कम उम्र के बच्चे अपराध करते हैं तो बीट आरक्षी करेगा चिन्हित – रिपाेेेर्ट गौरव कुशवाहा

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    झाँसी। अब पुलिस महकमे को हाईटेक बनाने की प्रक्रिया शुरु हो गई है। सभी पुलिस कर्मियों को मोबाइल के जरिए ऑन लाइन रहने होगा। यही नहीं, गांव के कम उम्र के बच्चे अगर अपराध करते हैं तो बीट सिपाही उन्हें चिन्हित करेगा। इस संबंध में पुलिस महानिदेशक ने समस्त वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/ पुलिस अधीक्षकों को निर्देश जारी किया है। इन निर्देशों को लेकर पुलिस अफसरों में हड़कंप मचा हुआ है।
    वर्तमान में समय में अपराध की दुनिया में कम उम्र के बच्चे कूद रहे हैं। अपराध करने के बाद यह बच्चे अपना स्थान छोड़कर अन्यंत्र स्थान पर रहने लगते हैं जिससे अपराधों का ठीक तरह से खुलासा तक नहीं हो पाता है। इस मामले को पुलिस महानिदेशक ने गंभीरता से लेते हुए कम उम्र के बच्चों पर नजर रखने निर्देश दिए हैं। निर्देश में कहा है कि गांव के कम उम्र के बच्चे अगर अपराध करते हैं तो बीट सिपाही उन्हें चिह्न्ति करेगा। और उनकी काउंसलिंग करेगा। उसे सुधारने के लिए गांव के प्रधान, माता पिता और संबंधित एसओ उसकी सुधार के लिए विशेष ध्यान देंगे और उसकी पूरी निगरानी करेंगे। इसको गंभीरता से लेने की जरूरत है। इस दिशा में कोई भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
    बताया गया कि मौजूदा दौर में अब आनलाइन रहने की जरूरत है। इसलिए महकमे को हाईटेक बनाने के लिए सीसीटीएनएस से जोड़ा जा रहा है। और उस कड़ी में काम भी महकमे में शुरू किया जा चुका हैं। बताया कि ऐसे में पुलिस कर्मियों को भी हाईटेक होना होगा। मोबाइल के जरिए पुलिस कर्मी हमेशा आनलाइन रह सकते है। इससे सूचनाओं का आदान प्रदान तेजी से होगा और लोग एकदूसरे से आसानी से जुड़ सकेंगे।

    झपट्टामार बाइकर्स मचा रहे हैं कोहराम

    अपराध, वक्त बीतने के साथ बदलता चला गया अपराध का ट्रेंड, बाइकर्स का है अब जलवा
    डकैती व फिरौती अब बन गयी इतिहास की घटनाएं
    चोरी व छिनतई की घटनाओं में हुआ इजाफा
    झाँसी। हाल के दिनों में जिले में अपराध का ट्रेड बदल रहा है, एक ओर जहां हत्या और लूट की धटनाओं में कमी आयी है, वहीं डकैती और फिरौती के लिये अपराध की घटनाओं पर विराम लग गया है। पुलिस विभाग के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2005 में फिरौती की 06 घटनायें हुई ,जबकी 2006 एवं 2007 में एक-एक घटनाओं के बाद वर्ष 2013 में 02 घटनाएं हुई। इस प्रकार वर्ष 2003 में डकैती की 38 घटनाएं हुई, जबकि 2014 से वर्ष 2017 के बीच डकैती की कुल 32 घटनाएं हुई।
    हत्या और लूट मामले में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रही। वर्ष 2005 से वर्ष 2017 के बीच हत्या और लूट का आंकड़ा बताता है कि वर्ष 2006 को छोड़ बाकी सभी वर्षो में आंकड़ा 70 के उपर ही रहा। लूट की धाराओं में वर्ष 2012 को छोड़ अन्य वर्ष में आंकड़े बढ़ते-घटते रहे, लेकिन कमी नहीं आयी।

    चोरी व छिनतई की घटना बढ़ी

    बीते दो वर्षो में चोरी व छिनतई की पूर्व के वर्षो की अपेक्षा मामला बढ़ा है। खासकर चोरी व गृहभेदन के क्रमश: 156 एवं 82 घटनाएं हुई है, वर्ष 2017 में चोरी की 230 एवं गृहभेदन की 92 घटनाएं हुई। गत वर्ष की तरह इस वर्ष भी चोरों ने बंद घरों को निशाना बना कर लाखों के जेवरात व नगदी की चोरी की। इस वर्ष चोरी की चार घटना ऐसी थी, जो दिन में हुई, पुलिस आंकड़े के अनुसार वर्ष 2008 के बाद चोरी की घटना में कमी आती रही, लेकिन वर्ष 2017 मे चोरी की 230 घटनाओं ने डेढ़ दशक के सभी आंकडों को पीछे छोड़ डाला है। इसका मुख्य कारण चोरों की गिरफ्तारी में पुलिसिया कार्रवाई सिफर होना है। खासबात यह रहा कि बीते दो वर्षो में चोरों ने बंद घरों में सिर्फ जेवर व नगदी पर ही हाथ साफ किया। दूसरी ओर झपट्टामार अपराधियों द्वारा अंजाम दी गयी। छिनतई की घटनाओं ने पिछले डेढ़ दशक के सभी आंकड़े को पीछे छोड़ दिया। बगैर हथियार के हाईस्पीड बाइक पर अपराधी राहगीरों के रुपये ,मोबाइल और महिलाओं के चेन छीनकर अपना जलवा बरकरार रखा।

    वर्ष 2005 से 2017 तक की आपराधिक घटनाएं

    वर्ष हत्या डकैती लूट फिरौती हेतु अपहरण दुष्कर्म चोरी
    2005 113 3 95 06 37 218
    2006 57 21 70 01 41 229
    2007 90 28 47 01 80 215
    2008 71 27 27 00 59 224
    2009 86 15 35 00 46 196
    2010 80 11 21 00 40 161
    2011 86 10 24 00 63 185
    2012 96 16 17 00 40 170
    2013 89 14 27 02 55 130
    2014 70 09 34 01 57 143
    2015 70 09 45 01 36 152
    2016 78 07 42 00 33 156
    2017 87 04 36 00 22 230

    डकैती व फिरौती की घटनाओं पर लगा अंकुश

    डेढ़ दशक पूर्व जिले में कई दुर्दान्त अपराधी गिरोह का आतंक था। यहां तक कि बाहर के जिले के अपराधी भी बड़े आसानी से घटना को अंजाम देकर चले जाते थे। तब राजनेताओं के संरक्षण में फिरौती खूब फल-फूल रहा था, लेकिन व्यवस्था के बदलाव के साथ पुलिस तंत्र को मजबूत बनाया गया। अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान का सहारा लिया जाने लगा। वर्ष 2005 में हत्या की 113 एवं फिरौती के 06 घटनाओं के बाद अन्य वर्षो के वारदातों में कमी आने लगी। पूर्व में जेल में बंद बड़े अपराधी जेल से ही व्यवसायियों से रंगदारी की मांग करते थे। जेल के बाहर बैठे उनके गुर्गे व्यवसायियों से रुपये वसूलते थे। वर्ष 2006 के बाद जेल से अपराधियों द्वार रंगदारी की मांग की घटना न केवल बंद हो गयी, बल्कि जेल प्रशासन भी इस मामले में सख्त रहा, बहरहाल जेल में बंद कई अपराधी मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन रंगदारी मांगने की गलती नामी गिरामी भी नहीं करते हैं।
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