ऐ मिरे साथी, ये तेरे छोड़ जाने की कसक, मुझको दीमक की तरह अंदर ही अंदर खाएगी

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(डाॅ. सी. पी. पैन्यूली के 62वें जन्मदिवस के अवसर पर संस्मरणात्मक आलेख)
इंसानियत की मिसाल: उत्तराखण्ड का लाल- डाॅ. सी. पी. पैन्यूली
(13.05.1960-30.04.2021)
लेखक- डाॅ. मुहम्मद नईम

झांसी।

चण्डी प्रसाद पैन्यूली, जिन्हें शिक्षा और पत्रकारिता जगत डाॅ. सी. पी. पैन्यूली के नाम से जानता है, को असमय ही विगत 30 अपै्रल 2021 को कोरोना के वायरस ने उनके चाहने वालों को रोता छोडकर विधाता के पास जाने को मजबूर कर दिया। मृत्यु के पंजों ने ये भी नहीं सोचा कि उनके बाद उनकी छह वर्ष की बेटी राधिका किसके कंधे पर सिर रखकर सोने की जिद करेगी, किससे लोरियां सुनकर मीठी-मीठी नींद लिया करेगी और अभी हाल ही में 18 वर्ष की दहलीज को छुए पुत्र हर्षित पैन्यूली (सोनू) क्या इस छलभरी दुनिया की मक्कारियों से निपटने में सक्षम हो पायेगा या नहीं, मां सरस्वती की ही पर्याय व डाॅ. पैन्यूली जी की ही भांति सरलता, सहजता, सौम्यता की प्रतिमूर्ति उनकी पत्नि श्रीमती कादम्बरी जी क्या अकेले इन सांसारिक जिम्मेवारियों का निर्वहन कर पायेगीं ? किन्तु कालचक्र यह सब नहीं सोचता और एक सप्ताह के उपचार के बाद 30 अपै्रल की अलसुबह एक पल में एक हंसता खेलता परिवार बेसहारा हो गया और उनके मिलने वाले तथा प्रशंसक अवाक, किंकर्तव्यमूढ़ और निःशब्द हो गये। कोरोना ने सबको असहाय कर दिया। कोविड गाइडलाइन के पालन के चलते अन्तिम दर्शन न कर पाने का दुख आजीवन रहेगा।
बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई
इक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया।
– (ख़ालिद शरी़फ)
एक सप्ताह बाद ही उन्हें अपनी स्वर्गवासी मां की स्मृति में, मातृदिवस के अवसर पर हर वर्ष की तरह हवन-पूजन करना था और उसके चार दिन बाद जीवन के बासठवें वर्ष में प्रवेश का केक काटना था, लेकिन इंसान सोचता कुछ और है, होता कुछ और। 19 अपै्रल 2021 को, जब उनसे अन्तिम बार बात हुई थी, तो उन्होनें स्वास्थ्य का ख्याल रखने का निर्देश दिया, शिष्टाचार की परम्परा के अनुसार, मैंनें भी उनसे कहा था कि सर, आप भी ख्याल रखिए, छुट्टियां खत्म होते ही मिलते हैं, लेकिन ये तनिक भी आभास न था कि ये बातचीत अन्तिम होगी। उसके दो दिन पहले ही 17 अपै्रल को उनके आवास सी-1 पर चाय के साथ लम्बी बातचीत हुई, जिनमें विश्वविद्यालयी राजनीति, स्ववित्तपोषित शिक्षकों एवं कर्मचारियों के नियमतीकरण एवं वेतनमान दिए जाने, अन्यत्र नियुक्ति हेतु प्रयास करने, साथियों के मतभेदों को मनभेद बना लेने, बच्चों की पढाई, बीते दिनों के संघर्ष आदि-आदि, दो घण्टे से भी अधिक समय तक हम लोग सर की बैठक में बतियाते रहे, इस दौरान, भाभी जी दो बार चाय बनाकर दे गई, बीच-बीच में सोनू और राधिका भी कुछ-कुछ पूछने आते-जाते रहे। बाद में, वे अपनी आदत के अनुसार, अपने फलैट से नीचे तक मुझे छोडने आये, तो पूछने लगे, नींद न आ रही हो, तो थोडा घूम लिया जाये, क्योंकि सभी ये जानते हैं कि जल्दी सोने और जल्दी जागने की मेरी आदत है। मैनें कहा नहीं सर, अभी नींद नहीं आ रही है, टहलते हैं, हम लोग मुख्य गेट तथा परीक्षा भवन तक टहलने लगे, फिर तमाम बातें होने लगी। उनके संग बात करते हुए, उनके तपे तपाये अनुभवों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
