साहित्य करता रहा है जनजागरण, विपत्ति से लड़ने में होता है सहायक : कुलपति

बीएलएफ बुंदेलखंड की संस्कृति को सहेजकर आगे बढ़ा रहा

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झांसी। साहित्य हमेशा से समाज का जनजागरण करता रहा है। कबीर, तुलसी जैसे रचनाकारों के दोहे हमेशा विपत्ति से लड़ने में सहायक होते है। हमारा साहित्य तो इतना सशक्त रहा कि ‘ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया’ जैसी पंक्तियों ने साहित्य में दृश्य भी उपस्थित किया। यहीं से निकले मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि का दर्जा दिया गया। बुंदेलखंड लिट्रेचर फेस्टिवल हजारों वर्षों की इसी कला, संस्कृति और साहित्य को सहेजकर आगे बढ़ रहा है। ये बातें बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुकेश पांडेय ने कहीं। वे मुख्य अतिथि के रूप में बीएलएफ-3.0 के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
इससे पहले कुलपति, कुलसचिव डाॅ. विनय सिंह, पत्रकार राम मोहन शर्मा, ले. कर्नल मनोज सिन्हा की उपस्थिति में दीप प्रज्ज्वलन के साथ शुक्रवार को तीन दिवसीय बुंदेलखंड लिट्रेचर फेस्टिवल 3.0 का आगाज हुआ। पहले दिन का पहला सत्र ‘आम आदमी और पुलिस प्रशासन’ था। जिसमें पुलिस अधिकारी रजनी सिंह और संतोष पटेल से धर्मेंद्र कुशवाहा ने सवाल किए। पहले सवाल कि चौबीस घंटे की नौकरी में सोशल मीडिया पर रील बनाने के सवाल पर कहा कि नौकरी के बीच ही वीडियो बनाते हैं। यह सोशल मीडिया के माध्यम से पुलिस के अच्छे काम जनता तक पहुंचाने का प्रयास है। पुलिस से भय और अपनापन कितना जरूरी है इस सवाल पर कहा कि अपराधियों के लिए तो डर जरूरी है पर जनता जरूरत के लिए आगे आए, हम सभी प्रेम पूर्वक समस्याएं हल करते हैं। महिलाओं की सुरक्षा चुनौतीपूर्ण रहती है इसे सुलझाने के प्रयास पर रजनी ने कहा कि चुनौती तो बहुत है पर उनकी मूलभूत समस्या को समझकर कार्रवाई करती हूं। बचपन में पुलिस से कितना डरते थे के सवाल पर रजनी ने कहा कि पिताजी खुद पुलिस में थे इसलिए कभी डर नहीं लगा। बल्कि कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह के माहौल से निकालकर उन्होंने मुझे भी पुलिस अधिकारी बनाया। वक्ता संतोष पटेल ने कहा कि अज्ञानता के कारण लोग डरते है, मैं भी डरता था, पर जानकारी होने पर लोग हर प्रकार के मुद्दे पर पुलिस से संवाद करते हैं। पुलिस की छवि इतनी नकारात्मक है कि न दोस्ती अच्छी, न दुश्मनी के सवाल पर रजनी ने कहा ऐसा कुछ नहीं है कभी किसी परिस्थिति के कारण ये कहावत बना दी गई है। संतोष ने कहा कि हम तो लोगों से दोस्ती करके उन्हें जानकारी देते हैं, ज़रूरत पड़ने बार कई बार उनके साथ डीपी लगवाकर फ्राॅड से बचवाया है। ऐसी बातें निराधार हैं‌।
दूसरे सत्र का विषय साहित्य, शिक्षा और समाज रहा। इसके संचालक अभिनव कुमार और वक्ता संपादक पंकज चतुर्वेदी, साहित्य मर्मज्ञ दीपक मशाल, लेखक प्रवीण कुमार रहे। इसमें साहित्य की शिक्षा में आवश्यकता पर प्रवीण ने कहा कि साहित्य क्रांति नहीं करता, लेकिन क्रांति करने की ओर इशारा जरूर करता है। पंकज ने लोकतंत्र जीवित रखने के लिए किताबों और साहित्य को जिंदा रखना जरूरी बताया। लेखक को क्या करना चाहिए कि साहित्य जरूरतमंद तक पहुंचे, साथ ही लंबी विधा (उपन्यास) पढ़ने में पाठक रुचि लें, इसका क्या उपाय है सवाल पर प्रवीण ने कहा पाॅपुलर साहित्य सकून देता है जबकि उपन्यास जैसी चीजें हमारे अंदर खंदक (परेशानी) पैदा करतीं हैं। इसलिए लंबी पढ़ने के इच्छुक इसे स्वयं खोज लेते हैं।
तीसरा सत्र ‘बात, बुंदेलखंड के साहित्य, कला और संस्कृति की‘ के वक्ता डाॅ. अजय त्रिवेदी और एन.एच.एम के मंडलीय परियोजना प्रबंधक आनंद चौबे रहे। उनसे बात अनिरुद्ध रावत ने की। वास्तविक इतिहास जानने के लिए क्या करना चाहिए सवाल पर अजय ने कहा कि इतिहास सिर्फ सूचनाओं का कलेक्शन नहीं समग्र चिंतन है। इसलिए इसे जीवन का हिस्सा मानकर पढ़ना चाहिए। संस्कृति के संरक्षण में विभिन्न समितियों के योगदान पर आनंद ने कहा कि समितियों के ही प्रयास से बुंदेलखंड व्यंजन समिति ने विलुप्त होतीं दरूरा, लपटा जैसी खाने की चीजों पर पुस्तक प्रकाशित की। एक समिति के प्रयासों से बुंदेलखंड के एक गणितज्ञ को पद्मश्री पुरस्कार मिला।
चतुर्थ सत्र के वक्ता पत्रकार राम मोहन शर्मा रहे। संचालन डाॅ. बृजेश दीक्षित ने किया। इस सत्र में ‘राम नाम की गूंज‘ विषय पर राम मोहन ने कहा कि जो वंचित होता है उसे ही भगवान चुनते है इसलिए भगवान ने आर्थिक सामाजिक रूप से पिछड़े बुंदेलखंड को चुनकर आगे बढ़ाया। ऐसे राम को देखकर सबके मन में प्रसन्नता आती है और सारा देश कल्याण की ओर आगे बढ़ता है।
पांचवा सत्र का विषय ‘स्टार्टअप की आंधी में टिके रहने की चुनौती‘ रहा। जिसमें ग्रेजुएट चाय वाली के नाम से मशहूर प्रियंका गुप्ता ने इमानदारी से अपनी काम में लगे रहना बिजनेस का सबसे बड़ा गुण बताया। साथ ही नए बदलावों को आत्मसात करने पर बल दिया। इस सत्र के संचालक अनुपम व्यास रहे।

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