कला की असली नायक जनता ही है-आरिफ शहडौली

जन संस्कृति दिवस के रुप में मनाया गया अखिल भारतीय इप्टा का 76वां स्थापना दिवस

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झांसी- ‘‘कला की असली नायक जनता ही है। सांस्कृतिक मूल्यों को बनाये रखने का काम इप्टा जैसे सांस्कृतिक आन्दोलन ही कर रहे हैं। इप्टा के कार्यक्रमों के माध्यम से नई पीढी सांस्कृतिक मूल्यों के साथ- साथ सामाजिक एवं मानवीय मूल्य भी सीखती है।’’
उपरोक्त विचार भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) झांसी इकाई द्वारा अखिल भारतीय इप्टा के 76वें स्थापना दिवस को जन संस्कृति दिवस के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी को मुख्य अतिथि के रूप संबोधित करते हुए जाने माने टीवी एवम् फिल्म कलाकार आरिफ शहडोली ने व्यक्त किये। उन्होनें कलाकारों का आव्हान किया कि वे सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखने एवं अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति के प्रदर्शन के लिए इप्टा के साथ आगे आये।
जनसंस्कृति दिवस की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ रंगकर्मी आर के वर्मा ने कहा कि इप्टा आधुनिक भारत का पहला सांस्कृतिक आन्दोलन है। यह आन्दोलन आज भी चल रहा है और कई रूपों में, कई संगठनों की शक्ल में देश के विभिन्न हिस्सों में इसे देखा जा सकता है। उन्होेंनें कहा कि बंगाल का भीषण अकाल हो या फिर आजादी की लड़ाई या किसानों-मजदूरों का संघर्ष, इप्टा ने हमेशा आगे बढ़कर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह किया। इप्टा सिर्फ कलाकारों का मंच नहीं बना, बल्कि इसमें वे सभी लोग शामिल हुए, जो जनसंस्कृति के पक्षधर थे और जन आंदोलन से जुड़े थे। इस आंदोलन में केवल लेखक, कवि, चित्रकार, रंगकर्मी ही नहीं, राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक, क्रान्तिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, मजदूर- किसान नेता, छात्र आंदोलन से जुड़े प्रतिनिधि, सभी इसके हिस्सा बने। इप्टा के कलाकारों ने अंग्रेजों का दमन सहा, आजाद भारत में अपनी सरकार की लाठियां खाई, जेल गये, प्रतिबंध का सामना किया, कई साथियों को जान से भी हाथ धोना पडा, लेकिन जन संस्कृति की लौ जलाये रखी।
इप्टा स्थापना दिवस को सम्बोधित करते हुए इप्टा के प्रान्तीय सचिव डाॅ. मुहम्मद नईम ने कहा कि इप्टा ने अपने जन्म से ही साफ कर दिया था कि कला सिर्फ कला के लिए नहीं बल्कि जीवन के लिए हो। आधुनिक भारतीय रंगमंच का इतिहास इप्टा का इतिहास है। इप्टा के नाटकों ने रंगमंच में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया। इप्टा के मंच से ही पंडित रविशंकर, सलिल चैधरी, प्रेम धवन, अमर शेख, भूपेन हजारिका, हेमाँगू विश्वास, सीताराम सिंह आदि ने अलग-अलग भाषाओं में कई गीतों को जो सुर दिया वो आज भी मील के पत्थर हैं। इन मशहूर गीतों में शामिल है – सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा, जंग है आजादी, भूखा है बंगाल, हम धरती के लाल, ओ गंगा बहती हो क्यूं, दमादम मस्त कलंदर आदि। प्रान्तीय सचिव डाॅ. मुहम्मद नईम ने अखिल भारतीय इप्टा की स्थापना के 76 वर्षों के गौरवशाली इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डाला।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी डा.रूपेश कुमार सिंह ने कहा कि जब भी देश में साम्प्रदायिक ताकतों ने सिर उठाया है, इप्टा ने अपने गीतों, नज्मों और नाटकों के माध्यम से समाज में प्यार, मुहब्बत और अमन की खुश्बू का पैगाम दिया है। डा.उमेश कुमार ने कहा कि जब तक भारतीय समाज में लोकाचार, लोक परम्पराओं, लोक संस्कृति को जिन्दा रखने के लिए ललित कलाओं को प्रोत्साहित करना होगा।
कार्यक्रम का प्रारम्भ रंगकर्मियों द्वारा इप्टा गीत ‘‘बजा नगाडा शान्ति का, शान्ति का, से हुआ। कार्यक्रम का संचालन अमन ने किया जबकि आभार अंशुल नामदेव ने व्यक्त किया। इस अवसर पर डा.संदीप आर्य, मयंक उबोरिया, संजय सतोइया, पवन कुमार, मीरा देवी, अभिषेक अहिरवार, शिवम् कुमार वर्मा, प्रियांशु गुप्ता, गरिमा, नरेंद्र कुमार आदि उपस्थित थे।

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