बढ़ावा : गांव-गांव बनेगी कंपोस्ट खाद

- जिले में 745 यूनिट स्थापना की तैयारी

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झाँसी। रसायनिक खाद के दुरुपयोग से चिंतित सरकार ने अब जैविक खाद के उपयोग पर बल दिया है। यह खाद मुश्किल से मिलती है, लिहाजा गांव-गांव में वर्मी कंपोस्ट यूनिट की स्थापना कराने की तैयारी की जा रही है। इससे न केवल खेतों की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होगी, बल्कि फसल भी पौष्टिक और अच्छी क्वालिटी की होगी।
बढ़ती जनसंख्या, जोतों का छोटा होते जाना, कृषिगत भूमि में लगातारकमी होना, उपलब्ध कृषि भूमि में उन्नतशील प्रजातियों की बुआई एवं लगातार फसलों द्वारा भूमि से पोषक तत्वों का दोहन तथा खेतों में असंतुलित मात्रा में रासायिनक उर्वरकों का प्रयोग कृषि मिट्टी में जीवांश कार्बन मात्रा का लगातार हृास हो रहा है। जीवांश बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजनांतर्गत मृदा में जीवांश कार्बन बढ़ाने के लिए वर्मी कंपोस्ट यूनिट स्थापना के निर्देश दिए गए हैं। उप निदेशक कृषि रामप्रताप ने बताया कि जिले के 745 आबाद राजस्व ग्राम में एक-एक यूनिट स्थापित की जाएगी। योजना के संचालन से पशुओं द्वारा उत्सर्जित मल मूत्र, फसल अवशेषों एवं घरेलू व्यर्थ अवशेषों का अधिक प्रयोग हो सकेगा। इससे कार्बन नत्रजन अनुपात में वृद्धि होगी, भूमि के जैविक गुणों में सुधार होगा, प्रति इकाई उत्पादन लागत में कमी कर अधिकतम उत्पादन मिलेगा, पर्यावरण संरक्षित होगा तथा किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी।

कौन लगा सकेगा यूनिट

गांव में रहने वाले ऐसे किसान यूनिट खोल सकेंगे जिनके पास उसी गांव में कम से कम एक एकड़ जमीन होगी तथा अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षित ग्राम सभाओं में इसी वर्ग के किसान का चयन किया जाएगा। पहले आओ पहले पाओ के आधार पर पंजीकृत किसान में से ही लाभार्थी का चयन किया जाएगा। अगर उस गांव में उसी वर्ग का आरक्षित पात्र कृषक नहीं मिलेगा तो अन्य वर्ग के इच्छुक किसान को चयनित किया जाएगा।

कितना होगा खर्च

यूनिट स्थापना के लिए आठ हजार रुपये प्रति इकाई खर्च होगी। इसमें 50 प्रतिशत राशि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से, 25 प्रतिशत राशि राज्य सरकार से विशेष अनुदान के रूप में दी जाएगी। शेष 25 प्रतिशत अंशदान किसान का होगा।

वर्मी कंपोस्ट बनाने की विधि

वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए ऐसा स्थान चुनें जहां दिनभर छाया रहती हो एवं भूमि की सतह से कम से कम एक मीटर ऊंची हो। पेड़ के नीचे, बगीचे में या पुआल का छप्पर बनाकर छायादार स्थान चिह्नित किया जा सकता है। स्थान अगर जमीन की सतह से ऊंचा न हो तो मिट्टी डालकर ऊंचा किया जा सकता है। वहां 2 मीटर लंबा, 2 मीटर चौड़ा और 1 मीटर गहरा गड्डा बना लें। गड्ढे के अभाव में इसी नाप की लकड़ी या प्लास्टिक की पेटी का प्रयोग किया जा सकता है जिसके निचले सतह पर जल निकास के लिए 10-15 छेद बना देना चाहिए। जमीन में गड्ढा खोदने के बाद सबसे नीचे ईंट या पत्थर की 11 सेंटीमीटर की परत बनाएं। फिर 20 सेंटीमीटर मौरंग या बालू की दूसरी तह लगाइये। इसके ऊपर 15 सेंटीमीटर उपजाऊ मिट्टी की तह लगाकर पानी के हलके छिड़काव से नम कर दें। ठंडी व अधसड़ी गोबर डालकर एक किलोग्राम प्रति गड्ढे की दर से छोड़ दें। इसके ऊपर पांच से दस सेंटीमीटर घरेलू कचरे (फल-सब्जियों के छिलके, फसल अवशेष, पुआल, भूसा, मक्का, जलकुंभी, पत्तियां) बिछा दें। 20-25 दिन तक ऐसे ही रहने दें। वर्मी कंपोस्ट तैयार है।

