झाँसी। मकर संक्राति का पर्व इस बार भी मान्यता और मुहूर्त के बीच झूलता रहा। कुछ लोगों ने जहां मान्यता को महत्व दिया तो अधिकतर ने शुभ मुहूर्त के कारण सोमवार को डुबकी लगाने की बात कही। दो दिनी मकर संक्राति का पहला दिन फिलहाल औपचारिक बनकर रह गया।
हर साल मकर संक्राति 14 जनवरी को होती है। यही हिंदुओं का एकमात्र पर्व है जिसकी तिथि निर्धारित होती है। इस बार मकर संक्राति 15 जनवरी को है। ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि 14 जनवरी की रात आठ बजे से सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा और 15 जनवरी को स्नान, दान का मुहूर्त होगा। इस कारण लोग असमंजस में रहे। कई लोगों ने ओरछा की पवित्र बेतवा, उन्नाव बालाजी की पहूज नदी अथवा माताटीला जाकर संक्राति का स्नान किया। उन्होंने कहा कि 14 जनवरी को मकर संक्राति की मान्यता होती है। वहीं, कई लोगों ने सोमवार को शुभ मुहूर्त में तिल पान, तिल दान और तिल स्नान करने को कहा। मकर संक्राति के चलते नदियों के पास भीड़ रही। लोग बस, ट्रैक्टर, चार पहिया वाहनों और निजी साधनों से पवित्र नदियों पर स्नान करने गए। उन्होंने तिल और खिचड़ी का दान भी किया। परंपरानुसार आसमान में पतंगबाजी भी हुई।
न्यू इंडिया फाउंडेशन एक पहल के सदस्यों ने सीपरी बाजार स्थित सरकारी वृद्धाश्रम जाकर बुजुर्गों के साथ मकर संक्राति मनाई। संगठन के संस्थापक अध्यक्ष मिथलेश बाजपेई और उपाध्यक्ष गौरव गुप्ता के निर्देशन में शिविर लगाकर बुजुर्गों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया तथा उन्हें फल, लड्डू, मूंगफली की गजक व साड़ी देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर दीप्ती विश्नोई, गीता सिंह, प्रीति तिवारी, प्रियंका त्रिवेदी, प्रियंका द्विवेदी, अवनीश वर्मा, ऋषभ राय उपस्थित रहे।
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जगदीश के इशारे पर नाचती हैं आसमान में पतंगें

झाँसी। पतंगबाजी केवल शौक ही नहीं बल्कि कला भी है। अच्छा पतंगबाज उसी को कहा जाता है जो पेंच लड़ाने में माहिर है। झाँसी के जगदीश प्रसाद इस कला में माहिर हैं। उन्हें पतंगबाजी का शौक जुनून से हद तक है। उनके पास पतंगों का अच्छा खासा कलेक्शन भी है।
कई पतंग प्रतियोगिताओं में पुरस्कार प्राप्त कर चुके खुशीपुरा निवासी जगदीश प्रसाद के पास एक लाख रुपए कीमत तक की पतंगो का कलेक्शन है। वह जब 12 साल के थे तब अपने चाचा को पतंग उड़ाते देखते थे। उन्हें देखकर जगदीश को भी पतंग उड़ाने का शौक हुआ। बाद में वह इस कला में इतने माहिर हो गए कि झाँसी के उस्ताद पतंगबाज माने जाने लगे। वह कहते हैं कि सन 2000 से वह बिसाती बाजार स्थित चमन उस्ताद की दुकान से पतंगों का कलेक्शन कर रहा हैं। 12 साल की उम्र से बुंदेलखंड की ओर से कई प्रतियोगिताओं में पतंगबाजी कर चुके हैं और चंदेरी, ललितपुर, जालौन, मथुरा, ग्वालियर, बरूआसागर सहित कई महोत्सव में हुई पतंग प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान भी प्राप्त किया है। हाल में ही ललितपुर में आए भाभीजी घर पर हैं के दारोगा हप्पू सिंह (शैलेंद्र त्रिपाठी) ने भी उन्हें सम्मानित किया। उनके पास इस समय एक लाख रुपए से ज्यादा की पतंगों का कलेक्शन हो गया है। वे कहते हैं कि पतंगों के कलेक्शन के लिए पतंग की मंडी गुजरात भी गया था और वहां से स्टाइलिस पतंग बनाना सीखकर आया। कुछ पतंगे ऐसी भी बनाई हैं, जो समाज को संदेश देने का काम भी करती है। उनमें से ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ भी है। वह अपने जीवन यापन के लिए इनवर्टर बनाने का काम करते हैं। वे कहते हैं कि पतंगों की डोर वह जरिया है जो पृथ्वी को स्वर्ग से मिलाती है। अगर पतंग उड़ाकर छोड़ दी जाए तो पतंग छोड़ने वाले का दुर्भाग्य आसमान में गुम हो जाएगा। कटी हुई पतंग जिसके घर में प्रवेश करती है उसके लिए यह शुभ माना जाता है।

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