अच्‍छाई के प्रति कम और बुराई के प्रति ज्‍यादा होता है आकर्षण – मुुुुरारी बापू

- श्री राम कथा के छठें दिन बापू ने भगवान श्रीराम के सात्विक और तात्विक बिंदुओं को प्रस्तुत कर भक्तों को आनंदित किया।

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ओरछा। संत शिरोमणि मोरारी बापू ने कहा कि मन में जब प्रभु का विहार होने लगे तो भक्त भक्ति के भाव से पूर्ण हो जाता है। जब मानव का मन अन्य विचारों से दूर और चित्त स्थिर हो जाता है तो प्रभु की कृपा जीवात्मा पर होने लगती है। हम स्थिर नहीं हो पा रहे हैं, इसके पीछे भी प्रभु की लीला है। हमारे चित्त को अहंकार, लोभ, ईर्ष्या, नाना प्रकार की विघ्न बाधाएं अपने जाल में जकड़ी रहती है। इससे बाहर निकलना मुश्किल नहीं होता। अपनी बुद्धि को निर्मल कर इन विकारों से दूर हो सकते है।

श्री राम कथा के छठें दिन गुरुवार को बापू ने रामचरित्र मानस में भगवान श्रीराम के सात्विक और तात्विक बिंदुओं को प्रस्तुत कर भक्तों को आनंदित किया। उन्होंने कहा कि गाय को बचाने के लिए उसकी पूजा नहीं, सेवा की जरूरत है। कथा प्रस्तुति के दौरान भक्तों को मन की चंचलता और स्थिरता दोनों प्रसंग पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होने कहा कि मन तो बहुत कुछ चाहता है। मन में अच्छे और बुरे करने का भाव भी आता है, लेकिन इंसान अच्छे कर्म के प्रति कम और बुरे कर्म के प्रति ज्यादा आसक्त होता है। ऐसे में आप मन के साथ असहसयोग करें। मन में आए बुरे विचारों को दूर करने का सबसे बड़ा उपाय है कि आप उनका सहयोग न करें। बापू ने कहा जब इंसान की बुद्धि निर्मल और स्थिर हो तो उसे किसी भी धार्मिक ग्रंथ पढ़ने की जरूरत नहीं। बुद्धि शांत होकर चित्त को शांत करता है। इससे इंसान का मन और विचार दोनों निर्मल हो जाता है। धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने से मन निर्मल और चित्त शांत होता है। अगर कहीं भी कुछ पढ़ने से मन में संशय हो तो आप अपने गुरु के पास जाकर उसका निवारण कर सकते हैं। गुरु आपके सारे सवालों का जबाव सही ढंग से दे सकते हैं। हर रूप में भगवान ने भिन्न-भिन्न जगहों पर विहार किया है। भक्त अपने मन को इतना निर्मल करे कि भगवान स्वयं उसके हृदय में विहार करने लगे। जब भक्त के हृदय में भगवान स्वयं विहार करने लगें तो भक्त को किसी भी चीज की जरूरत नहीं होती। वह उसी आनंद से हर चीज को प्राप्त करता है। जब बुद्धि तर्क से भरी हो तो वहां कुमति का विहार होने लगता है।

श्री सदगुरू जन्म शताब्दी महोत्सव के अन्तर्गत आयोजित मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम की कथा कहते हुये संत मोरारी बापू ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारा विहार इन चार चीजों के लिए होना चाहिए। जो साधक हैं, उन्हें धर्म की लालसा होती है। सिद्ध पुरुषों को मोक्ष की चाहत होती है। विषैले व्यक्ति काम की चाहत करते हैं, और जो स्वार्थी व्यक्ति हैं, उन्हें अर्थ अर्थात धन की चाहत होती है। अर्थ की महत्ता जरूरी है। क्योंकि बिना अर्थ के गुजारा नहीं हो सकता, लेकिन जब इंसान के पास काफी मात्रा में अर्थ का भंडारण होता है फिर भी उसकी चाहत पूरी नहीं होती। वह और अधिक अर्थ के पीछे भागने लगता है। बापू ने कहा जिस प्रकार अर्थ के पीछे इंसान भाग रहा, उसका दशम अंश दान करे। गरीबों और असहाय लोगों के कल्याण के लिए चार हाथ से खर्च करे। आश्रम में रहने वाले, गृहस्थ में रहने वाले लोग अपने संचित धन का शेष भाग दान करें, जिससे अर्थ की सार्थकता पूरी हो जाए। विदेशों में लोग अपनी पॉकेट मनी से कुछ पैसे बचाकर लोगों की सेवा में देते हैं। डॉक्टर और उद्योग वाले भी अपने धन का कुछ अंश गरीबों के लिए निकालें।

श्री सुरभि गौशाला के भव्य प्रांगण में आयोजित कथा को कहते हुये संत बापू ने गाय की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह भी मां का ही स्वरूप है। सिर्फ गौ पूजा के दिन पूजा अर्चना करने से गौ की सेवा नहीं होती। आज कई सड़कों पर गौ विचरण कर रही है। उसे रहने के लिए जगह नहीं और खाने की व्यवस्था नहीं। ऐसे में गौ की दशा क्या हो सकती है। स्वयं से पूछने वाली बात है। गाय से प्रेम करो, पूजा नहीं। गाय से प्रेम करोगे तो वह अवश्य बचेगी। धर्म के प्रपंच करने वाले धर्म को आडंबर न बनाएं। बहुत लोग धर्म को प्रलोभन के रूप प्रयोग करते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। वहीं कथा स्थल के पास ही चल रहे विशाल भण्डारें में लाखों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया।

इस दौरान श्रीमद् जगदगुरू द्वाराचार्य मलूक पीठाधीश्वर श्रद्धेय राजेन्द्र दास देवाचार्य महाराज, अनुरूद्ध दास महाराज ओरछा, महन्त अनन्तदास महाराज, महामण्डेलश्वर संतोश दास महाराज, जिला धर्माचार्य महन्त विष्णु दत्त स्वामी, नगर धर्माचार्य प. हरिओम पाठक, बसन्त गोलवलकर, लल्लन महाराज,, मनोज पाठक, पीयूष रावत, अनिल रावत, आशीष राय, देवेश पाण्डेय, रत्नेश दुबे, पुनीत रावत, रीतेश दुबे, अंचल अड़जारिया, मनीष नीखरा, नीरज राय, भूपेन्द्र रायकवार, शिवशंकर संकल्प, अनिल दीक्षित, घनश्याम चौबे , सोनी कुशवाहा, बन्टू मिश्रा आदि उपस्थित रहे।

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