डाॅ. पैन्यूली सर से मेरा परिचय वर्ष 2008 में विश्वविद्यालय की एनेक्सी स्थित श्री सुरेश जी की मैस में हुआ, जहां सभी नवनियुक्त शिक्षक नियमित रुप से नाश्ते एवं भोजन हेतु आते थे। मैं भी मित्र डाॅ. राजेश कुशवाहा व डाॅ. शैलेन्द्र सिंह के साथ वहां नियमित नाश्ता एवं भोजन हेतु जाता था। प्रथम परिचय में ही, हम सभी सर की सरलता, सहजता, विनम्रता, सहृदयता आदि मानवीय गुणों के कारण उनके मुरीद हो गये। चूंकि अपने शुरुआती दिनों में मैंनें भी छह वर्ष दैनिक आज, दैनिक जागरण, साप्ताहिक विजयदशमी समाचारपत्रों के साथ जुडकर पत्रकारिता की थी, अतएव उनसे घनिष्ठता का एक कारण अभिरुचियों का मिलना भी गया। उनके प्रिय लेखकों में पे्रमचन्द एवं गोर्की थे, जो मेरे भी प्रिय थे, जो हम लोगों में वार्तालाप का भी जरिया बना। उत्तराखण्ड के कुछ स्वैच्छिक संगठनों के मित्र, उनके भी जानने वाले निकले, जो प्रगाढता का भी आधार बना। मेरे मित्र डाॅ. शैलेन्द्र सिंह की बहिन डाॅ. रश्मि गौतम की भी आपके विभाग में नियुक्ति हुई थी, तो अक्सर सभी वहीं बैठकर बतकही करते।
बाद में, उन्होंने एनेक्सी में ही एक कक्ष अपने लिए आरक्षित करा लिया और वहीं रहने भी लगे, फिर तो मुलाकातों का सिलसिला अनवरत् जारी रहा। कुछ समय बाद वो सोनू और भाभी जी को भी वहीं ले आये, एनेक्सी के एक कक्ष में ही उत्तराखण्ड से बुन्देलखण्ड का सफर जारी हो गया। हालांकि कभी-कभी सभी को झाँसी की गर्मी झुलसाती थी, मगर बाद में सभी उसके आदी हो गये। विश्वविद्यालय द्वारा किराया वृद्धि सम्बन्धी आदेश स्ववित्तपोषित शिक्षकों के हित में नहीं था, तो सारे शिक्षकों ने एनेक्सी को खाली कर दिया। फिर वे वीरांगना नगर में किराये से रहने लगे, जहां राधिका का जन्म हुआ, उसके बाद कुछ समय तक वे शिवाजीनगर में भी किराये से रहे, बाद में विश्वविद्यालय द्वारा आवासीय परिसर में फलैट आंवटन होने पर सभी वहां शिफ्ट हो गये।
जब भी किसी के संघर्ष या बीते दिनों की बात होती तो सर भी बडे स्वाभिमान से उत्तराखण्ड से बुन्देलखण्ड तक के सफर के अपने अनुभवों को सांझा करते कि किस प्रकार बाल्यकाल में उन्होनें अपने पिता श्री जितेन्द्र प्रसाद पैन्यूली को खोया, फिर वृद्ध मां व छोटे भाई को संभालते हुए अपनी पढाई की, हाईस्कूल के दिनों से ही 10-14 घंटे ट्यूशन कर परिवार की जिम्मेवारियों को संभाला। अपने स्कूली दिनों से ही आप आत्म अनुशासित, संयमित, धैर्यवान थे, जिसके कारण ही जीवन भर आप चुनौतियों का सामना हंसते-हंसते करते रहे। अपने इन्हीं गुणों के कारण मात्र 24 वर्ष में आप एस.जी.आर.आर. पब्लिक स्कूल, श्रीनगर में भौतिकी के सहायक शिक्षक पद पर नियुक्त हो गये। भौतिक विज्ञान आपका प्रिय विषय रहा, आपने भौतिकी में हेमवती नंदन बहुगुणा, विश्वविद्यालय श्रीनगर में वर्ष 1985 में शोध छात्र के रुप में प्रवेश लिया और छात्रवृत्ति के साथ शोध उपाधि प्राप्त की।
