रेलवे मुलाजिमों ने किराये पर दिए सरकारी क्वार्टर

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झाँसी। रेलवे के कई मुलाजिमों ने अपने घर बनाकर विभाग से मिले सरकारी क्वार्टर किराये पर दे रखे हैं। मुलाजिमों से नॉमिनल किराया उनके वेतन में से कटता है। खुद मुलाजिम सरकारी क्वार्टर किराये पर देकर मोटी कमाई कर रहे हैं।
रेलवे में काम करने वाले कर्मचारियों की सुविधा के लिए रेल मंडल के द्वारा उन्हें सरकारी क्वार्टर मुहैया करवाए जाते हैं। इसमें कर्मचारियों को मामूली किराया अदा करना पड़ता है। रेल मंडल को कर्मचारियों के द्वारा नाममात्र किराये की अदायगी की जाती है। रेलवे कर्मचारी अपने खुद के मकानों में रह कर सरकारी क्वार्टरों में रह रहे किराएदारों से हजारों रुपए वसूलते हैं। कुछ कर्मचारियों ने सरकारी क्वार्टरों से मिलने वाले किराये को अपनी आय का साधन बना लिया है। किरायेदारों से क्वार्टर में रहने के लिए करीब तीन हजार रुपये तक का किराया वसूला जाता है। कॉलोनियों में कुछ ऐसे किरायेदार भी हैं जो कि पिछले कई सालों से सरकारी क्वार्टरों में रह रहे हैं। लेकिन उनके खिलाफ किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। रेलवे प्रशासन रेलवे कर्मचारियों द्वारा सरकारी क्वार्टरों को किराये पर देने वालों पर कार्रवाई शुरू करने जा रहा है।
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रेलवे स्टेशनों पर लॉकर और क्लॉक रूम चार्ज बढ़ाने की तैयारी

मंडल रेल प्रबंधक लेंगे निर्णय
झाँसी। इंडियन रेलवे ने स्टेशनों पर बने लॉकर और क्लॉक रूम चार्ज बढ़ाने की तैयारी कर ली है। हालांकि इसके साथ ही यह भी तय किया गया है कि अब रेलवे बोर्ड की बजाय यह अधिकार डिवीजनल रेलवे मैनेजरों (डीआरएम) को दिया जाए। वे अपने क्षेत्र की स्थिति को देखते हुए नया चार्ज तय कर सकेंगे।
रेलवे ने पिछली बार ये दरें जनवरी 2013 में तय की थीं। उस वक्त रेलवे ने पहले 24 घंटे के लिए क्लॉक रूम में 15 रुपये और लॉकर के लिए 20 रुपये तय किया था। 24 घंटे से अधिक अगले 24 घंटे के लिए क्लॉक रूम चार्ज 20 रुपये और लॉकर चार्ज 30 रुपये तय किया था। रेलवे सूत्रों का कहना है कि डीआरएम को भले ही यह अधिकार दिया गया हो, लेकिन इतना तय है कि ये चार्ज बढ़ाए जा रहे हैं। हालांकि, अलग-अलग डिवीजन में यह अलग हो सकते हैं, क्योंकि डीआरएम अपने क्षेत्र के स्टेशनों के लिए यह चार्ज तय करेंगे। ऐसे में भीड़भाड़ वाले स्टेशनों पर यह चार्ज अधिक हो सकता है।
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खत्म होंगे रेल के लाल, हरे सिग्नल!

रेलवे की सिग्नल प्रणाली में बदलाव की तैयारी
झाँसी। अब कोहरे में ट्रेनें न तो लेट होंगी, न ही दुर्घटनाग्रस्त। रेलवे दुर्घटनाओं में कमी लाने हेतु अब बहुत जल्द ही वर्तमान सिग्नल प्रणाली को पूरी तरह से बदलने पर विचार कर रही है। अभी तक लोकोमोटिव चालकों के लिए वर्षों से चली आ रही लाल-हरा-पीला सिग्नल की व्यवस्था को समाप्त करने का मन बना लिया है।
जानकार लोगों का कहना है कि रेल मंत्रालय पूरे देश में वर्तमान सिग्नल प्रणाली को बदलने की योजना बना रहा है। इसके लिए एल्सटॉम, एनसल्डो, सिमंस, बॉम्बार्डियर एवं थेल्स सहित यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्टम (ईटीसीएस) की कुल छह प्रमुख कंपनियां देश में सिग्नल प्रणाली पर काम कर रही है। बताया जाता है कि ईटीसीएस प्रणाली में ट्रेन चालक के लिए एक डैश बोर्ड होता है, जिससे पता चलता है कि कितनी दूरी आगे बढऩे के लिए वे सुरक्षित हैं। साथ ही इसमें एक स्पीडोमीटर भी रहता है जो हरे रंग में गति की सीमा निर्धारित करता है और पीले रंग में ट्रेन की रफ्तार दिखाता है। चालक जैसे ही ट्रेन की रफ्तार को तेज करता है कि डैश बोर्ड पर लाल रंग का अलर्ट दिखने लगेगा। अगर चालक तेज गति के साथ पांच किलोमीटर की दूरी तय करता है तो ट्रेन में अपने आप ब्रेक लग जाएगी। वर्तमान समय में ट्रेन चालकों के पास ऐसी कोई तकनीक उपलब्ध नहीं है। वे पूरी तरह स्टेशनों के आगे जले सिग्नल पर ही निर्भर हैं। इससे घने कोहरे एवं खराब मौसम में जरा सी चूक होने पर दुर्घटना का कारण बन जाती है। नई तकनीक लाल-हरा सिग्नल का स्थान लेगी और वर्तमान समय की लाल-हरा सिग्नल व्यवस्था को समाप्त कर दी जाएगी।

