विवि – रंगारंग प्रस्‍तुुतियों के साथ मनाया गया एनएसएस का स्‍थापना दिवस

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झांसी। बुंदेलखंड अनेक प्रख्यात ऋषियों और मुनियों की तपस्थली और कर्मस्थली रही। इसकी संस्कृति को सहेजने की जरूरत है। इस कार्य में युवा महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। यह उद्गार राष्ट्रीय सेवा योजना के 50वें स्थापना दिवस पर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के गांधी सभागार में आयोजित विकास चेतना पर्व कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में उत्तर प्रदेश के राज्य मंत्री हरगोविंद कुशवाहा ने व्यक्त किए।
उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे अपने बुंदेलखंड क्षेत्र की प्राचीन संस्कृति को सहेजने में सक्रिय भूमिका का निर्वहन करें। उन्होंने कहा कि जब क्षेत्र की संस्कृति मजबूत होगी तो दुनिया में खास पहचान भी बनेेगी। कुशवाहा ने विविध उदाहरण देते हुए विद्यार्थियों को सुझाव दिया कि वे अपने माता, पिता और गुरु को भरपूर सम्मान दें। इससे उन्हें सब कुछ हासिल होगा। उन्होंने अंत्योदय और सर्वोदय के आदर्शों का भी बखूबी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जब खेत और खलिहान अच्छी स्थिति में रहेंगे तो देश भी अच्छी स्थिति में रहेगा। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे गांवों की तस्वीर और तकदीर बदलने के लिए पुरजोर प्रयास करें। अपनी कविताओं और शेरो शायरीे से कुशवाहा ने विद्यार्थियों को भाव विभोर कर दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जे.वी. वैशम्पायन ने युवाओं का आह्वान किया कि वे संस्कृति की विशेषताओं को जानने को पूरे मनोयोग से अध्ययन करें। इसके साथ ही चिंतन और मनन भी करें ताकि उनकी खूबियों का बखूबी ठीक से भान हो सके। उन्होंने युवाओं से पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का पूरी गंभीरता से अध्ययन करने का आह्वान किया। साथ ही महात्मा गांधी को भी श्रद्धापूर्वक याद किया।
इससे पहले कार्यक्रम के मुख्य वक्ता दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, गोरखपुर के वाणिज्य संकाय के अधिष्ठाता प्रो. अवधेश कुमार तिवारी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय राजनीति को नैतिकता के धरातल पर लाने का अहम कार्य किया। पंडित दीनदयाल के एकात्म मानववाद के दर्शन का जिक्र करते हुए प्रो. तिवारी ने कहा कि यह मनुष्य को समग्रता में देखने का आग्रह करता है। उपाध्यायजी का मानना था कि भारतीय संस्कृति एकांगी नहीं है वरन यह एकात्मकता का पर्याय है। उनका मानना था कि देश के विकास के लिए स्वदेशी माॅडल ही विकसित किया जाना चाहिए। वे मशीनों के नियंत्रित उपयोग पर बल देते रहे। साथ ही आर्थिक विकेंद्रीकरण के पक्षधर भी रहे। उनका मानना था कि आर्थिक विकेंद्रीकरण के बिना आर्थिक समानता न आएगी। वे हमेशा इस बात की पैरोकारी करते रहे कि आर्थिक समस्याओं को स्वदेशी माॅडल के आधार पर ही हल किया जाना चाहिए। प्रो. तिवारी ने पंडित दीनदयाल से जुडे़ विविध प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने राजनीति में लोकतंत्र के आदर्शों को निरुपित करने के साथ साथ उसकी पवित्रता, गरिमा और शुचिता को अपने कर्मों से परिभाषित करने का महान कार्य किया। विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय सेवा योजना के राज्य जनसंपर्क अधिकारी डा. अंशुमाली शर्मा ने कहा कि उतार और चढ़ाव ही जीवन का नाम है। हर व्यक्ति के जीवन में ये सामने आते हैं। उन्होंने कहा कि एक विचार, एक किताब या एक व्यक्तित्व किसी भी व्यक्ति का जीवन बदल सकता है। इस संबंध मंे उन्होंने महात्मा गांधी समेत कई महापुरुषों के उदाहरण भी पेश किए। उन्होंने कहा कि संस्कार जीवनभर काम आते हैं। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे जीवन की चुनौतियों से निपटने की कला सीखें। जीवन की सफलता के लिए अपने ल़क्ष्य जरूर तय कर लें। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती, महात्मा गांधी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के चित्रों पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन और राष्ट्रगीत के गायन के साथ हुआ। बाद में राष्ट्रीय सेवा योजना के विश्वविद्यालय समन्वयक और हिंदी विभाग के अध्यक्ष डा. मुन्ना तिवारी ने कार्यक्रम मंे आए सभी अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने मुख्य वक्ता और अतिथियों की विशेषताओं से भी स्वयंसेवकों को परिचित कराया। इस कार्यक्रम में अतिथियों ने एनएसएस की स्मारिका सत्प्रेरणा का विमोचन भी किया। सभी अतिथियों को स्मृतिचिह्न, शाल और श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय सेवा योजना की एक इकाई के कार्यक्रम अधिकारी डा. मुहम्मद नईम ने किया। इस कार्यक्रम में प्रो. वीके सहगल, कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. सीबी सिंह, प्रो. एमएम सिंह, कुलानुशासक प्रो. आरके सैनी, प्रो. प्रतीक अग्रवाल, डा. पुनीत बिसारिया, डा. अचला पाण्डेय, डा. यतींद्र मिश्रा, डा. संतोष पाण्डेय, डा. शिल्पा मिश्रा, डा. श्वेता पाण्डेय, डा. उमेश कुमार, सतीश साहनी, उमेश शुक्ल, अभिषेक कुमार, डा. अजय कुमार गुप्ता समेत विभिन्न संस्थानों के शिक्षक शिक्षिकाएं उपस्थित रहे।
बाद में राष्ट्रीय योजना की विभिन्न इकाइयों के सदस्य स्वयंसेवकों ने गीत, नृत्य और नाटिकाओं की रंगाारंग प्रस्तुतियों से विद्यार्थियों और शिक्षकों की वाहवाही बटोरी।

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