दीनदयाल आवासीय परिसर में किया गया गाजर घास उन्मूलन

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झांसी। बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के तत्वावधान में रविवार को गाजर घास उन्मूलन सप्ताह के अन्तर्गत विश्वविद्यालय के दीन दयाल आवासीय परिसर में सफाई अभियान का आयोजन किया गया।
गाजर घास उन्मूलन सप्ताह में कार्यक्रम समन्वयक एवं खरपतवार नासी विशेषज्ञ डा.सन्तोष पाण्डेय ने बताया कि गाजर घास बहुत ही खतरनाक खरपतवार हैं, जो बड़े आक्रामक तरीके से फैलती है। इसका वैज्ञानिक नाम पारथेनियम हिस्ट्रोफोरस है। उन्होंने बताया कि हमारे देश में इसका प्रवेश 1955 में अमेरिका व कनाडा से आयातित गेहुँ के साथ हुआ था। आज ये घातक खरपतवार पूरे भारत वर्ष में लाखों हैक्टेयर भूमि पर फैल चुका हैं। डा.पाण्डेय के अनुसार यह एकवर्षीय शाकीय पौधा है जो हर तरह के वातावरण में तेजी से उगकर फसलों के साथ-साथ मनुष्य और पशुओं के लिए भी गंभीर समस्या बन गया है। उन्होंने बताया कि एक पौधे से लगभग 25 हजार बीज बनते है जो तुरंत अंकुरण की क्षमता रखते हैजिसके कारण इसका प्रसार तेजी से होता है। इसके अतिरिक्त इसकी पत्तियों से निकलने वाले रसायन अन्य पौधों को उगने नहीं देते हैं।
पादप वैज्ञानिक डा.राजेश कुमार पाण्डेय ने बताया कि इस खरपतवार के लगातार संर्पक में आने से मनुष्यों में डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एर्लजी, बुखार, दमा आदि की बीमारियां हो जाती हैं। पशुओं के लिए भी यह खतरनाक है। इससे उनमें कई प्रकार के रोग हो जाते हैं एवं दुधारू पशुओं के दूध में कडवाहट आने लगती है। पशुओं द्वारा अधिक मात्रा में इसे खाने से उनकी मृत्यु भी हो सकती है। डा.पाण्डेय ने कहा कि इस विनाशकारी खरपतवार को समय रहते नियंत्रण में किया जाना चाहिए। गाजर घास को हाथ से न छूकर हाथ में पालीथिन डालकर फूल आने से पहले जड़ से निकालना चाहिए। गाजर घास को एकत्रित कर सुखाने के उपरांत मिट्टी में गाड़ देना चाहिए या उसे जला देना चाहिए ताकि उसके बीज से उसका आगे फैलाव न हो पाए।
गाजर घास उन्मूलन कार्यक्रम में डा.हेमन्त कुमार, डा.प्रकाश चन्द्रा, डा.सरोज कुमार सहित दीन दयाल आवासीय परिसर के शिक्षक एवं शिक्षिकाएं उपस्थित रही और परिसर एंव उसके आसपास के क्षेत्रों से गाजर घास को उखाडा।

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