साहित्‍यकारों को सत्‍ता की जगह जनता का बनना होगा पक्षधर : डाॅ. श्रीवास्तव

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झांसी। देश गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। पोस्ट ट्रुथ के इस दौर में सच और झूठ को अलग-अलग करना मुष्किल होता जा रहा है। ऐसे में साफ वैचारिक दृश्टि के साथ सामाजिक-राजनैतिक परिघटनाओं का विष्लेशण बहुत जरुरी हो गया है। उपरोक्त विचार उत्तर प्रदेष प्रगतिषील लेखक संघ के प्रांतीय महासचिव डाॅ. संजय श्रीवास्तव ने व्यक्त किए। डाॅ. श्रीवास्तव आज डाॅ. आर. पी. श्रीवास्तव के आवास पर प्रगतिषील लेखक संघ झांसी से संबंद्ध रचनाकारों की बैठक को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि साहित्यकारों को सत्ता के बजाय जनता का पक्षकार बनना चाहिए। कथाकार प्रेमचंद ने साहित्य के जो उद्देष्य बताऐ थे वही एक सच्चे साहित्यकार के आदर्ष हैं। उन्होंने कहा कि आज जन षिक्षा की बहुत आवष्यकता है। मीडिया और जनसंचार के साधनों पर काॅरपोरेट घरानों का नियंत्रण हो गया है। वे ही एजेंडा बना रहे हैं और उसे प्रचारित कर रहे हैं। जनता के असली मुद्दे विमर्ष से गायब है। इस अवसर पर इप्टा/प्रलेस झांसी के महासचिव डाॅ. मुहम्मद नईम ने कहा कि वर्तमान समय में जन संगठनों को सांस्कृतिक रुप से और अधिक सक्रिय करने की जरुरत है। जनता के मुद्दे जनता के बीच ले जाना बुद्धिजीवियों का पहला कर्तव्य है। साहित्य को अकादमिक चाहरदिवारियों से बाहर आम-अवाम के बीच ले जाना होगा।
युवा आलोचक डाॅ. अनिल अविश्रान्त ने कहा कि जनता से संवाद, जनता की भाशा में होना चाहिए। देष और समाज को बेहतर बनाने की परियोजना में लगे साथी अपनी भाशा और अपने मुहावरे विकसित करें। जनसंवाद के लिए यह बेहद जरुरी है।
कार्यक्रम का संचालन डाॅ. मुहम्मद नईम ने व अध्यक्षता डाॅ. मदन श्रीवास्तव ने की। इस अवसर पर डाॅ. रामायन राम, डाॅ. षिवप्रकाष त्रिपाठी, डाॅ. कमलेष कुमार, अंषुल नामदेव आदि उपस्थित थे।

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