झांसी का किला – हजारों तूफान झेलेे मिटा ना सका कोई इसकी हस्ती को

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झांसी। आजादी की प्रथम दीपशिखा झांसी की महारानी लक्ष्‍मीबाई की विजय गाथा के बारे में तो हम सब जानते हैं और बचपन से सुनते आ रहे हैं, लेकिन क्‍या आप 400 साल से भी ज्‍यादा पुराने हमारे ऐतिहासिक किले के बारे में जानते हैं। इस किले ने कितने तूफान झेले, कितने आक्रांताओं और अंग्रेज शासन के वार झेले, लेकिन इतने झंझावत झेलने के बाद भी यह आज भी तना खड़ा है और आगे सालों साल ऐसा ही रहेगा। हालांकि किले के इतिहास को लेकर कई विवादित चीजें भी हैं, जिसमें कई इतिहासकारों के अलग अलग मत हैं।
हमारे ऐतिहासिक किले के बारे में प्राचीन लेखकों की पुस्‍तकों और इण्‍टरनेट आदि सहित अन्‍य जानकारियों के मुताबिक समाजसेवी मुकुंद मेहरोत्रा ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि झांसी का ऐतिहासिक किला एक पहाड़ी पर जीर्णशीर्ण शिव मंदिर के स्थान पर बनाया गया था। ऐतिहासिक दुर्ग झाँसी की जनता का गर्व है। ऐतिहासिक और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी रहा दुर्ग 400 साल से भी ज्यादा समय से खड़ा है। तमाम परेशानियां और तूफान सब आए, पर कोई इसकी हस्ती को मिटा नहीं सका। प्राचीन काल में उक्‍त स्‍थान पर पहाड़ी पर एक खंडित शिव मंदिर का जीर्णोद्धार कर ओरछा के राजा ने सन 1613 में झांसी के किले को बनवाया था।


उन्‍होंने बताया कि 11वीं शताब्दी के आसपास झाँसी का नाम बलवंत नगर था, जिसमें चंदेल राजाओं का वर्चस्व था। उसके बाद यहां के बारे में सही जानकारी नहीं मिलती है। उसके बाद 17वीं शताब्दी शुरू होने के साथ ही यहां का महत्व राजाओं की समझ में आने लगा। यह क्षेत्र दो नदियों पहुज और बेतवा के कारण महत्वपूर्ण तो था, ही इसके अलावा यहां से सामरिक व व्यवसाय की दृष्टि से भी काफी फायदेमंद नजर आने लगा। यहां से दूसरे राज्यों व स्थानों पर आना जाना भी काफी आसान था। इसको देखते हुए ओरछा के राजा वीर सिंह जूदेव ने उक्‍त पहाड़ी पर 1613 में बरसों से खण्‍डित पड़े मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर किले का निर्माण कराया। किले का पूरा क्षेत्रफल 49 एकड़ है और पूरा किला 15 एकड़ में बना हुआ है।
इतिहासकारों के मतानुसार यह भव्य शिव मंदिर चंदेलकालीन या उससे भी पहले का बना हुआ था। बता दें कि उस दौरान जो भव्य मंदिर बनाए जाते थे। उनमें आने वाले चढ़ोत्‍तरी व खजाने आदि के कारण सुरक्षा और संरक्षा की दृष्टि से काफी मजबूत व सुरक्षित बनाया गया था। इसके बारे में कोलकाता पुरातत्व विभाग को एक बीजक प्राप्त हुआ था, जिसमें उक्‍त पहाड़ी पर बने शिव मंदिर का कुछ विवरण है। राजा वीर सिंह की 1627 में मृत्यु हो जाने के बाद उनके पुत्र जुझार सिंह ने राज्य संभाला। उसके बाद 16 जून को 1736 के बाद यहां मराठा राजाओं का कब्जा हो गया। 1742 में यह राज्य बाजीराव प्रथम के नेतृत्व में आया और उन्होंने झांसी के किले में प्रथम सूबेदार नारो शंकर की तैनाती की। नारोशंकर ने उक्‍त क्षेत्र का काफी विकास किया और किले में निर्माण कार्य कराए। इसमें बारादरी, उद्यान और शिव मंदिर का निर्माण कराया। उनके बाद विकास करते हुए व सुरक्षा को देखते हुए 10 गेट बनाए गए। इनमें खंडेराव गेट, दतिया गेट, उन्‍नाव गेट, झरना गेट, लक्ष्मी गेट, सागर गेट, ओरछा गेट, सैयर गेट और चांद दरवाजा था। इसके अलावा झरना गेट व सैयर गेट को बांटते हुए एक दीवार भी बनवाई गई, जिसमें आने जाने वालों के लिए रास्ते के लिए चार खिड़कियां बनवाई गई। इनको गणपतगीर की खिड़की, अलीगोल की खिड़की, सूजे खां की खिड़की और सागर खिड़की के नाम से जाना गया। झाँसी के महाराजा गंगाधर राव के शासन काल तक सब कुछ ठीक चलता रहा, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने रानी महल को अपना ठिकाना बना लिया। इस संबंध में श्री मेहरोत्रा ने बताया कि अंग्रेजों से हुए युद्ध में नारो शंकर द्वारा बनवाया हुआ शंकर मंदिर व अन्य स्थान टूट फूट गए, तब रानी ने नीचे कुएं के पास ही शिव मंदिर का निर्माण कराया और उस स्थान का नाम शंकरगढ़ रखा गया।

किले में अब भी हैं प्राचीन शिव मंदिर के अवशेष


मुकुन्‍द मेहरोत्रा बताते हैं कि किले में टूट-फूट होने की स्थिति में अधिकतर प्राचीन अवशेष निकलकर सामने आते हैं। इतनी सुरक्षा होने के बाद भी अधिकतर इन अवशेषों को गायब किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि किले में मुख्य द्वार से अंदर जाकर चढ़ाई चलकर गेट में प्रवेश करने पर यदि देखें तो उस द्वार में ही अलग-अलग निर्माण की झलक मिल जाएगी। साथ ही किले के गेट व दीवारों में उक्‍त प्राचीन अवशेषों को लगाकर दीवारें व गेट रिपेयर किए गए हैं।

यह स्‍थान किले में अपनी कहानी करते हैं बयां


गणेश मंदिर


भवानी शंकर तोप


कड़क बिजली तोप


गुलाम गौस खान व अन्य शहीदों की कब्रें


शिव मंदिर (शंकरगढ़)


फांसी ग्रह

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