शोधकार्य के उपरान्त पुनः आपने एस.जी.आर.आर. पब्लिक स्कूल, श्रीनगर में भौतिकी के सहायक शिक्षक पद पर शिक्षण कार्य प्रारम्भ कर दिया, जहां आपने 31 जुलाई 1997 तक अपनी सेवायें दी। आपने 01 अगस्त 1997 से 25 अगस्त 1998 तक रुडकी काॅलेज आॅफ इंजीनियरिंग में, 28 अगस्त 1998 से 20 अगस्त 2008 तक हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय, श्रीनगर के पत्रकारिता एवं जनसंचार संस्थान में अध्यापन कार्य किया। बाद में 26 अगस्त 2008 को बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी के भास्कर पत्रकारिता एवं जनसंचार संस्थान में उपाचार्य पद का कार्यभार ग्रहण किया तथा विभागाध्यक्ष के पद को सुशोभित किया। चक्रानुक्रम के शासनादेश के कारण भले ही दो वर्ष पूर्व वे विभागाध्यक्ष पद पर कागजी तौर पर नहीं रहे, किन्तु जाहिरी तौर पर सम्मान पूर्ववत् ही रहा। क्या विद्यार्थी, शिक्षक, शिक्षणेत्तर कर्मचारी, क्या मीडिया जगत के मित्र, सभी सर का समान रुप से आदर करते थे, उन्हें विभागाध्यक्ष की ही तरह सम्मान देते। कुछ तो इतने आज्ञाकारी कि सर की कही बात को पत्थर की लकीर मानते, फिर, दुनिया चाहे इधर की उधर हो जाये। विभागीय शिक्षक भी उन्हें अपना अभिभावक एवं मार्गदर्शक मानते।
भौतिकी शिक्षक के रुप में 13 वर्ष से अधिक की सेवायें तथा पत्रकारिता के शिक्षक के रुप में स्नातक एवं परास्नातक स्तर पर 22 वर्ष से अधिक सेवायें बताती हैं कि आप अध्ययन और अध्यापन के प्रति कितने प्रतिबद्ध थे। विज्ञान के विद्यार्थी, शोधार्थी एवं शिक्षक के रुप में आपकी सेवायें उतनी ही उल्लेखनीय हैं, जितनी पत्रकारिता के क्षेत्र मंे। आपकी दोनों ही विषयों पर समान पकड थी। जब भी वह अपना बायोडाटा कहीं भेजते, तो उसमें दो विवरण हुआ करते थे, एक भौतिक विज्ञानी के रुप में, दूसरा पत्रकारिता के शिक्षक के रुप में। अक्सर नियोक्ता चकरा जाते कि आवेदक भौतिक विज्ञान हेतु अभ्यर्थी है या पत्रकारिता हेतु। भौतिक विज्ञान से पत्रकारिता का सफर भी बडा रोचक है। आप भौतिकी के अध्येता के रुप में विज्ञान आलेख लिखते थे। विज्ञान पत्रिका जैसी मशहूर पत्रिका में आपके अनेकों आलेख प्रकाशित हुए। सुप्रसिद्ध पत्रकार व साहित्यकार श्री वीरेन डंगवाल जी आपके पारिवारिक शुभचिन्तक थे, उन्होनें डाॅ. पैन्यूली जी को सुझाव दिया कि यदि वह पत्रकारिता के क्षेत्र में जायें, तो और भी बेहतर कर सकते हैं। फिर क्या था, आप विज्ञान से पत्रकारिता की ओर मुडे, दोनों विषयों को समन्वित करते हुए आपने वैज्ञानिक पत्रकारिता में भी उल्लेखनीय कीर्तिमान स्थापित किए। भौतिक विज्ञानी के रुप में आपके 21 शोध पत्र प्रकाशित हुए, वहीं पत्रकारिता के शिक्षक के रुप में भी आपने 35 शोध आलेख विभिन्न शोध पत्रिकाओं एवं सम्पादित पुस्तकों के अंश के रुप में प्रकाशित करवाकर शिक्षा जगत को महान योगदान दिया। सौ से भी ज्यादा राष्ट्रीय- अन्तर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में आपने शोधपत्र वाचन किया तथा विभिन्न सत्रों में अध्यक्षता भी की। आपके संयोजन में विभाग ने तीन राष्ट्रीय संगोष्ठियां भी आयोजित की।