सिग्नल प्रणाली की शुरुआत हुई थी 1893 से
भारत की पहली रेल 1853 में मुंबई में वडी बंदर और ठाणे के बीच चली थी लेकिन सिग्नल प्रणाली की शुरुआत 1893 में गाजियाबाद से पेशावर के बीच 23 स्टेशनों पर हुई थी। इसका श्रेय दो अंग्रेज सिग्नल इंजीनियरों लिस्ट और मोर्स को जाता है जिन्हें भारतीय सिग्नल प्रणाली का पिता कहा जाता है। रेल मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘देश में सिग्नल प्रणाली में बदलाव की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी और तबसे कुछ बदलाव हुए हैं लेकिन इस बार हम वैश्विक तकनीक लाए हैं।’ ईटीसीएस के तहत भी लाइन क्लीयरेंस की जिम्मेदारी स्टेशन मास्टर की ही होगी। इस प्रणाली के लिए ट्रेन, पटरियों और ट्रेन इंटरफेस के लिए उपकरण लगाने की जरूरत है। इसके दो तकनीकी स्तर हैं।

ऑटोमैटिक सिग्नेलिंग सिस्टम की सुविधा
पहले स्तर में इंटरफेस को संभव बनाने के लिए रेलों पर एक इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसपोर्डर लगाना होगा। अगला स्तर ट्रेन और स्टेशनों के बीच ऑटोमैटिक रेडियो कनेक्शन का होगा। सेंट्रलाइज्ड ट्रैफिक कंट्रोल (सीटीसी) में इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग और ऑटोमैटिक सिग्नेलिंग सिस्टम की सुविधा है। सीटीसी सिस्टम से ट्रेनों की वास्तविक स्थिति पर नजर रखने और बेहतर प्रबंधन में मदद मिलेगी। इसमें सेंट्रलाइज्ड ट्रैफिक कंट्रोल ऑफिस से सिग्नल के दूरस्थ संचालन की सुविधा है।
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रेल कर्मचारियों की पदोन्नति पर डाका

कैरिज एण्ड वैगन विभाग का मामला
झाँसी। रेल मंडल के अंतर्गत कैरिज एण्ड वैगन विभाग में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए विभागीय कोटे के तहत आरक्षित किये गए 25 प्रतिशत पदों को भी अब आरआरबी के माध्यम से भरने का निर्णय ले लिया गया है। बताया जाता है कि इस निर्णय के बाद से रेल कर्मचारी खासे नाराज हैं और अब वे अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं।
रेलवे सूत्रों ने बताया कि रेलवे बोर्ड की व्यवस्था के अनुसार रेलवे के विभिन्न विभागों में पदों की भर्ती के लिए जो नियम बनाये गए हैं उसके अंतर्गत 50 प्रतिशत पद आरआरबी के माध्यम से, 25 प्रतिशत विभागीय कोटे के तहत व 25 प्रतिशत पद इंटरमीडियट की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले कर्मचारियों से भरा जाना चाहिए, लेकिन झाँसी रेल डिवीजन के कैरिज एण्ड बैगन विभाग के अधिकारियों ने रेल कर्मचारियों की पदोन्नति पर डाका डालते हुए जो पद विभागीय कोटे के तहत आरक्षित किए गए थे उन्हें भी आरआरबी के माध्यम से भरने का निर्णय ले लिया है। बताया जाता है कि इस निर्णय के बाद से इस विभाग में पहले से कार्यरत टेक्निीशियन थ्री से लेकर एसीएम कैडर तक के कर्मचारियों की पदोन्नति का रास्ता बंद हो गया है।

ऐसे समझें
कैरिज एण्ड बैगन विभाग में विभागीय कोटे के तहत टेक्निीशियन से एसीएम तक के पदों की स्वीकृत संख्या 15 है, लेकिन इन पदों को सीधे आरआरबी के माध्यम से यदि भर लिया जाएगा तो टेक्नीशियन-3 कर्मचारी का प्रमोशन टेक्नीशियन-2 में, टेक्नीशियन-2 का टेक्नीशियन-1 में व टेक्नीशियन-1 कैडर का कर्मचारी एमसीएम के पद पर कभी प्रमोशन नहीं ले पाएगा। और इससे कर्मचारियों को रिटायरमेंट में लाखों रुपये का नुकसान होगा।

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