत्‍तम कहा जाता है – मुरारी बापू

- श्रीराम कथा के सातवें दिन कथा प्रवचन करते हुए संत मोरारी बापू ने कहा कि श्रीराम सत्य के पुजारी थे। - भजन श्रृवण कर भावविभोर हुये भक्त

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ओरछा। श्रीराम कथा मर्मज्ञ संत मोरारी बापू ने कहा कि पापी कितना ही बलशाली और प्रभावशाली क्यों न हो, जीत हमेशा सत्य की ही होती है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भी जीवनभर सत्य के मार्ग पर ही चलते रहे। यही वजह है कि हर मुसीबत उनके सामने बौनी पड़ गई। संत मोरारी बापू ने कहा कि श्रीराम सत्य के पुजारी थे। पूरा जीवन उन्होंने एक आदर्श के रूप में बिताया। हमेशा बड़ों की आज्ञा का पालन किया और कमजोर से कभी वैर-भाव नहीं रखा। कहा कि प्रभु राम के गुण पूरे विश्व में सभी पुरुषों में उत्तम थे। इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।

बापू ने कहा कि इस कलयुग में हम सभी को श्रीराम के आदर्शों पर चलने का प्रयास करना चाहिए। कहा कि राम राज्य में किसी को किसी से वैर नहीं था, चोरी और अकाल मृत्यु का भय नहीं था। प्रजा सुख-शांति से जीवन यापन करती थी, लेकिन कलयुग में ऐसा कोई घर नहीं, जहां अशांति का वास न हो। इसे दूर करने के लिए एक बार फिर से राम राज्य लाने की आवश्यकता है। बापू ने कहा कि ओरछा जैसी पावन भूमि पर हजारों भक्तों ने श्रीराम कथा का हिस्सा बनकर इतिहास रचा है। इन सभी भक्तों के परिवारों पर प्रभु राम की कृपा जरूर बरसेगी।

राम कथा के सातवें दिन संत मोरारी बापू ने कहा कि जीवन यात्रा के पथ में खुशियों से भरा मोड़ आए, तो धर्म की सवारी करें। बैल अर्थात वृषभ धर्म का प्रतीक है और शिव दूल्हा बन कर इसी पर सवार हुए थे। शिव विवाह प्रसंग की चर्चा के माध्यम से बापू ने सीख दी कि घर में बेटे से अधिक बेटी के जन्म पर खुशियां मनाओ, क्योंकि बेटा केवल एक कुल को जबकि माता-पिता, सुसराल व नाना-नानी के कुल को तारती है। उन्होंने बेटियों से कहा कि वे जितना चाहें पढ़ें पर संस्कारों को कभी न भूलें।

श्री सदगुरू जन्म शताब्दी महोत्सव के अन्तर्गत श्री सुरभि गौशाला के भव्य प्रांगण में आयोजित श्री राम की कथा कहते हुये संत मोरारी बापू ने स्पष्ट कहा कि जीवन यात्रा यदि एक ही ढर्रे पर चल रही है, तो उसे एक नया मोड़ दें। यात्रा में यह मोड़ तभी आएगा, जब हम धर्म पर सवारी करेंगे। बैल धर्म का प्रतीक है। यह भगवान शिव की सवारी है। शिव अपने विवाह में दूल्हा बन कर बैल पर सवार हुए तो उल्टे बैठे थे। बारातियों ने समझाया कि जिस तरफ बैल का मुख है, आप भी उसी तरफ मुख करके बैठे। इस पर शिव ने जवाब दिया कि, बैल को ही मोड़ कर उसकी दिशा बदल दो, मेरे मुख की दिशा भी बदल जाएगी। इस प्रसंग में भगवान शिव का यहां संदेश निहित्त है कि जीवन यात्रा में मोड़ आए और वह सुपथ पर चले। इस यात्रा में विवाह उत्सव जैसा आनंद आए तो बैल रूपी धर्म की सवारी करें। धर्म की राह ही वृषभ की सवारी है। माता पार्वती की विवाह के बाद विदाई के प्रसंग को केंद्र में रख कर उन्होंने कहा कि हर पिता के लिए बेटियां उनके कलेजे के टुकड़े के समान होती हैं। हिमालय राजा भी पार्वती की विदाई के समय अपने आंसू नहीं रोक सके थे। फिर हम सब तो सामान्य मानव हैं। उन्होंने प्रेम और भक्ति के अंतर को बताया। कहा कि कई पुरूषों ने प्रेम को ही भक्ति तो किसी ने भक्ति को हरी प्रेम कहा है। वास्तविक अर्थों में प्रेम पुरुष और भक्ति स्त्री है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वह भी ऐसा पुरुष जो निरअहंकारी हो। जिसमें तनिक भी मद और अहंकार न हो। भक्ति सीता है। प्रेम अचल होता है। यह केवल एक दिन करने की वस्तु नहीं है। हमें प्रेम दानी बनना चाहिए। प्रेम तब सार्थक होता है, जब हम स्वयं को पूरी तरह अर्पित कर दें। संतश्री ने नानक, तुकाराम, मीरा, तुलसी आदि का उदाहरण देते हुए कहा कि ये लोग जगत के हित के लिए हमेशा जाग्रत रहे।

बापू ने कहा कि हम अपने स्वयं के कल्याण के प्रति भी लापरवाह रहते हैं। ये लोग ऐसे थे, जो दूसरों के कल्याण के लिए सोचते रहे। हमें चाहिए कि हम भी निष्काम भाव से अपने कर्म करें। उन्होंने पुनः दोहराया कि विष्णु का दसवां अवतार कोई बुद्ध पुरुष ही होगा। उन्होंने कहा कि बुद्ध पुरुष वे होते हैं, जो हर परिस्थिति में शांत रहें। निरपेक्ष रहें। संत बापू ने कहा कि हमारे छोटे-बड़े पुण्य प्रजा हैं और राजा राम हैं। कलियुग में राम का नाम राजा है। इसे जपते रहे, यही तारनहार है। उन्होंने कहा कि हमें दर्पण में स्वयं को देखते रहना चाहिए। इसका अर्थ है कि हम ये जानते-समझते रहें कि हमारी दशा और दिशा अब कैसी है। वहीं कथा स्थल के पास ही चल रहे विशाल भण्डारें में लाखों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया।

इस दौरान श्रीमद् जगदगुरू द्वाराचार्य मलूक पीठाधीश्वर श्रद्धेय राजेन्द्र दास देवाचार्य महाराज, अनुरूद्ध दास महाराज ओरछा, महन्त अनन्तदास महाराज, महामण्डेलश्वर संतोश दास महाराज, जिला धर्माचार्य महन्त विष्णु दत्त स्वामी, नगर धर्माचार्य प. हरिओम पाठक, बसन्त गोलवलकर, लल्लन महाराज, मनोज पाठक, पीयूष रावत, अनिल रावत, आशीष राय, देवेश पाण्डेय, रत्नेश दुबे, पुनीत रावत, रीतेश दुबे, अंचल अड़जारिया, मनीष नीखरा, नीरज राय, भूपेन्द्र रायकवार, शिवशंकर संकल्प, अनिल दीक्षित, घनश्याम चौबे, सोनी कुशवाहा, बन्टू मिश्रा आदि उपस्थित रहे।

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