आप अध्ययन और शोध के प्रति इतने जिज्ञासु एवं समर्पित थे कि वर्ष 1992 में आपने प्रो. बी. डी. इन्दु के शोध पर्यवेक्षण में DEFECT INDUCED OPTICAL PROPERTIES OF ANHARMONIC CRYSTALS तथा वर्ष 2005 में प्रो. ए. आर. डंगवाल जी के शोध पर्यवेक्षण में NVIRONMENTAL AWARENESS AND COMMUNICATION MEDIA (A Study with special reference to Uttaranchal Hills) हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय, श्रीनगर, गढवाल से पी-एच. डी. की उपाधियाँ प्राप्त की। शायद ही सम्पूर्ण भारतवर्ष में कोई भौतिकी और पत्रकारिता से एक साथ शोधउपाधि प्राप्तकर्ता मिले। भौतिकी उनका हमेशा प्रिय विषय रहा। कई शिक्षकों के बच्चों एवं आवासीय परिसर के अनेकों बच्चों को भौतिकी के कठिन से कठिन फार्मूले चुटकी बजाते ही वो समझा देते थे। उनका पढाने एवं समझाने का तरीका अद्वितीय था। वो रटने के बजाय अधिगम पर अधिक जोर देते थे। अपने 100 से भी अधिक परास्नातक एवं एम.फिल. स्तर पर लघु शोध प्रबन्धों का पर्यवेक्षण किया। आपके शोध एवं अध्यापन के प्रिय विषय इलेक्ट्रानिक मीडिया, रेडियो एवं टी.वी. प्रोग्रामिंग, विज्ञापन, न्यू मीडिया टेक्नोलोजी, मीडिया प्रबन्धन, मीडिया एवं पर्यावरण आदि थे। आप कम्प्यूटर हार्डवेयर एवं साॅफटवेयर के भी विशेषज्ञ थे। हिन्दी और अग्रेंजी टाइपिंग में तो वे प्रवीण थे ही। बताया तो यह भी जाता है कि जब विश्वविद्यालय के कुलपति एवं कुलसचिव को कोई अति गोपनीय पत्र टंकित कराना होता था, तो वे भी डाॅ. पैन्यूली जी की सेवायें लेते थे, कारण उनका विश्वसनीय होना था। शासकीय कार्यों में जरुरी गोपनीयता हेतु वे अनिवार्य एवं अपरिहार्य थे। इस कारण से भी वे हमेशा प्रशासन के नजदीक एवं प्रिय रहे। वर्ष 2013 में प्रो. अविनाश चन्द्र पाण्डेय जी के कार्यकाल में रिक्त पदों पर नियुक्तियां विश्वविद्यालय में हो रही थी, संभवतः पत्रकारिता विभाग में 01 प्रोफेसर एवं 03 प्रवक्ता पद विज्ञापित हुए, तकनीकी त्रुटिवश प्रोफेसर पद के साक्षात्कार का पैनल गठित नहीं हो पाया और न ही साक्षात्कार तिथि घोषित हो पाई, जिसमें प्रोफेसर पद हेतु डाॅ. पैन्यूली जी भी अर्ह अभ्यर्थी थे, वे अपने संकोची स्वभाववश साक्षात्कार हेतु कुलपति प्रो. पाण्डेय जी से नहीं कह पाये, जब कुलपति जी को किसी माध्यम से यह जानकारी हुई तो वह डाॅ. पैन्यूली जी नाराज भी हुए कि आपको साक्षात्कार हेतु याद तो दिलाना था, जबकि विभागाध्यक्ष के तौर पर वह साक्षात्कार तिथि घोषित करवाने से लेकर पैनल अनुशंसा तक सक्षम थे, किन्तु ऐसा करना उन्हें नैतिक तौर पर ठीक नहीं लगा। इस प्रकार वे प्रोफेसर की पदोन्नति से वंचित रह गये, बाद के वर्षों में प्रशासन ने विज्ञापन निकालने का भी कष्ट नहीं उठाया, अब तो ज्यादातर नियुक्तियां योग्यतापरक न रहकर जुगाड, जाति, जन्मपत्री तक सीमित रह गईं हैं।
