
झाँसी। पूर्ण बहुुुुमत के बाद भी दूसरे राजनैतिक दलों की सरकार गिराकर अपनी सरकार बनाने का हुनर रखने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष के महानगर के सिपहसालार नगर निगम कार्यकारिणी चुनाव में पूरी तरह फेल हो गए। 25 मत होने के बावजूद सत्ताधारी दल भाजपा के महानगर के सिपहसालारों की रणनीति आधे सदस्य भी कार्यकारिण्ाी चुनाव में नहीं जिता सकी। इसका खामियाजा आने वाले उप सभापति के चुनाव में भाजपा को भ्ाुगतना पड़ सकता है। नगर निगम चुनाव में महापौर सहित 21 सभासद बने थे, जिसके बाद अब भाजपा को कार्यकारिणी चुनाव में भी झटका लगा है। एेेेेसे में उप सभापति का चुनाव दूर की कौड़़ी दिखता नजर आ रहा है।
उल्लखेनीय है कि दलगत स्थिति के अनुसार नगर निगम कार्यकारिणी के लिए होने वाले चुनाव में जीतकर आए महापौर और 60 सभासदों को अपने मताधिकार का प्रयोग करना था, जिसमें भाजपा 21 सभासदों के साथ सबसे बड़ा दल, बहुजन समाज पार्टी 11, कांग्रेस के 6, सपा के तीन और आप पार्टी के दो सभासद हैं। वहीं निर्दलीय सभासदों की संख्या 17 है। इसके अलावा चुनाव में पदेन सदस्यों के रुप में सदर विधायक, बबीना विधायक, क्षेत्रीय सांसद, राज्यसभा सांसद और एमएलसी भी शामिल थे। नगर निगम कार्यकारिणी का चुनाव बुधवार को हुआ। 60 सदस्यीय नगर निगम के लिए 12 कार्यकारिणी सदस्य चुने जाते हैं। इन्हीं सदस्यों के द्वारा पारित प्रस्ताव फाइनल माने जाते हैं और उप सभापति चुनाव में भी केवल वही मतदान कर पाते हैं। नगर निगम में भाजपा के 21 निर्वाचित सदस्य हैं, जबकि महापौर, सांसद व दो विधायक मिलाकर चार नामित सदस्य हैं। इस तरह इन 25 सदस्यों के सहारे भाजपा छह से सात कार्यकारिणी सदस्य जिताने की रणनीति बना रही थी। सुबह से ही एक स्थानीय होटल में महानगर अध्यक्ष प्रदीप सरावगी एवं महापौर के साथ अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी व सभासद रणनीति बनाते रहे, जिसके बाद भी पांच सदस्य लड़ाने से ज्यादा की रणनीति नहीं बन सकी। सुबह 10.30 से 11.30 बजे तक सदन प्रभारी आरपी सिंह की देखरेख में नामांकन प्रक्रिया चली। निर्वाचन अधिकारी समर सिंह के सामने भाजपा के अविनाश यादव, कांति छत्रपाल, दिनेश प्रताप सिंह, लखन कुशवाहा, विद्या प्रकाश दुबे, बसपा के जुगल किशोर व महेश गौतम, कांग्रेस के अब्दुल जाबिर व विकास खत्री, अाप पार्टी से अनिल सोनी, निर्दलीय दिनेश सिंह दीपू, रामकुमारी यादव एवं सुशीला दुबे सहित 13 सदस्यों ने नामांकन किए। 10.45 से 12.15 बजे तक नाम वापसी का समय निर्धारित था। तय समय खत्म होने तक नाम वापस न होने के कारण एक बजे से मतदान की तैयारियां शुरू की गई। इसी बीच करीब 12.55 बजे सुशीला दुबे ने नाम वापसी के लिए आवेदन किया। उनके मैदान से हटते ही निर्वाचन अधिकारी ने मैदान में बचे 12 प्रत्याशियों को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया। उन्हें जीत के प्रमाणपत्र भी दे दिए गए। उसके बाद निर्वाचित प्रत्याशियों को उनके समर्थकों ने फूल मालाएं पहनाकर मिठाई खिलाई और जश्न मनाया।
लगातार पार्षद रहीं सुशीला दुबे का टूटा सपना
अलग अलग दलों से लगातार पार्षद रहीं सुशीला दुबे का आखिर सपना टूट ही गया और वह उपसभापति की दौड़ तो दूर रही, कार्यकारिणी में भी अपना स्थान नहीं बना सकींं। नामांकन के दौरान कांग्रेस के सचेतक सुलेमान अहमद मंसूरी ने सपा का सहयोग करते हुए दिनेश सिंह दीपू को समर्थन दिया और कन्हैया कपूर उनके प्रस्तावक बने। ऐसे में प्रस्तावकों की संख्या पूर्ण ना होने के कारण उनको नामांकन करने के दौरान ही रणनीति समझ आ गई थी। इससे पूर्व 17 निर्दलीय के साथ बैठक कर उनको अपने पक्ष में करने का फार्मूला पूरी तरह फेल हो गया और उनका कार्यकारिणी में पहुंचने का सपना टूट गया।
नियम 14 ने कराया निर्विरोध निर्वाचन
नगर निकाय अधिनियम के नियम 14 में प्रावधान है कि यदि निर्धारित समय खत्म होने तक कोई प्रत्याशी नाम वापस नहीं लेता है और मतदान शुरू होने के पूर्व नाम वापसी का आवेदन किया जाता है तो रिटर्निंग ऑफीसर उसे स्वीकार कर सकता है। यह नियम उसी दशा में लागू होता है, जब नाम वापसी के बाद निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति बने। इसी अधिनियम के अनुसार रिटर्निंग ऑफीसर ने सुशीला दुबे का आवेदन स्वीकृत करते हुए मतदान की स्थिति टाल दी।
उप सभापति पद – नहीं मिलेगा अासानी से
भाजपा के अगर छह कार्यकारिणी सदस्य होते तो वह उप सभापति चुनाव में अपना प्रत्याशी जिताने की स्थिति में आ जाती। बता दें कि उपसभापति बनने के लिए कम से कम सात वोट की जरुरत होती है। भाजपा के मेयर मिलाकर छह वोट हो रहे हैं। उसे अगर कोई निर्दलीय कार्यकारिणी सदस्य सहयोग करे तभी वह अपना उप सभापति बना सकेगी। वहीं अब इस पद का भाव भी बढ़ चुका है। सूत्रों के अनुसार कार्यकारिणी चुनाव में उप सभापति पद को लेकर होने वाली खरीद फरोख्त अब बढ़ जाएगी और बोली भी ऊंची होगी।
अंदरूनी मनमुटाव से भाजपा को उठाना पड़ सकता है नुकसान
वर्तमान में उप सभापति पद को लेकर भाजपा पूरी कोशिश करने से परहेज नहीं करेगी, लेकिन एक ही केडर के दो पार्षदों के बीच यह लड़ाई सामने आएगी। लगातार जीतने के बावजूद एक को तबज्जो मिल रही है और दूसरा आगे बढ़ रहा है। इसका असर उप सभापति चुनाव पर पड़ने के आसार हैं, क्योंकि इनमें से एक पार्षद को उप सभापति बनाए जाने को लेकर अधिक मशक्कत की जा रही है।