पर्यावरण संरक्षण हमारा उत्तरदायित्व: प्रो. वैशम्पायन

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झांसी। मानव तथा पृथ्वी का पर्यावरण एक दूसरे के पूरक है। आज के इस भौतिकतावादी युग में पर्यावरण संरक्षण हमारा उत्तरदायित्व है। इसके अतिरिकत पृथ्वी पर उपस्थित जैव विविधता को बचाने के लिए भी पर्यावरण को संरक्षित रखना आवश्यक है। यह विचार आज बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.जे.वी. वैशम्पायन ने व्यक्त किये। प्रो. वैशम्पायन आज बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के पर्यावरण एवं विकास संस्थान के द्वारा आयोजित विश्‍व पृथ्वी दिवस-2019 के अवसर पर विश्वविद्यालय के सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम में अध्यक्षता करते हुए अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि पर्यावरणीय समस्याएं जैसे प्रदूषण, जलवायु परिर्वतन इत्यादि मनुष्य को अपनी जीवनशैली के बारे में पुर्नविचार करने के लिये प्रेरित कर रही हैं और अब पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण प्रबंधन की नितान्त आवश्यकता है। आज सबसे ज्यादा आवष्यकता इस बात की है कि पर्यावरण संकट के मुद्दे पर आम जनता को जागरूक किया जाय। कुलपति ने कहा कि समाज में पर्यावरण के प्रति जागकता उत्पन्न करने के लिए हमें बच्चों का सहारा लेकर सबसे पहले उन्हे ही जागरूक करना होगा। उन्होंने कहा कि आज पर्यावरण बचाने की जिम्मेदारी हमारे छात्रों की होनी चाहिए क्योंकि भविष्य के नागरिक है।
इस अवसर पर समारोह के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं डा.ए.के.पाण्डेय बताया कि मछलियां पानी के जलीय पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण घटक हैं। देष की नदियेां के प्रदूशित होने के कारण मछलियांे की कई सारी प्रजातियंा लुप्त हो गई हैं। जिसका हमारे पर्यावरण पर गहरा असर पड रहा है। इस अवसर पर बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो.देवेष निगम ने कहा कि अनियत्रिंत विकास के कारण हमारे शहर अब कंक्रीट के जंगल हो गए हैं। कहीं भी एक छाया वाला पेड़ नजर नहीं आता है। छोटे बच्चों के प्रिय तितलियां एवं जुगुनू आदि कीट पतंगे नजर आने बंद हो गए हैं। प्रो.निगम ने कहा कि अब आवश्यकता इस बात की है कि हमारे आने वाली पीढ़ी अर्थात बच्चे निरंतर रूप से वृक्षारोपण करें तथा पौधों को गोद लेकर उनकी देखभाल करें तभी हम पर्यावरण को बचा सकते हैं।
बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के कृशि संस्थान के निदेशक प्रो.बी.गंगवार ने कहा कि मानव ने अपने पर्यावरण को स्वयं ही क्षति पहुंचाई है अधिक से अधिक लाभ के लिए हमने कीटनाशक दवाओं का उपयोग करके फसलों का उत्पादन तो बढ़ा दिया है लेकिन उससे उनकी गुणवत्ता में कमी आई है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति भी कम हो रही है। प्रो.गंगवार ने कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि हम को रासायनिक खादों तथा कीटनाषकों के स्थान पर जैविक खाद का प्रयेाग करें। इससे पूर्व आज का कार्यक्रम को प्रारंभ करते हुए कार्यक्रम के संयोजक डा.अमित पाल ने आमंत्रित अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि पर्यावरणीय सुरक्षा के उपायों के प्रति जन जागरण के साथ ही पर्यावरण सुरक्षा के बारे में लोगों के बीच जागरुकता बढ़ाने के लिये 22 अप्रैल को पूरे विश्व भर के लोगों के द्वारा हर वर्ष विश्व पृथ्वी पृथ्वी दिवस को मनाया जाता है। पहली बार, वैश्विक आधार पर 192 देशों के द्वारा इसे 22 अप्रैल 1970 को मनाया गया था। कार्यक्रम का संचालन डा.स्मृति त्रिपाठी ने किया तथा आमंत्रित अतिथियों को आभार डा.नेहा मिश्रा ने व्यक्त किया। इस अवसर पर डा.विनीत कुमार, डा.अभिमन्यु सिंह, डा.संन्दीप आर्य, डा.रंजना भाटी, डा.देवेन्द्रमणि त्रिपाठी, डा.श्वेता पाण्डेय, डा.संगीता लाल सहित विभिन्न विभागों के शिक्षक शिक्षिकाएं तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। इस अवसर पर पर्यापरण संरक्षण पर आधारित एक चित्रकला एवं पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया। प्रतियेागिता के विद्यालय वर्ग में जी.पी.एस. के मयंक चैधरी प्रथम, एम.पी.एस. के विजय राजपूत द्वितीय तथा जी.पी.एस. की ही राधिका चक्रवर्ती ने तृतीय स्थान प्राप्त किया जबकि विश्वविद्यालय वर्ग में नन्दिनी कुशवाहा, देव नामदेव तथा नीलिमा सेानी ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त किये। विजयी विद्यार्थियेां को पुरस्कार भी प्रदान किये गये।