डाॅ. पैन्यूली जी हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय, श्रीनगर, महात्मा गाँधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उ. प्र. राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय, इलाहाबाद, उत्तराखण्ड तकनीकी विश्वविद्यालय, देहरादून, ज्योति विद्यापीठ महिला विश्वविद्यालय, जयपुर, रामा विश्वविद्यालय, कानपुर, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी, बरकताउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल, सिंघानिया विश्वविद्यालय, झंूझुनू, सी. एम. जे. यूनिवर्सिटी शिलांग, सहित अनेकों विश्वविद्यालयों के विषय विशेषज्ञ पैनल में नामित होने के साथ-साथ आन्तरिक एवं बाहय शोध विशेषज्ञ भी रहे। आपके कुशल पर्यवेक्षण में दस विद्यार्थियों ने पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है व 06 विद्यार्थी अभी पंजीकृत भी है। आपके शोध छात्र मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान, दिल्ली के पत्रकारिता संस्थानों में अध्यापन कार्य भी कर रहे हैं। अनेकों विद्यार्थी बडे मीडिया घरानों से भी जुडे हैं।
26 अगस्त 2008 के नियुक्ति काल से ही बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी में आप स्नातक/परास्नातक परीक्षाओं के प्रभारी रहे, आई. क्यू. ए. सी. सेल के सदस्य, युवा महोत्सव में अनेकों प्रतियोगिताओं के संयोजक, बी.एड. परीक्षाओं के केन्द्र प्रभारी, मीडिया सेल के प्रभारी/सह प्रभारी आदि उत्तरदायित्वों को कुशलतापूर्वक निभाने के साथ सभी सहयोगियों के आप चहेते बनते गए। जिसने भी आपके साथ एक बार कार्य कर लिया, या आपने जिसके साथ एक बार भी कार्य कर लिया, वह आपका हमेशा- हमेशा के लिए प्रशंसक बन गया।
शासकीय संस्थानों में एक आम ख्याति है कि जो भी पद पर बैठा है, वह आर्थिक मामलों में कुछ न कुछ दांयें-बांये करता है, लेकिन डाॅ. पैन्यूली इस मामले में हमेशा बेदाग एवं निर्विवाद रहे। वे कहते थे कि विभागाध्यक्ष का पद काजल की कोठरी के समान है, चाहे जितना ईमानदारी से कुछ भी करो, बचा नहीं जा सकता और फिर वे मुस्करा कर कहते कि आप तो स्वयं उदाहरण है, विभाग और विश्वविद्यालय के लिए कितना कुछ किया, क्या मिला, तो मैं भी मुस्करा कर कहता कि सर, सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं और आज तो सत्य अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में फंसा हुआ है। उनका मानना था कि आप संस्थान के लिए कुछ भी करिए, मगर बदले में संस्थान से अपेक्षा न करिए, क्योंकि अपेक्षाये ंहमेशा कष्ट देती हैं।
जब वर्ष 2011 में मुझे विभाग के समन्वयक का कार्यभार मिला और मैंनें समाज कार्य विषय को सामाजिक सरोकारों से जोडते हुए सामाजिक एवं स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं को विभाग आमंत्रित कर विद्यार्थियों से संवाद कराने की प्रक्रिया प्रारम्भ की तथा पाठ्यक्रम में जनसरोकारों के मुद्दों को जोडा, शहर की मलिन बस्तियों मंें सामाजिक विकास के कार्यों हेतु विद्यार्थियों को प्रेरित किया तो न केवल विभाग की, बल्कि विश्वविद्यालय की नकारात्मक प्रवृत्तियां मेरे कर्तव्य मार्ग को अवरुद्ध करने में जुट गईं, कुछ रागदरबारी किस्म के लोग साम-दाम-दण्ड-भेद की नीति अपनाते हुए मेरा मान-सम्मान, यश-कीर्ति मर्दन करने का काम करने लगे, ऐसे निराशा भरे समय में कुछ शुभचिन्तकों ने मुझे भावात्मक सहारा दिया, जिनमें डाॅ. इकबाल खान सर के साथ डाॅ. पैन्यूली जी भी मेरे साथ खडे थे।
