नारी को नमन : परिवार की देखभाल के साथ करती हैं यह सभी समाजसेवा (भाग 4)

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जिंदगी के हर उतार चढ़ाव का सामना कर खुद को बनाया मजबूत

भीख नहीं देतीं, लोगों को आजीविका के लिए करती हैं प्रेरित

झांसी। लोग इस बात को भले ही साधारण तौर पर लें कि महिलाएं परिवार की देखभाल के साथ समाजसेवा का कार्य भी कर सकती हैं, लेकिन हकीकत यहीं है कि वर्तमान में महिला सशक्‍तिकरण की वाहक यह महिलाएं ही हैंं। इनके सेवाकार्यों को देखकर लोग इन पर उंगली तो उठा सकते हैं। ऐसे लोग इस कार्य में सहयोग करके देखें तो कार्य में आने वाली वह परेशानी समझ आएगी, जिनसे जूझना अब इनकी आदत सी हो गई है। ऐसा ही एक नाम है व्‍यापारी अशोक गुरबख्‍शानी की पत्‍नी श्रीमती शालिनी गुरबख्‍शानी का भी। इन्‍होंने अपने जीवन में काफी उतार चढ़ाव देखें हैं, लेकिन अपने पति के कंधे से कंधा मिलाकर चलते हुए इन्‍होंने हंसते हुए तकलीफों का सामना किया और खुद को मजबूत किया। परेशानी से जूझने के जज्‍बे ने इनको दूसरों के लिए प्रेरणा बनाया और अपने संगठन के साथियों को आगे बढ़ाया। दो बेटे हैं एक पढ़ाई के साथ अपना रेडीमेड गारमेण्‍टस का काम भी संभालता है, तो दूसरा बेटा अभी पढ़ रहा है।
स्‍नातक के साथ ही इनका प्‍यार परवान चढ़ता गया और भविष्‍य के सपनों को संजोने की आशा के साथ आपका विवाह अशोक गुरबख्‍शानी के साथ हो गया। विवाह के बाद उन्‍होंने अपनी छूटी हुई शिक्षा को पूरा किया। इसके लिए उनको ससुराल मेें बहुत प्‍यार और सहयोग मिला, लेकिन परिस्‍थितियों ने एक वक्‍त ऐसा भी दिखाया कि अपने बच्‍चे को एक पूरी रात दूध्‍ा के लिए बिलखते हुुए भी देखा। पर इन्‍होंने हार नहीं मानी और निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास किया और दूसरों को आगे बढ़ाया। दूसरों की मदद तो सभी करते हैं, पर समाजसेवा की शुरुआत इनके खुद के ही घर से हुई। इस सम्‍बंध में श्रीमती श्‍ाालिनी गुरबख्‍शानी बताती हैं कि उनके घर में एक बुजुर्ग कार्य करते थे, जिनके चार बच्‍चे थे। वह काम पर आते तो चारों बच्‍चों को साथ लेकर आते, जिसके लिए उनको मना किया जाता था। पर एक दिन जब उन्‍होंने अपनी परेशानी बताई कि दो लड़के हैं, जो खेलते रहते हैं। साथ में दो बेटियां भी हैं, जिनके साथ उनके घर के पास रहने वाले कुछ शरारती तत्‍व छेड़खानी करते हैं। ऐसे में श्रीमती गुरबख्‍शानी द्वारा कई जगह प्रयास किए गए, लेकिन उन बच्‍चियों के लिए कोई मदद नहीं मिल पाई। इस दौरान वह कुछ समाजसेवी संगठनों से जुड़ीं और उनके साथ प्रयास किया। साथ ही उस समय जिला प्रोबेशन अधिकारी से मिलकर बच्‍चियों की मदद के लिए प्रार्थना की। आज वह बच्‍चियां एक अनाथालय में रह रहीं हैं आैैैर एक अच्‍छे स्‍कूल में पढ़ रही हैं। उनके पिता जब चाहे उनसे मिलने जाते रहते हैं और उनको त्‍यौहार व विशेष मौकों पर घर लाते रहते हैं। उन्‍होंने बताया कि इस दौरान व्‍यापार मण्‍डल के अध्‍यक्ष संजय पटवारी द्वारा महिला व्‍यापार मण्‍डल से उनको जोड़ा गया और कुछ समय बाद वह इस संगठन की नगर अध्‍यक्ष भी बनीं, जोकि अभी भी हैं। समय समय पर उनका संगठन लोगों की मदद करता रहता है।
श्रीमती गुरबख्‍शानी का कहना है कि वह किसी को भ्‍ाीख नहीं देती है। वह उसको आजीविका के साधन उपलब्‍ध कराने में मदद करती हैं, जिससे एक दो वक्‍त नहीं उस व्‍यक्‍ति और उसके परिवार में दो वक्‍त चूल्‍हा जल सके व पेट भरता रहे। इसके अलावा वह सांझा परिवार नामक संगठन से भी जुड़ी हुई हैं, जिससे वह समाजसेवा के अलावा सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहती हैं। इस कार्य में उनके पति आैैैर बच्‍चों का पूरा सहयोग रहता है। उनका कहना है कि वह किसी परिस्‍थिति में मन खराब नहीं करतीं, बल्‍कि परेशानियों का सामना हंसते हुए करती हैं।

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