समाज के जुड़ाव से ही संभव है जल संरक्षण – डीएम

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झांसी। झांसी के जिलाधिकारी रविंद्र कुमार ने कहा है कि नदियों से हम अपने आपको दूर नहीं रख सकते। जल जीवन मिशन में नदियों से ही पानी को लिया जाता है। उन्होंने अपील की कि नदियों के साथ काम करने वाले लोग समाज को भी अपने साथ जोड़े।
रविवार को परमार्थ समाज सेवी संस्थान की ओर से आयोजित छोटी नदियों के पुनर्जीवन विषय पर आयोजित राष्ट्रीय विमर्श कार्यशाला के उदघाटन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कार्यशालाएं बहुत होती हैं पर आपका ज्ञान तब तक सार्थक नही है जब तक उसे धरातल पर नही लाया जाता।
रानी लक्ष्मी बाई कृषि विवि में आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए कुलपति एके सिंह ने कहा 80 फीसदी गुणवत्ता युक्त पानी कृषि उपयोग में लाया जाता है। परमार्थ संस्था किसानों के साथ काम कर रही है, आगे से संस्था सीएएफआरआई, कृषि विज्ञान केंद्र और रानी लक्ष्मी बाई कृषि विवि को साथ लेकर काम करे।

जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने गांवों में जलनीति बनाने पर जोर देते हुए कहा कि इससे हम देश में बाढ़ एवं सुखाड़ की विभीषिका को कम कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि जल संरक्षण के काम में समाज का जुड़ाव जरूरी है। जल पुरुष ने अपने ऑनलाइन संबोधन में कहा कि करौली एवं चंबल में उन्होंने 1500 डकैतों को पानी बचाने के काम में लगाने का काम किया है। उन्होंने कहा कि पानी इतना महत्पूर्ण है कि जिस तरह बुखार को कम करने के लिए पानी की ही जरूरत होती है। उसी तरह मिट्टी की नमी के लिए बरसात की जरूरत होती है। कार्यशाला को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के महासचिव व पूर्व अपर सचिव जल शक्ति मंत्रालय भरत लाल ने ऑनलाइन संबोधित करते हुए कहा कि जल संरक्षण केवल सरकारी कर्मचारियों, सामाजिक संस्थाओं या किसी व्यक्ति विशेष की नही बल्कि समाज की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि 1991 में कुओं को रिचार्ज करने के लिए सौराष्ट्र में एक पहल प्रारम्भ की गई थी जिसमें किसान स्वयं के लिए चैकडैम बना सकते थे। जल जीवन मिशन के तहत 50 प्रतिशत घरों में नल कनेक्शन होने से 36 हज़ार बच्चों की जान बच गई है । उन्होंने कहा कि हर घर नल योजना के माध्यम से हर साल 4 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है। कार्यक्रम के उद्देश्य की जानकारी देते हुए परमार्थ संस्था के प्रमुख डॉ संजय सिंह ने कहा कि वर्तमान में भारत की 90 प्रतिशत नदियाँ विलुप्त होने की कगार पर है और बरसाती नालों में तब्दील हो गयी हैं। छोटी नदियों से मिलकर ही बड़ी नदियों का निर्माण हुआ है। इस कारण बड़ी नदियों का अस्तित्व भी संकट में है । इसलिए समय रहते छोटी नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए देश भर में किये जा रहे प्रयासों को बढ़ावा देना आवश्यक है। पद्मश्री बसंती देवी ने नदी के किनारे के समाज की महिलाओं की दुर्दशा बयां करते हुए बताया कि कैसे नदी किनारे की 5 महिलाओं ने आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने महिलाओं का मंगल दल बनाकर उनके अधिकारों एवं पानी को संरक्षित करने का जिम्मा उठाया और कोसी नदी को पुनर्जीवित किया। उन्होंने कहा कि छोटे छोटे जल स्रोतों तों से पानी जंगल में पहुंचता है, इसलिए जंगल को बचाना है तो इन्हें भी बचाना होगा। उन्होंने नेपाल, भूटान एवं बंग्लादेश मे वृक्षारोपण कर पानी को संरक्षित करने का काम किया है। कार्यशाला में केन बेतवा लिंक परियोजना प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी प्रशांत कुमार दीक्षित, इतिहास संकलन राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री संजय हर्ष मिश्र, चिपको आन्दोलन की सामाजिक कार्यकर्ता पदमश्री बसंती देवी, पदमश्री उमाशंकर पाण्डेय, प्रोफेसर राणा प्रताप सिंह डीन एवं पर्यावरण विज्ञान में प्रोफ़ेसर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ एवं डॉ स्नेहल डोंडे, सहित कार्यशाला में देश भर के 10 से अधिक राज्यों के प्रतिनिधियों ने सहभागिता की, जिसमें प्रमुख रूप से हिमालयन रिवर बेसिन की अध्यक्ष डॉ इंदिरा खुराना, वर्चुअल रूप से जल पुरुष राजेंद्र सिंह एवं जनरल सेक्रेटरी राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग एवं पूर्व अपर सचिव जलशक्ति मंत्रालय भरत लाल, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, वैज्ञानिक, जल सहेलियां एवं नदी घाटी संगठन के प्रतिनिधि उपस्थित रहे|

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