जब कार्यक्रम समन्वयक डाॅ. एस. के. राय जी ने राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई षष्ठ के कार्यक्रम अधिकारी एवं विश्वविद्यालय के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी का दायित्व मुझे सौंपा, तो मेरी इकाई में स्वयंसेवक के रुप मंे अधिकांश विद्यार्थी पत्रकारिता विभाग के भी पंजीकृत थे, तो प्रायः राष्ट्रीय महत्व के दिवसों की गोष्ठियां या जागरुकता कार्यक्रम पत्रकारिता विभाग में आयोजित होने लगे। बाद में, डाॅ. श्वेता पाण्डेय जी के कार्यक्रम अधिकारी बनने पर ललित कला विभाग में भी संयुक्त रुप से कार्यक्रम आयोजित किए जाने लगे। प्रायः अधिकांश गोष्ठियों में डाॅ. पैन्यूली जी की अध्यक्षता रहती व मेरा संचालन, डाॅ. श्वेता पाण्डेय जी या अन्य किसी शिक्षक द्वारा आभार व्यक्त किया जाता। ललित कला विभाग का तो एक भी कार्यक्रम डाॅ. पैन्यूली जी के बगैर सम्पन्न ही नहीं हुआ। वे प्रायः हास्य मंे कहते कि अब तो हम रजिस्टर्ड कार्यक्रम अध्यक्ष हैं और आप रजिस्टर्ड कार्यक्रम संचालक। फिर हम लोग चाय की चुस्कियों के बीच ठहाके लगाते, उन ठहाकों में आदरणीय श्री सतीश साहनी जी व श्री उमेश शुक्ला जी के ठहाके भी शामिल होते।
एक बार समस्त तृतीय व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के पटल/विभाग परिवर्तित होने थे, सभी से तीन विकल्प मांगे गये। पत्रकारिता विभाग के एक कर्मचारी, जब वे पत्रकारिता विभाग स्थानांतरण होकर आये तो उनकी धारणा थी कि अन्य विभागों की तरह यहां भी हेराफेरी चलती होगी, किन्तु जब उन्होनें डाॅ. पैन्यूली जी के साथ काम किया, तो उनकी धारणा बदल गई, क्योंकि संगत से रंगत बदलती है। सर ने हंसते हुए बताया कि उक्त अनुचर ने अपने विकल्प दिए, पत्रकारिता विभाग, भास्कर जनसंचार विभाग, भास्कर जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान और यही विकल्प सर ने अग्रसारित कर भेज दिए, परिणामस्वरुप वो वहां से स्थानांतरित न हो सके।
डाॅ. पैन्यूली जी के सामाजिक सरोकारों एवं अभिरुचियों को देखते हुए मैंनें अनेको स्वैच्छिक संगठनों के कार्यक्रम समाज कार्य विभाग के साथ-साथ पत्रकारिता विभाग में भी आयोजित कराये, ताकि अधिक से अधिक विद्यार्थी लाभान्वित हों, जिनमें ए.डी.आर.-इलेक्शन वाॅच, जल जन जोडो अभियान, परमार्थ समाजसेवी संस्थान, ताराग्राम, चाइल्ड लाइन, मार्ग श्री ट्रस्ट, वूमेन टाॅस्क फोर्स, प्रिया, राष्ट्रीय युवा योजना, कलाम एजुकेशनल एण्ड वेलफेयर सोसायटी, इप्टा, प्रगतिशील लेखक संघ आदि द्वारा आयोजित अनेकों कार्यक्रमों में डाॅ. पैन्यूली जी की सक्रिय सहभागिता रही। उक्त कार्यक्रमों के माध्यम से सर के सामाजिक रिश्ते आदरणीय श्री अनिल शर्मा जी, डाॅ. संजय सिंह जी, श्री ध्रुव सिंह जी, सुश्री संध्या सिंह जी, सुश्री शिवानी सिंह जी, श्री अर्जुन सिंह चाँद जी, श्री कमलेश राय जी, श्री शेख अरशद जी, श्री दिनेश बैस जी, श्री आरिफ शहडोली