विदेशोंं में प्रचलित अर्थशास्त्र भारतीय संस्कृति के विपरीत : प्रो0 वाजपेयी

विवि के अर्थशास्त्र संस्थान में हुआ विशेेेेष व्‍याख्यान

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झांसी। बुन्देलखण्ड विश्‍वविद्यालय के बैंकिंग, अर्थशास्त्र एवं वित्त संस्थान में हिमाचल विश्‍वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो0 अरूण दिवाकर नाथ वाजपेयी ने ब्रह्माण्ड एवं अर्थशास्त्र विषयक व्याख्यान दिया। व्याख्यान में प्रो0 वाजपेयी ने अर्थशास्त्र के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए विषय को भारतीय परिप्रेक्ष्य में विकसित करने पर जोर दिया।
अपने उद्बोधन में प्रो0 वाजपेयी ने पश्‍चिम में प्रचलित अर्थशास्त्र के उपभोगवाद, पदार्थवाद, मुद्रावाद को भारतीय संस्कृति व मानवीय संवेदनाओं के विपरीत बताते हुए समाज के लिए हानिकारक बताया। आर्थिक विचारों के इतिहास को समझाते हुए उन्होंने राॅबिंस की असीमित आवश्‍यकताओं से लेकर जेके मेहता के आवश्‍यकताविहीनता का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया। प्रो0 वाजपेयी ने मूलभूत आवश्‍यकताओं के सीमित होने एवं संस्कारों के रूप में परिलक्षित होने पर प्रकाश डाला। ‘तेन त्यक्तेन भुजीथाः’ अर्थात जीवन का उपभोग त्याग के साथ करो, विषय पर चर्चा करते हुए उन्होंने सन्तुलन प्राप्त करने के महत्व को स्पष्ट किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बुन्देलखण्ड विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो0 सुरेन्द्र दुबे ने अपने व्यक्तिगत संस्मरणों से जीवन की सीमित आवष्यकताओं ओर एकात्म मानवतावाद पर प्रकाष डाला। कुलपति ने प्रो0 वाजपेयी के विचारों से सहमति जताते हुए उन्हें अपने व्यावहारिक जीवन में आत्मसात करने का आव्हान किया। प्रो0 दुबे ने आषा व्यक्त की कि उपस्थित श्रोता विषेशकर अर्थशास्त्र एवं वित्त संस्थान के शिक्षक प्रो0 बाजपेयी के विचारों को अवष्य ही अपने जीवन में आत्मसात करेंगे। कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती वन्दना तथा दीप प्रज्वलन से हुआ। आमंत्रित अतिथियों को पुश्प कलिका देकर सम्मानित किया गया। सर्वप्रथम संस्थान के निदेषक प्रो0 एमएल मौर्य ने आमंत्रित अतिथियों का स्वागत करते हुए व्याख्यान की रूपरेखा प्रस्तुत की। अंकिता जैस्मिन लाल ने प्रो0 वाजपेयी का संक्षिप्त जीवन वृत्त प्रस्तुत किया। संचालन डॉ0 इरा तिवारी ने किया। आभार प्रो0 सीबी सिंह ने व्यक्त किया। इस अवसर पर प्रो0 देवेश निगम, डॉ0 डीके भट्ट, डॉ0 विनम्रसेन सिंह, डॉ0 अमित तिवारी, महेन्द्र आदि उपस्थित रहे।

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