वर्माजी की उपलब्धियां झांसी की धरोहर हैं : डीआरएम

डा. वृंदावन लाल वर्मा की जयंती मनाई

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झांसी। बाबू जी का जन्म झांसी जनपद के मऊरानीपुर कस्बे में 9 जनवरी, 1889 को एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता बाबू अयोध्या प्रसाद झांसी में रजिस्ट्रार कानूनगो के पद पर कार्यरत रहे बाबू जी के पूर्वज ओरछा नरेश छत्रसाल की सेवा में रहे थे और उनके परदादा आनंदी राय झांसी महारानी लक्ष्मीबाई के दीवान थे। इन्हीं की वजह से उनके मन में इतिहास और वीर पुरुषों के प्रति गहरा आकर्षण पैदा हुआ और इन्हीं सभी की झलक उनके व्यक्तित्व में मिलती है। उक्त विचार वृन्दावन लाल वर्मा की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मण्डल रेल प्रबंधक एके मिश्रा ने मण्डल रेल प्रबंधक कार्यालय में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज को जो कुछ दिया है, उसे देखते हुए ही भारत सरकार द्वारा सन् 1965 में पद्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया। उनको और अधिक सम्मान देते हुए भारत सरकार द्वारा 9 जनवरी, 1967 को उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया। उनकी सभी उपलब्धियां झांसी की धरोहर हैं। वर्मा जी जैसे महान लोगों के व्यक्तित्व व कृतित्व की सराहना के अलावा उनके द्वारा अपनाए गए सिद्धांतों, उनके विचार पर अमल करना आवश्यक है और यही उनके प्रति सच्चा सम्मान होगा, कृतज्ञता होगी।
इससे पूर्व अशोक कुमार मिश्र मंडल रेल प्रबंधक, संजय सिंह नेगी अपर मंडल रेल प्रबंधक एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. जगदीश खरे एवं डा. पुनीत बिसारिया द्वारा सुविख्यात साहित्यकार पद्मभूषण बाबू वृन्दावनलाल वर्मा जी की जयंती समारोह का उद्घाटन मां सरस्वती एवं बाबू वृंदावन लाल वर्मा के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया । कार्यक्रम के आरंभ में राजभाषा अधिकारी एम.एम. भटनागर ने समस्त अतिथियों का स्वागत करते हुए बाबू वृंदावन लाल वर्मा की जयंती मनाए जाने के संबंध में अपने विचार व्यक्त किये। अपर मुख्य राजभाषा अधिकारी एवं अपर मंडल रेल प्रबंधक संजय सिंह नेगी ने कहा कि वर्मा जी का साहित्य अत्यंत प्रभावशाली है और प्रत्येक पाठक पर अपना प्रभाव छोड़ता है। वर्मा जी की प्रारंभिक शिक्षा ललितपुर से शुरू हुई, आगरा से बी.ए. और एलएलबी किया और झांसी में आकर वकालत शुरू की। साहसी प्रवृत्ति के होने के कारण उन्हें बचपन से ही शिकार करने का बहुत शौक था और वे झांसी के आस-पास के जंगलों में शिकार को जाया करते थे। उनका अध्ययन गहन था और उन्हें प्रत्येक विषय पर महारथ हासिल थी। वर्मा जी के उपन्यासों में इतिहास का सजीव चित्रण है, जिसके कारण उनके उपन्यास वर्तमान परिवेश के समान प्रतीत होते हैं। उनके ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण ही उन्हें हिंदी का ‘‘सर वाल्टर स्कॉट’’ माना जाता था। उनकी साहित्य सेवा के कारण सन् 1958 में आगरा विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘‘डी लिट्’’ की मानद उपाधि तथा भारत सरकार ने 1965 में पद्मभूषण की उपाधि प्रदान की। उन्हें ‘‘सोवियत लैण्ड नेहरू’’ एवार्ड से भी सम्मानित किया गया। उन्होंने जो सिद्धांत अपनाए, उन्हें सभी अपनाएं और उन्हीं के विचारों के अनुरुप चलकर देश की सेवा करें, यही उनके प्रति सच्चा सम्मान होगा। समारोह में झांसी नगर क्षेत्र के प्रतिष्ठित साहित्यकार वक्ताओं को भी आमंत्रित किया गया। इस क्रम में आमंत्रित अतिथि वक्ता डॉ. जगदीश खरे ने बताया कि वर्मा जी ने अपने उपन्यासों में प्रकृति के सौंदर्य के दृश्यों की बखूबी प्रस्तुति की है। डॉ. पुनीत बिसारिया ने कहा कि वर्मा जी ने यथार्थ का चित्रण किया। उन्होंने एक स्थान पर लिखा है कि यथार्थ और आदर्श में हमें आदर्शों को तो स्थापित करना ही पडे़गा। आदर्श निर्दिष्ट गंतव्य स्थान पर ले जाता है। विशेष रूप से आमंत्रित बाबू वृंदावन लाल वर्मा जी के पौत्र लक्ष्मीकांत वर्मा ने कहा कि धरोहरें दो प्रकार की होती हैं, राष्ट्रीय तथा पारिवारिक अर्थात वर्मा जी राष्ट्रीय एवं पारिवारिक दोनों धरोहर थे। उन्होंने वर्मा जी के जीवन से जुड़े रोमांचित व प्रेरित करने वाले संस्मरणों को सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। इससे पूर्व बाबू वृंदावन लाल वर्मा की जयंती दिवस पर ही स्टेशन परिसर में स्थित श्री वर्मा जी की प्रतिमा के साथ ही साथ स्थापित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त एवं आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर पुष्पांजलि अर्पित की गई। संगोष्ठी में विष्णुकांत तिवारी वरि. मंडल वित्त प्रबंधक, गुंजन श्रीवास्तव वरि.मंडल इंजी/उत्तर., विपिन कुमार सिंह वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक, मंयक शांडिल्य वरिष्ठ मंडल विद्युत इंजी, टीआरएस, सुश्री-सारिका मोहन वरिष्ठ सुरक्षा आयुक्त, रजत कुमार सिंह वरिष्ठ मंडल विद्युत इंजी क/वि, आफताब अहमद वरिष्ठ मंडल विद्युत इंजी, परिचालन, मुदित चंद्रा वरिष्ठ मंडल कार्मिक अधिकारी, वरिष्ठ मंडल सामग्री प्रबंधक, बीपी सिंह मंडल यांत्रिक इंजी, आर.डी. भार्गव सहायक वि़द्युत इंजी, पी.सी.जाटव, श्रीकांत शर्मा, एवं राजेश कुमार त्रिपाठी आदि अधिकारी व पर्यवेक्षक तथा कर्मचारीगण उपस्थित रहे। संचालन राजभाषा अधिकारी एम.एम. भटनागर द्वारा किया गया तथा भगवानदास, वरिष्ठ अनुवादक ने आभार व्यक्त किया।

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