मां तो मां होती है, उस जैसा कोई नहीं

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झांसी। ” ऐसा नहीं है कि माँ को बनाकर खुदा ने कोई जश्न मनाया … बल्कि सच तो ये है कि वो बहुत पछताया …..
कि कब उसका एक एक जादू किसी और ने चुरा लिया…..वो जान भी नहीं पाया …..
खुदा का नाम था मोहब्बत …वो माँ करने लगी …
खुदा का नाम था हिफाज़त …वो माँ करने लगी ….
खुदा का नाम था बरकत …वो भी माँ करने लगी ….
देखते ही देखते उसकी आँखों के सामने कोई और परवरदिगार हो गया ….
वो बहुत मायूस हुआ …बहुत पछताया …. क्यूँकि माँ को बनाकर …खुदा खुद लगभग बेरोज़गार सा हो गया!!!! ”
अंतरराष्ट्रीय माता दिवस पर पर आयोजित कार्यक्रम का इस कविता के साथ शुभारंभ करते हुए ह्यूमन संस्था के अध्यक्ष निजामउद्दीन ने कहा कि मां तो मां होती है मां जैसा कोई नहीं। कुछ अभागे ही कहलाते हैं जिनकी मां नहीं होती, लेकिन उनको क्या कहें जिनके पास सब कुछ होने के बावजूद वह अपनी मां को वृद्ध आश्रम में छोड़ देते हैं। मां का ध्यान नहीं रखते हैं। मां ने उनको 9 महीने कोख में रखकर पाला पोसा और उसके बाद उनके पैदा होने के बाद जब वह बोल भी नहीं पाते थे, तो उनके खाने-पीने और हर चीज का ध्यान रखा। खुद कष्ट झेल कर भी मां ने बच्चों को अच्छे से अच्छे संस्कार, वस्तुएं, सुविधाएं आदि उपलब्ध कराए। उसके बाद भी हम उनको क्‍या दे सकते हैं। बस उनके सम्‍मान पर कोई आंच न आए, यह कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस पर हम संकल्प लेते हैं कि माताओं को कष्ट नहीं होने देंगे।


इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए श्रीमती शारदा शर्मा द्वारा भजन सुनाया गया। कार्यक्रम का संचालन सेवानिवृत्त समाज कल्याण विभाग के कैलाश चंद शर्मा द्वारा किया गया। रूपरेखा कार्यक्रम संयोजक रोबिन वर्मा द्वारा रखी गई।

इस दौरान कार्यक्रम में कई माताओं का सम्मान किया गया। उनको होने वाली समस्याओं के संबंध में चर्चा की गई। इस दौरान श्रीमती रामश्री ने बताया कि बीड़ी बनाती हैं और उनको सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। श्रीमती भगवती देवी ने बताया कि उनको मकान बनवाना है, लेकिन उसमें समस्याएं आ रही हैं। श्रीमती मीरा देवी कहा कि वह भी बीड़ी मजदूर हैं और आर्थिक स्थिति से बहुत अधिक संपन्न नहीं हैं। उसके बावजूद उन्‍होंने अपने दोनों बच्‍चों को पढ़ाया और आज वह जॉब की तलाश तलाश में लगे हैं। उनका बच्चा बीटेक कर चुका है और बेटी एमए कर चुकी है। इस मौके पर श्रीमती निधि वर्मा, हरिशंकर शर्मा, परशुराम, मोहम्मद हबीब आदि मौजूद रहे। अंत में आभार रोबिन वर्मा द्वारा व्यक्त किया गया।

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