रहमत का फरिश्‍ता बनती जा रहीं यह समाजसेवी महिलाएंं

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झांसी। हमारे देश में नारी को देवी की तरह यूं ही नहीं पूजा जाता है। हर कदम पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही नारी के बारे में यह कार्य आमतौर पर लोगों की सोच से परे रहा, जो कि इन समाजसेवी महिलाओं ने कर दिखाया। इन महिलाओं का धर्म, जाति और संगठन भले ही अलग अलग है, लेकिन सोच सबकी एक ही है कि किसी भी तरह समाजसेवा में आगे बढ़कर कदम उठाना है और दूूसरों की दुुुुख तकलीफ को दूर करना है। ऐसा ही विगत कुछ दिनों में इन समाजसेवी महिलाओं नेे कर दिखाया है। रक्‍तदान एक महादान है, जिसको लेकर संगठन अक्‍सर बातें करते रहते थे और अब इन महिलाओं ने इसको अपना लक्ष्‍य बना लिया है। किसी जरुरतमंद को खून की आवश्‍यकता है यह एक सूचना पर इनका तंत्र सक्रिय हो उठता है और जब तक यह उस जरुरतमंद की आवश्‍यकता पूरी नहीं कर लेतीं, तब तक इनके लिए खाना पीना सोना हराम हो जाता है।
ऐसा ही कुछ दिनों पूर्व मेडिकल में एक जरुरतमंद को खून की आवश्‍यकता होने पर कोहिनूर की अध्‍यक्षा वैशाली पुुंंशी ने जहां रक्‍तदान किया, तो आज एक मासूम बच्‍चे की जान बचाने की खातिर जेसीआई की एक समाजसेवी महिला स्‍वलेहा खान ने रक्‍तदान किया। उस बच्‍चे का आज आपरेशन होना है।
उल्‍लेखनीय है कि जेसीआई गूंज की सदस्‍याओं ने कुछ दिन पूर्व इसका जिम्‍मा उठाया था और लोगों की रक्‍तदान की आवश्‍यकता की पूर्ति के लिए मदद करने की सोच तय की थी। इसकेे लिए पूर्व अध्‍यक्ष योगिता अग्रवाल को पूरी जिम्‍मेदारी सौंपी थी और उन्‍हाेंंने इसका जिम्‍मा ही नहीं उठाया, पूरी तरह इस काम में तत्‍परता से लगी हुई हैं। महानगर में पिछले काफी दिनों से चल रहे महिला संगठनों को लेकर लोगों की एक सोच बनी थी कि यह सब अमीर परिवार की महिलाएं हैं अपना समय व्‍यतीत करने के लिए समाजसेवा का ढोंग करती हैं और फोटो खिंचवाकर समाचार पत्रों की सुर्खियां बनना ही इनका काम है। इन महिलाओं के समाज के प्रति किए गए कार्यों को देखते हुए धीरे धीरे लोगों को अपनी धारणा बदलने पर मजबूर कर दिया और आज इनको समाज इज्‍जत भरी नजर से देखने के साथ ही उनके कामों को सराहने लगा है। इनमें से कुछ ही नाम ऐसे हैं, जोकि आज एक पहचान बना चुके हैं, जिनमें ममता दासानी, शालिनी गुरबख्‍शानी, कंचन आहूजा, रेखा राठौर, मोनिका जैन मित्‍तल, अपर्णा दुबे, विक्रमजीत कौर, मधु कुशवाह, अंजली सिंह, नीतू पटवा, रजनी गुप्‍ता, आरती बेरी, दिव्‍या अग्रवाल, शिखा मोदी, सीमा अग्रवाल, ममता साहू आदि ही हैं। इसके बाद भी इनके पीछे ऐसी महिलाओं की संख्‍या काफी तादाद में हैं, जिनको भले ही लोग न जानें, लेकिन वह लगातार इन संगठनों में समाजसेवा के कामों में निस्‍वार्थ भाव से लगी हुुुुई हैं। सबसे बड़़ी़ बात यह सभी ऐसे परिवारों से नहीं हैंं कि इनको अपनी कोई परेशानियां नहीं हैं, लेकिन उसके बाद भी परिवार के साथ समाजसेेेेवा के लिए वक्‍त निकाल कर यह लोग दूसरों की तकलीफ को दूर करने की काेशिश में लगी हुईं हैं। एक समय था जब लायंस क्‍लब, रोटरी क्‍लब, इनरव्‍हील क्‍लब सहित गिने चुुुुने संगठन महानगर में जाने माने नाम थे, लेकिन उन संगठनों का अपना दायरा था और अपने तरीके थे। इन सभी से इतर महिला समाजसेवियाेें नेे आज सभी संगठनों को पीछे छोड़़ दिया है। अब यह खुद में एक संगठन है और लोगों की मदद के लिए प्रयासरत हैं।

रक्‍तदान में इन संगठनाेें केे सहभागी बनें

तकलीफ का कोई ठिकाना नहीं है और वह कभी भी किसी के साथ भी आ सकती है। रक्‍तदान के शिविर लगाकर रक्‍त देने के बाद भी लोगों को मौके पर उक्‍त रक्‍त नहीं मिल पाता है। ऐसे में गूूंज की पूर्व अध्‍यक्ष योगिता अग्रवाल का कहना है कि उनके संगठन से जुड़कर लोग हर ब्‍लड ग्रुप के अलग अलग ग्रुप बना लें, जिससे रोगी या बीमार को मौके पर सही रक्‍त मिल सके। ब्‍लड बैंक की आवश्‍यकता ही न पड़़े़।

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