जी, डाॅ. अनिल अविश्रान्त जी, डाॅ. कमलेश कुमार जी आदि से बने, तो वे रिश्ते हमेशा बने ही रहे। आपके निधन से सभी को गहरा धक्का लगा। परमार्थ बोर्ड से जुडे होने के कारण, मैं कई बार उनकोे, संस्थान की विविध परियोजनाओं हेतु कार्यकर्ताओं के चयन में भी विशेषज्ञ के तौर पर ले गया। अनेकों बार साक्षात्कार में समाज कार्य एवं पत्रकारिता विभाग या विश्वविद्यालय के अन्य विभागोें के विद्यार्थी भी सम्मिलित होते, लेकिन हम लोग योग्यता को ही तरजीह देते।
विगत माह आदरणीय जलपुरुष श्री राजेन्द्र सिंह जी की यात्रिक होटल में जल जन जोडो अभियान द्वारा आयोजित प्रेस वार्ता में मैं और डाॅ. पैन्यूली जी भी भाई डाॅ. संजय सिंह जी के साथ उपस्थित रहे। मार्गश्री ट्रस्ट द्वारा पंचायत चुनावों के पूर्व होटल सनराइज में आयोजित महिला प्रधान पति मुक्त पंचायत अभियान में भी मेरी और उनकी सहभागिता साथ-साथ रही, जहां सर ने कहा कि महिला सरपंच को अब खुद ही पंचायत चलाने दो, तभी परिवर्तन आयेगा।
डाॅ. पैन्यूली जी अच्छे कपडे पहनने और अच्छे खाने के शौकीन थे। प्रायः चार परिवारों की दावत एक साथ होती थी, डाॅ. पैन्यूली जी, डाॅ. श्वेता पाण्डे, डाॅ. उमेश कुमार और मेरी। इन चारों परिवारों में बच्चों के जन्मदिन हों या वैवाहिक वर्षगांठ, सभी एक साथ इकट्ठे होते। इसके अतिरिक्त डाॅ. यू. एस. तोमर जी के यहां सांध्यकालीन बैठकी होती, जिसमें अहम् भूमिका डाॅ. प्रशान्त मिश्रा जी एवं श्री अनूप पाण्डेय जी की होती। चूंकि डाॅ. पैन्यूली जी एवं श्री अनूप पाण्डे जी पाककला विशेषज्ञ के रुप में सुविख्यात होने के कारण, आयोजन हम चारों में से किसी के घर में भी हो, बगैर उन दोनों की विशेषज्ञता के पकवान अधूरे रहते। कोरानाकाल के बाद इन उत्सवों एवं उनमें सहभागिता में कमी भी आई, जिसको लेकर हममें स्वाभाविक उदासी भी रहती। चूंकि समय के साथ लोगों की प्राथमिकतायें भी बदल जाती हैं, अतएव कष्ट होना स्वाभाविक भी होता है। जिन लोगों को हर तरीके से मद्द एवं मार्गदर्शन दिया गया, उन्होनें अपने निजी स्वार्थों एवं अहंकार के वशीभूत हो किनारा करना शुरु कर दिया, तो हम लोग भी उनसे दूर होने लगे, लेकिन सार्वजनिक शिष्टता एवं व्यवहार में कमी न आई। कभी-कभी कोई बात ऐसी हो जाती, जिस पर मैं आत्म नियन्त्रण से बाहर हो जाता, तो वो वीटो पावर लगाकर मुझे निर्देश देते, कि मैं कह रहा हूं, बात खत्म करो, मैं शान्त एवं निरुत्तर रह जाता। उन्होनंे हमेशा उदारतापूर्ण बर्ताव तथा सभी की मद्द करने की सीख दी। प्रायः उद्दण्ड विद्यार्थियों के साथ भी आपका व्यवहार उदारतापूर्ण व मद्द का रहता। वे कहते कि बच्चे ही हैं, आज गलती उन्हें समझ में आ गई, तो हमेशा जिम्मेदारी का भाव रहेगा। प्रो. ओ. पी. कण्डारी जी, प्रो. सुनील काबिया जी, प्रो. एम. एम. सिंह जी, प्रो. रत्नाकर जी, प्रो. जी. एस. पवार जी, प्रो. धनाई जी आदि से उनके अभिन्न और पारिवारिक सम्बन्ध रहे।
