फसल अवशेषों के माध्यम से मशरूम की खेती कर किसान आत्म निर्भर बने : केके सिंह

** फसल अवशेषों को जलाए नहीं बल्कि आय का जरिया बनाएं **** फसल अवशेषों को जलाने से समस्या और उसका समाधान ** फसल अवशेषों का विभिन रूप में उपयोग के बारे में दी जानकारी ** फसल अवशेष खेत में जलाने पर मित्र कीट को होता है नुकसान

0
714

झांसी। भारतीय आबादी का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। इसमें सालाना लगभग 400 से 700 मिलियन टन से अधिक फसलों का अवशेष होते हैं। फसल अवशेषों को ज्यादातर पशु चारे के रूप में उपयोग किया जाता है तथा इसके साथ-साथ यह घरेलू और औद्योगिक ईंधन का भी स्रोत है। लेकिन कुछ वर्षों से मानव श्रम की कमी, परंपरागत तरीकों से फसल अवशेषों को हटाने में कमी और फसलों की कटाई के लिए नवीनतम कृषि यन्त्रों एवं मशीनों के उपयोग के कारण फसल अवशेषों को जलाने की समस्या बढ़ रही है। उक्‍त जानकारी देते हुए उप कृषि निदेशक के.के.सिंह ने बताया।
उन्होंने बताया कि जनपद में गेहूं, मक्का और बाजरा की फसलों के अवशेषों का एक बड़ा हिस्सा मुख्य रूप से आगामी फसल की बुवाई के लिए खेत को साफ करने के उद्देश्य से खेत में ही जला दिया जाता है जो कि बड़ी समस्या बन गया है। फसल अवशेषों को जलाना पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। दूसरी ओर यह ग्लोबल वार्मिंग को भी बढ़ावा दे रहा है. जिसके कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन बढ़ रहा है. इसके परिणामस्वरूप गर्मी की अवधि साल दर साल बढ़ रही है जो सारे विश्व के लिए एक चिंता का विषय है। इसके अलावा इसका विपरीत प्रभाव मिट्टी के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है जिसके कारण मिट्टी में उपलब्ध नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और सल्फर जैसे पोषक तत्वों की हानि होती है. मिट्टी के पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए किसान की उत्पादन लागत में भी वृद्धि हुई है।
इधर कुछ दिनों से हमारी कृषि को प्रतिकूल जलवायु का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि सूखा और जलभराव के कारण फसलों की उत्पादकता में कमी, बीमारी के उपद्रव जैसी विभिन्न समस्याएं किसानों की आय में असुरक्षा का कारण बन कर सामने खड़ी हैं। फसल अवशेषों का जलाना और चारे की अपर्याप्तता दोनों मुद्दे कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़े हुए भी है. जिसकी वजह से जनपद में चारे की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उत्पादक और लाभप्रद तरीके से अवशेषों का प्रबंधन करने के लिए संरक्षण कृषि एक अच्छा अवसर प्रदान करती है। संरक्षण कृषि-आधारित प्रौद्योगिकियों को अपनाने के साथ इन अवशेषों का उपयोग मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार, फसल उत्पादकता में वृद्धि, प्रदूषण घटाने के लिए किया जा सकता है।
उप कृषि निदेशक श्री के.के.सिंह ने फसल अवशेषों को जलाने के मुख्य कारणों के बारे में बताया कि श्रमिको की अनुपलब्धता, फसल अवशेषों को संभालने के लिए कटाई के दौरान उच्च मजदूरी, आगामी फसल की बुवाई के लिए समय की कमी, किसानों में पर्यावरण के बारे में जागरूकता की कमी, विशेष रूप से कटाई के उपयोग में मशीनीकरण का उपयोग बढ़ाना, पशुधन की संख्या घटना, खेत में फसल अवशेष कंपोस्टिंग का लंबी अवधि लेना, आर्थिक रूप से व्यावहारिक वैकल्पिक समाधान की अनुपलब्धता, फसल अवशेष (भूसे) के लिए एक बड़ी परिवहन लागत, भूसे के लिए भंडारण सुविधा की कमी, चावल फसलों के भूसे का कम पौष्टिक मूल्य, फसल अवशेष के लिए बाजार की कमी आदि के कारण फसल अवशेषों को जलाना पड़ता है। उन्होंने फसल अवशेषों का विभिन रूप में उपयोग के बारे में बताया कि फसल अवशेषों का उपयोग पशु चारा, कंपोस्टिंग, बिजली उत्पादन, जैव ईंधन उत्पादन और मशरूम की खेती के लिए किया जा सकता है. इसके अलावा कई अन्य कार्यों जैसे छप्पर,चटाई और खिलौना बनाने में भी इसका प्रयोग सदियों से हो रहा है। साथ ही पशुओं के चारे के सम्बन्ध में अवगत कराया भारत में फसल अवशेष पारंपरिक रूप से पशु चारे के रूप में उपयोग किए जाते हैं। हालांकि फसल अवशेष अप्रत्याशित और पाचन में कम होने के कारण पशुधन के लिए एकमात्र राशन नहीं बना सकते हैं। फसल अवशेषों में कम घनत्व वाले रेशेदार पदार्थ होते हैं तथा इनमें नाइट्रोजन कम, घुलनशील कार्बोहाइड्रेट, खनिज और विटामिन अलग-अलग तथा कम मात्रा में होते हैं। जानवरों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अवशेषों को यूरिया और गुड़ के साथ प्रसंस्करण की आवश्यकता होती है। खाद बनाने के लिए परंपरागत रूप से खाद तैयार करने के लिए फसल अवशेषों का उपयोग होता हैं। इसके लिए फसल अवशेषों का उपयोग जानवरों के बिस्तर के रूप में किया जाता है और फिर गोबर के गड्ढे में ढेर कर दिया जाता है। इस भूसे के प्रत्येक किलोग्राम में लगभग 2-3 किलोग्राम मूत्र अवशोषित होता है जो इसे नत्रजन के साथ समृद्ध करता है। एक हेक्टेयर भूमि से चावल की फसल के अवशेष पोषक तत्वों के रूप में लगभग 3 टन खाद के रूप में पोषक तत्वों के साथ समृद्ध होते हैं, जिसका उपयोग फसल उत्पादकता में वृद्धि के साथ साथ कृषि की लागत को कम किया जा सकता है। उपनिदेशक कृषि ने बताया कि इसके अलावा इसे मल्चर की सहायता से मिट्टी में मिलाकर भी खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। बायो-मेथनेशन प्रक्रिया का उपयोग उच्च गुणवत्ता वाली ईंधन गैस बनाने के लिए किया जा सकता है। इसके साथ इससे उच्च गुणवत्ता वाली खाद भी प्राप्त होती है जिसे खेतों में डालने के लिए उपयोग किया जा सकता है। बायोमास जैसे चावल का भूसा, पशुओं के गोबर को बायोगैस टैंक में डालकर मीथेन गैस का उत्पादन किया जाता है, जोकि रसोईघर के लिए एक अच्छा व कम लागत वाला ईंधन है। इसके अतिरिक्त जनपद के गो-शालाओं पराली अथवा अपनी फसलों का अवशेष दान करके गोबर की खाद प्राप्त कर सकते हैं। दो ट्राली पराली या फसल अवशेष के बदले एक ट्राली गोबर की खाद किसान भाई ला सकतें है। यदि गो-शालाओं में पर्याप्त मात्रा में चारा उपलब्ध रहेगा तो पशु बाहर आकर फसलों को भी नुकसान नही पहुंचा पायेंगे।

LEAVE A REPLY