लॉक-डाउन: खाना बनाना सिखाने के बहाने करवाया जा रहा पूरा काम – स्‍टोरी 1

0
917

कोरोना संक्रमण एक घातक महामारी है और इसमें घर में ही रहें और सेफ रहें। चाहे उसमें आप कुछ कर पाएं तो ठीक या फिर आराम से बड़ा कोई काम नहीं है। ऐसे में खाली समय को लोग अपनी अपनी तरह से उपयोग में ला रहे हैं। कोई खाना बनाना सीख रहा है, तो कोई फिल्‍मे देख रहा है। कोई अपना सामान्‍य ज्ञान बढ़ा रहा है। वहीं कुछ लोगों के साथ ऐसी हास्‍यास्‍पद घटनाएं हो रही हैं, जिनका वह पूरा लुत्‍फ उठा रहे हैं। वहीं यह एक ऐसा मौका वर्षों बाद लोगों को मिला है, जबकि वह अपने परिवार को समय दे पा रहे हैं। लोग एक साथ परिवार के संग भोजन कर उनके हाल चाल जान रहे हैं। बच्‍चों को व्‍यस्‍तता के चलते पढ़ा नहीं पाते थे। अब पढ़ा रहे हैं। अपने परिवार की महिलाओं का साथ देते हुए उनके कामों में मदद कर रहे हैं। कहने को तो लॉक डाउन अच्‍छा नहीं माना जा रहा है, लेकिन परिवार के उन सदस्‍यों को यह एक सुनहरा समय लग रहा है, जो माता पिता अपने बच्‍चों से महीनों बात नहीं कर पा रहे थे, तो बच्‍चे पिता के साथ नहीं बैठ पाते थे। पत्‍नियां अपने पति के लिए सिर्फ एक घरेलू कामकाजी महिला से ज्‍यादा और कुछ नहीं थीं। आईये जानते हैं, लोगों से ही लॉक डाउन के दौरान उनके साथ हो रहे उनके खटठे मीठे अनुभवों के बारे में।

व्‍यंजन बनाकर खिलाने पर पत्‍नी से पा रहे हैं तारीफ

बुन्‍देलखण्‍ड विश्‍वविद्यालय में फार्मेसी विभाग में सहायक आचार्य पद पर कार्यरत डॉ. सुनील निरंजन बताते हैं कि जबसे लॉक डाउन हुआ है, तभी से वह घर पर हैं और यह समय शुरु शुरु में काफी अटपटा सा लगा। पर धीरे धीरे इसकी आदत सी हो गई। काम करने का सारा टाईम टेबल बदल गया। उन्‍होंने अपना समय घर के कामों में बिताना प्रारम्‍भ कर दिया। डॉ. साहब को खाना बनाना पसंद था, तो उन्‍होंने सोचा चलो कुछ नया किया जाए। वह यू टयूब देखकर खाना बनाने का प्रयास करते थे, जिसको देखकर उनकी पत्‍नी खुद यू टयूब के स्‍थान पर डॉ. साहब को खाना बनाना सिखाने लगीं। इस सम्‍बंध में डॉ. साहब बताते हैं कि कभी कभी उनको लगता था कि वह खाना बनाना सीख रहे हैं या इस बहाने उनसे घर के काम करवाए जा रहे हैं। फिलहाल डॉ. साहब बताते हैं कि वह अपनी पत्‍नी की मदद के लिए सुबह उठकर दूध लेना या फिर बाहर की झाड़ू लगाकर पानी से धुलाई करना फिर पोधो को पानी देना इत्यादि सुबह के कार्यो को भी करने लगे हैं। घर के कामों के अलावा वह अपने फार्मेसी विभाग की समय सारणी के अनुसार ऑनलाइन क्लास भी घर से ही ले रहे हैं। यह सब अब उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया है। इससे उनका समय व्‍यतीत होता है, तो परिवार के सदस्‍यों की कामों में मदद हो जाती है। वहीं डॉ. साहब बताते हैं कि उनकी लगन को देखते हुए अब उनकी पत्‍नी कहती हैं कि आप बहुत अच्‍छा खाना बनाना सीख गए हो। इस दौरान उन्‍होंने काफी अच्‍छे अच्‍छे व्‍यंजन बनाने सीखे हैं, और पूरे परिवार के साथ उन व्‍यंजनों का मजा लेते हैं।

