कभी जरुरत के लिए की थी अखबार की नौकरी

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वर्तमान गृहमंंत्री राजनाथ सिंह का इन्‍टरव्‍यू लेते हुए

झांसी। एक समय हुआ करता था जबकि अखबार की नौकरी इतनी आसान और सुविधाजनक नहीं हुआ करती थी। खतरों, धमकियों के साथ ही खबरों की खोज करनेे के लिए स्‍थान -स्‍थान पर पहुंचना एक चैैलेंज हुआ करता था। उस दौर में पारिवारिक सम्‍बंधों के चलते और आर्थिक जरुरत के लिए अखबाार में नौकरी से अपने कैरियर की शुरुआत करनेे वाले इस शख्‍स को खुद पता नहीं था कि वह एक दिन पत्रकारों के रहनुमा बन जाएंगे और अखबार का संचालन करेंगे। अपनेे जीवन केे विभिन्‍न पहलुओं को दैनिक भास्‍कर झांसी के महाप्रबंधक, वरिष्‍ठ पत्रकार रमेश तिवारी जी ने एशिया टाईम्‍स की सम्‍पादकीय टीम के वरिष्‍ठ सदस्‍य एवं पूर्व सम्‍पादक दैनिक भ्‍ाास्‍कर झांसी डॉ. हरिमोहन अग्रवाल के साथ शेयर किया।

स्‍व. श्री राधाकृष्‍ण तिवारी व श्रीमती कमला तिवारी के सुपुत्र रमेश तिवारी ने जब हाईस्‍कूल तक की शिक्षा को ही बहुत महत्‍व दिया जाता था, उस दौर में एमए राजनीतिक विज्ञान से किया हुआ था। उन्‍होंने झांसी में दैनिक भास्‍कर में 150 रुपए में 1971 में नौकरी शुरु की थी। उसके बाद उन्‍होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और समाचारों के साथ नए नए पत्रकार भी तैयार करते चले गए। श्री तिवारी ने बताया कि 1983 में पूर्व प्रधानमंत्री स्‍व. इंदिरा गांधी की पत्रकार वार्ता में प्रशासन ने प्रमुख अखबारों के पत्रकारों को आगे बिठाकर फालतू के सवाल न करने का प्रयास किया था, जिसके तहत पूछे गए कई सवालों के जबाव इंदिरा गांधी ने सिर्फ मुस्‍कुरा कर टाल दिए थे। उन्‍होंने बताया कि उस दौर में प्रशासन अक्‍सर स्‍थानीय पत्रकारों और अखबारों के प्रमुख लोगों से चर्चा कर एक्‍शन लिया करते थे, जिसके तहत 6 दिसम्‍बर 1992 में बाबरी मस्‍जिद ढहाए जाने के बाद लगे कर्फ्यू में भी प्रशासन ने सहयोग मांगा और ऐसे में उनको बिजली कटौती बंद करने का सुझाव दिया था। इससे प्रशासन को दंगा नियंत्रण करने में काफी मदद मिली थी। ऐसा ही आपातकाल की स्‍थिति में अखबारों के लिए एक बुरा समय आया था, जबकि हमको जो छापना होता था वह पहले प्रशासन द्वारा नियुक्‍त अधिकारी को दिखाना होता था।
वर्तमान में फर्जी पत्रकार नाम को लेकर उनका कहना हैै कि इसके लिए प्रशासन और पत्रकारों को मिलकर प्रयास करने होंगे। सबसे पहले तो पत्रकारों के संगठन के स्‍वरुप और कार्यशैली को सही करना होगा, जिससे कोई अच्‍छी पहल हो सके। पत्रकार चौथा स्‍तम्‍भ होता है और आए दिन वह संस्‍थाओं व नेताओं की तरह धरना प्रदर्शन करता रहेगा, तो इससे पत्रकारों का ही नाम खराब होता है। उनका कहना है कि वर्तमान में कई ऐसे लोग, जिनको लिखना पढ़ना नहीं आता है और वह खुद को पत्रकार कहने लगे है, तो यह जानकर बुरा लगता है। ऐसा नहीं है कि पहले ऐसे लोग नहीं थे, लेकिन उस समय भी इस पर नियंत्रण करना पड़ता था। उनका कहना है कि अखबार मालिकों का रवैया और अवसरवादी लोगों के पत्रकारिता से जुड़ाव के कारण पत्रकारों और पत्रकार संंगठनों की स्‍थिति दिन ब दिन और बिगड़ती जा रही है।
उल्‍लेखनीय है कि श्री तिवारी ने वर्तमान के कई प्रमुख पत्रकारों को समाचार बनाना सिखाया और वह आज अखबारों की तरह जानेमानेे पत्रकारों के रुप में लोगों के बीच अपनी पहचान बनाए हुए हैं।

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