बताते हैं अधिकारी

”जो किसान वर्मी कंपोस्ट यूनिट स्थापित करना चाहता है वह ऑनलाइन पंजीकरण, भू अभिलेख एवं फोटो के साथ 20 जनवरी तक संबंधित तहसील स्तरीय उप संभागीय कृषि अधिकारी कार्यालय में जमा करें।
– दुर्गेश कुमार,
जिला कृषि अधिकारी, झाँसी”

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सांस्कृतिक प्रतियोगिता के लिए बनी कमेटी

झाँसी। उत्तर प्रदेश दिवस के उपलक्ष्य में होने वाली सांस्कृतिक प्रतियोगिता के संबंध में एक बैठक मंडलायुक्त अमित गुप्ता की अध्यक्षता में हुई जिसमें कमेटी का गठन किया गया।
बैठक में प्रतियोगिता के सफल संचालन के लिए निर्णायक मंडल में अपर आयुक्त डॉ. रियाज अख्तर को अध्यक्ष, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष मुन्ना तिवारी, ललित कला संस्थान समन्वयक डॉ. श्वेता पांडेय, आकाशवाणी केंद्र के कार्यक्रम अधिकारी कुंजबिहारी, उप निदेशक संस्कृति विभाग डॉ. आशा पांडेय व अयोध्या प्रसाद कुमुद को सदस्य तथा सहायक निदेशक सूचना सुधीर कुमार को सदस्य सचिव मनोनीत किया गया। बैठक में अपर आयुक्त उर्मिला सोनकर खाबरी, नीति शास्त्री, शैलेंद्र कुमार, डॉ. हरि त्रिपाठी, दयाराम उपस्थित रहे।
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अख्तर को अपर आयुक्त न्यायिक का जिम्मा

झाँसी। मंडलायुक्त अमित गुप्ता ने शासन से स्थानांतरित होकर आए डॉ. रियाज अख्तर को अपर आयुक्त न्यायिक की जिम्मेदारी सौंप दी है।
वे लंबित एवं स्थानांतरित राजस्व वाद, जनपद जालौन के स्टांप अधिनियम के अंतर्गत नए वादों का दायरा व लंबित वादों का निस्तारण करेंगे। समन्वित शिकायत निवारण प्रणाली जन सुनवाई प्रकरणों के निस्तारण का नोडल अधिकारी भी उन्हें बनाया गया है। उनकी अनुपस्थिति में अपर आयुक्त उर्मिला सोनकर खाबरी उनका काम देखेंगी।
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आलू में झुलसा रोग की आशंका, माहू का प्रकोप

झाँसी। बदलते मौसम में आलू व तिलहन फसलों पर खतरा मंडरा रहा है। आलू की फसल में तना सड़न, पछेती झुलसा के प्रकोप की आशंका बढ़ गई है।
जिला कृषि रक्षा अधिकारी धर्मेंद्र कुमार अवस्थी ने बताया कि बीज को शोधित न कर बोए गए आलू में रोगों का प्रकोप अधिक होगा। तना सड़न की स्थिति में तना काला होकर सड़ जाता है, आगे का भाग नष्ट हो जाता है और खेतों से दुर्गंध आने लगती है। पछेती झुलसा में पत्तियों पर छोटे, हलके पीले, हरे अनियमित आकार के धब्बे दिखाई देते हैं। बाद में पत्तियों के निचले भाग पर इन धब्बों के चारों ओर अंगूठीनुमा सफेद फफूंदी आ जाती है। रोकथाम में देर होने पर फफूंदी कंद तक पहुंच जाती है और सड़न पैदा करती है। उन्होंने कहा कि लक्षण दिखाई देने पर सिंचाई बंद कर दें तथा 75 प्रतिशत डंठलों को काटकर खेत से बाहर गड्ढे में दबा दें। लक्षण दिखाई देने से पूर्व स्टेप्टोसाइक्लीन और कॉपर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत या मैंकोजेब 75 प्रतिशत को 750 से 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेअर में तीन-चार छिड़काव करे। झुलसा का भयंकर प्रकोप होने पर मैटालैक्सिल युक्त दवाओं के 0.25 प्रतिशत घोल का एक या दो छिड़काव करें या ट्राईकोडर्मा, सूडोमोनास जैविक रसायन 2.50 किलोग्राम लेकर पानी में घोलकर एक हेक्टेअर में छिड़काव करें। उन्होंने बताया कि माहू का प्रकोप होने पर डाइमैथोएट 30 प्रतिशत ईसी अथवा मिथाइल ऑक्सीडिमोटान 25 प्रतिशत ईसी एक लीटर प्रति हेक्टेअर की दर से छिड़काव करें या नीम का तेल दो लीटर प्रति हेक्टेअर की दर से प्रयोग करें। पाला से बचाव के लिए खेत में हलकी सिंचाई करें, खेत के चारों ओर धुआं करें एवं नर्सरी में पौधों के बचाव के लिए पॉलीथिन या पुआल से ढंक कर रखें।

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