झांसी जनपद में भी थीं चित्‍तौड़गढ़ की तरह एक अद्वितीय सुंदरी राजकुमारी पदमिनी

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झांसी। जायसी के अनुसार राजा गंधर्वसेन की सोलह हजार पद्मिनी रानियाँ थीं, जिनमें सर्वश्रेष्ठ रानी चंपावती पटरानी थींं। चंपावती के गर्भ से पदमिनी का जन्म हुआ था। यह चित्तौड़ के राजा रतन सिंह की रानी थीं। इनकी सुंदरता पर मोहित होकर अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया था। 8 माह के युद्ध के बाद भी अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ पर विजय प्राप्त नहीं कर सका तो लौट गया और दूसरी बार आक्रमण करके उस ने छल से राजा रतनसिंह को बंदी बनाया और उन्हे लौटाने की शर्त के रूप में पद्मावती को मांगा। तब पद्मावती की ओर से भी छल का सहारा लिया गया और गोरा-बादल की सहायता से अनेक वीरों के साथ वेश बदलकर पालकियों में पद्मावती की सखियों के रूप में जाकर राजा रतनसिंह को मुक्त कराया गया। परंतु इस छल का पता चलते ही अलाउद्दीन खिलजी ने प्रबल आक्रमण किया, जिसमें दिल्ली गये प्रायः सारे राजपूत योद्धा मारे गये। राजा रतन सिंह चित्तौड़ लौटे परंतु यहाँ आते ही उन्हें कुंभलनेर पर आक्रमण करना पड़ा और कुंभलनेर के शासक देवपाल के साथ युद्ध में देवपाल मारा गया परंतु राजा रतन सिंह भी अत्यधिक घायल होकर चित्तौड़ लौटे और स्वर्ग सिधार गये। उधर पुनः अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण हुआ। रानी पद्मावती अन्य सोलह सौ स्त्रियों के साथ जौहर करके भस्म हो गयी तथा किले का द्वार खोल कर लड़ते हुए सारे राजपूत योद्धा मारे गये। अलाउद्दीन खिलजी को राख के सिवा और कुछ नहीं मिला। यह चित्‍तौड़गढ़ का इतिहास झांसी में भी दोहराया गया था।(साभार गूगल विकिपीडिया)
इस सम्‍बंध में इतिहासकार डॉ. चित्रगुप्‍त ने बताया कि झांसी की पदमिनी- (विरहटा, चिरगांव) का इतिहास भी चित्‍तौड़ गढ़ की रानी पदमिनी के जैसा ही है। बात मध्यकालीन है जब झांसी और आसपास घने जंगल हुआ करते थे। इन्हीं जंगलों में एक रियासत थी- विरहटा। विरहटा वर्तमान में झांसी जिले के मोठ तहसील क्षेत्रांतर्गत चिरगांव से कुछ मील दूरी पर नदी बेतवा के किनारे स्थित है। मध्यकालीन मे यहाँ एक रियासत थी। यहाँ के राजा की पुत्री राजकुमारी पदमिनी बहुत सुन्दर थीं। राजकुमारी युद्ध कला में पारंगत थीं। तीर कमान और तलवार चलाना बचपन से सीख रखा था। पिता के राजकाज में हाथ बंटाकर प्रजा के दुःख सुख में साथ देतीं थी।


उस समय आतताई अपने साम्राज्य क्षेत्र को बढ़ाने में लगे थे। यहाँ से करीब 35 किमी दूरी पर ऐरच नगरी थी जो व्यापारिक और सांस्कृतिक रूप में समृद्ध थी। दुश्मन सरदार एक भारी सेना लेकर ऐरच को जीतने के लिए जा रहा था। रास्ते में उसे पदमिनी राजकुमारी के सौदर्य की सूचना मिली तो उसने विरहटा के राजा को संदेश भेजा कि यदि अपने राज्य की सलामती चाहते हो तो राजकुमारी को सखियों सहित उसके खेमे में भेज दो। बुंदेली राजा इस बात से कहां सहमत हो सकता था। उसने अपनी बेटी को यह बात बताई। राजकुमारी पदमिनी ने तलवार उठा ली, लेकिन विशाल आतताइयों की सेना के सामने विरहटा की छोटी सी सेना कहा टिक पाती। राजकुमारी ने अपनी सखियों के साथ तीर और तलवारों के प्रहारों से आततायियों की सेना के होश उङा दिए। पर तोपों के प्रहारों से विरहटा की गढी को तहस नहस कर दिया गया। राजकुमारी के सभी परिजन मारे गए। राजकुमारी ने जब देखा कि अब कोई नहीं बचा और दुश्मन से बचना मुश्किल है तो राजकुमारी ने अपनी सखियों के साथ वही बेतवा नदी के किनारे बने एक कुण्ड में कूदकर अपने सतीत्व की रक्षा की। उक्त विरहटा गांव में आज भी वो कुण्ड मौजूद है जिसमें कभी पानी नहीं सूखता। गढी के अवशेषों को अब एक मंदिर का रूप दे दिया है। बेतवा नदी से घिरा होने के चलते बहुत खूबसूरत प्राकृतिक वातावरण से भरा है। यह स्थान झांसी से 35 किमी की दूरी पर चिरगांव होते हुए पहुँच सकते हैं। इस कहानी को लेकर वृंदावन लाल वर्मा ने विराटा की पदमिनी नाम से एक उपन्यास भी लिखा है, उपन्यास पढकर इस स्थान पर जायेंगे तो और अधिक श्रद्धा भाव जगेगा।

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