नगरा का मौड़ा एक्‍टिंंग करने की जगह बना रहा सरसों का साग और क्राफ्ट के सामान


अपने नगरा का मौड़ा तो याद होगा न आपको जो मुम्‍बई जाकर झांसी सहित बुन्‍देलखण्‍ड का नाम रोशन कर रहा है। हां वही ब्रजेश मौर्या जिसने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बनाया था। अब वह कई वेब सीरिज में काम कर रहा है और दिन ब दिन तरक्‍की करता जा रहा है। लॉक डाउन के इस दौर में वह मुम्‍बई में अपने परिवार से दूर रह रहा है। मुम्‍बई में कोरोना संक्रमण काफी जबरदस्‍त तरीके से फैला हुआ है। ऐसे में वहां झांसी की तरह छूट तो नहीं है और न ही परिवार के साथ बिताने वाला समय ही है। अब एकांकी समय में अपने नगरा को मौड़ा क्‍या कर रहा है, यह पूछने पर उसने दूरभाष के माध्‍यम से एशियाटाईम्‍स की सम्‍पादकीय टीम को बताया कि घर में लंबे समय तक कैद रहना मुश्किल लगता है, लेकिन यह सत्य यह है कि कोरोना से बचाव के लिए घर में रहना ही सुरक्षित है तो मैं लॉक डाउन का पूरी तरह से पालन कर रहा हूं। मैं रोज कुछ ना कुछ क्रिएटिव करता रहता हूं, जैसे कि आर्ट बनाना, लकड़ी का चश्मा, मोबाइल स्टैंड, हार्ट शेप आदि मिट्टी का शंख, एक्टिंग की प्रैक्टिस, स्क्रिप्ट याद करना, कुछ इंटरेस्टिंग फिल्में देखना, रोज एक्सरसाइज करना, शॉर्ट वीडियो बनाना आदि दिनचर्या का हिस्‍सा बन चुके हैं। मैं इस समय मुंबई में हूं और जिस दिन लॉक डाउन शुरू होना था, उस दिन भी शूटिंग पर था। अब रोज अपनी फैमिली से वीडियो कॉल पर अपना हाल-चाल बताता हूं और अपनी फैमिली का हाल चाल पूछता रहता हूं। इस दौरान मैं जो बचपन में किया करता था जैसे पेंटिंग, इंडोर गेम, वीडियो गेम यह सब मैं इस लॉक डाउन में कर रहा हूं। संक्षेप में कहा जाए तो मैं इस लॉक डाउन को अपना बचपन समझ कर निकाल रहा हूं। साथ ही यहां रहकर खाना बनाना, कपड़े धोना, घर की साफ सफाई करना आदि काम भी करना होता है। यह सभी चीजों में परिवारजनों के साथ यू टयूब का काफी सहारा मिल जाता है।

कोरोना ने धैर्य के साथ थोड़े में गुजारा करना सिखाया

मार्गश्री संस्था के निदेशक ध्रुव सिंह यादव बताते हैं कि हमारा एनजीओ कई राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीाय संगठनों के साथ जुड़ा हुआ है। हम लोग ट्रेनिंग, रिसर्च, सर्वे, महिला विकास, आजीविका एवं जल सरंक्षण आदि पर कार्य करते हैं। इस कारण वह माह में 10-12 दिन बाहर रहता थे, जो अब संभव नहीं है। ऐसे में वह लॉकडाउन के दौरान ज़ूम मीटिंग, वीडीओ कालिंग, ऑनलाइन कार्य पर फोकस कर रहे हैं। यह पहला मौका है जब वह पूरा समय परिवार को दे पा रहे हैं। अच्छा भी लगता है, क्योंकि शादी के 33 वर्ष में पहली बार इतना समय पत्नी एवं बच्चों को दे पाया। खाली समय में सोशल मीडिया, घर के काम, अपने काम की भविष्य की कार्ययोजना, रिश्तेदारों, दोस्तों से फ़ोन पर बात करना प्रमुख रूप से होता है। इस दौरान नया यह सीखा कि जीवन में कभी भी कुछ भी हो सकता है। उसके अनुसार अपने को तैयार करना है। कोरोना जैसी आपदा ने सिखाया कि अभी बहुत बड़ी संख्या में लोग रोज़ी रोटी को मोहताज़ हैं। संसाधनों का अत्यंत अभाव है, गरीब परिवार संकट में हैं, मुझे बहुत सोचने पर मजबूर किया है। इसको लेकर मैं थोड़ा दुखी और भयभीत हूँ कि आगे क्या होगा। परिवार में पहले भी जब समय होता था, काम कर लिया करते थे, मगर अभी खूब सारा समय है तो सब्जी, दूध, राशन, दवाई या अन्य सभी बाहर के काम मैं ही करता हूँ। कभी कभी किचिन में भी काम करता हूँ। एक दूसरे का सहयोग, मन की शांति, धैर्य, समझौता, थोड़े में गुजारा करना आदि की भी अनुभूति हुई है।

आप भी इसमें हो सकते हैं शामिल ऐसे मौकों के विवरण सहित फोटो भेज दिजिए व्‍हाट्स अप नम्‍बर 9415996901 पर, अपने किए अनोखे अनुभव बताइये और क्‍या सिखाया आपको इस महामारी के दौर में लाॅॅॅकडाउन के दौरान

LEAVE A REPLY