आपसी बातचीत या गोष्ठियों में, जब कभी बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण की बात होती तो सर से प्रश्न पूछा जाता कि आप लोगों ने उत्तराखण्ड का निर्माण कैसे करा लिया, तो उनका जबाब रहता कि बुन्देलखण्ड के लोगों में वो प्रतिबद्धता, समर्पण और त्याग अपने राज्य के लिए नहीं है, जितना उत्तराखण्ड के लोगों में रहा। वहां लोगों ने लाठियां, गोलियां खाई, महिलाओं ने बलात्कार का दंश सहा, मांगें उजडी, कोख सूनी हुई, बच्चे अनाथ हुए और भी बहुत कुछ, ऐसा कहते कहते वे भावुक हो जाते, गहरी सोच में डूब जाते और उनकी पलकें गीली हो जाती। वे अपने अनुभव के आधार पर कहते कि बुन्देलखण्ड धन-धान्य और प्राकृतिक सम्पदा से अत्यन्त समृद्ध है, इसे राज्य बनना चाहिए, ताकि विकास का मार्ग प्रशस्त हो। वे बडे विश्वास से कहते कि सरकार एक न एक दिन बुन्देखण्ड को राज्य जरुर बनायेगी। बुन्देलखण्डवासी अपना राज्य चाहते तो हैं, लेकिन उतना संघर्ष करना कोई नहीं चाहता, क्योंकि इस मुद्दे से लोग स्वयं को नहीं जोड पाये और बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के इतने गुट हैं कि जनता को उन पर विश्वास ही नहीं है, क्योंकि उनके पास राज्य निर्माण के लिए एवं राज्य निर्माण के बाद की कोई स्पष्ट नीति नहीं है, कि राज्य निर्माण होने के बाद यहां सांस्कृतिक, शैक्षिक, आर्थिक, शासन की नीति क्या होगी? अगर आप लोगों को राज्य पाना है तो आपसी स्वार्थ, गुटबाजी, मतभेद छोडकर केवल राज्य निर्माण के एजेण्डे पर काम करना होगा, बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के लिए भय और भूख को छोडना होगा। आपके दिमाग में बस और बस अपना राज्य होना चाहिए। आपके ये अनुभव राज्य निर्माण अगुआकारों के लिए पे्ररणापुंज हैं।
मेरे कार्यकाल का राष्ट्रीय सेवा योजना का कोई भी विशेष शिविर या विशिष्ट कार्यक्रम ऐसा नहीं रहा, जब आपके उद्बोधन का लाभ स्वयंसेवकों को प्राप्त न हुआ हो। आप अपने उद्बोधन में अक्सर कहा करते थे कि छात्र जीवन के ये दिन वापिस नहीं आयेंगे, आप जितना सीख सकते हैं, सीख लीजिए, शिक्षकों के अनुभवों को आत्मसात कर लीजिए। बीता समय वापिस नहीं आएगा। वर्ष 2019 में आयोजित गंगा यात्रा, युवा संसद, तिरंगा यात्रा, वर्ष 2020 में आयोजित राष्ट्रीय एकीकरण शिविर के आयोजन में भी बडी महत्वपूर्ण भूमिका डाॅ. पैन्यूली जी की रही। समस्त कार्यक्रमों में उनकी उत्साहपूर्ण भूमिका एवं परामर्श ने हम लोगों को प्रेरणा दी। जनाब साकिब लखनवी साहब के शब्दों में –
जमाना बडे शौक से सुन रहा था,
वही सो गया, दास्ताँ कहते-कहते।
देवभूमि उत्तराखण्ड की महान शख्सियत, हिन्दुस्तानियत कीे प्रतीक, गंगा जमुनी तहजीब की प्रतिमूर्ति, मानवीय संवेदनाओं के चितेरे, सरलता, सहजता, विनम्रता, आत्मीयता की प्रतिमूर्ति, मृदुभाषी, मितभाषी, हम सबके प्यारे डाॅ. पैन्यूली जी को उनको बासठवें जन्मदिन पर याद करते हुए उन्हें जनाब शकील सरोश साहब के इस शेर के साथ भावभीनी श्रद्धांजलि-
ऐ मिरे साथी, ये तेरे छोड जाने की कसक,
मुझको दीमक की तरह अंदर ही अंदर खाएगी।
सम्पर्क सूत्र -डाॅ. मुहम्मद नईम, सहायक आचार्य, समाज कार्य विभाग, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी (उ. प्र.) मोबाइल- 9415925223

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