पराली प्रबंधन हेतु मशरूम उत्पादन कर किसान व महिलाएं लाभ के साथ दोगुनी करें आय

** किसानों को दें जानकारी, मशरूम की खेती में करें पराली का उपयोग ** कृषि विभाग द्वारा पराली जलाने से रोकने हेतु महिला समूहों को भी किया जाए जागरूक ** आय दोगुनी करने में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका

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झांसी। कृषि भवन स्थित उप संभागीय सभागार में इन-सीटू योजना अंतर्गत आयोजित पराली प्रबंधन में “मशरूम उत्पादन” की भूमिका एवं प्रभावी नियंत्रण हेतु एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम उप कृषि निदेशक महेंद्र पाल सिंह की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। गोष्ठी व प्रशिक्षण कार्यक्रम में पराली जलाने से होने वाले दुष्प्रभाव एवं प्रभावी नियंत्रण विषय पर महत्वपूर्ण जानकारी साक्षा करते हुए जानकारी को क्षेत्र की अन्य महिलाओं/किसानों को भी दिए जाने के निर्देश दिए ताकि गांव का पर्यावरण दूषित ना हो और आय में बढ़ोतरी हो।
उप कृषि निदेशक महेंद्र पाल सिंह ने कहा कि आज के प्रशिक्षण कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मशरूम उत्पादन व पराली न जलाने से संबंधित होने के साथ-साथ किसानों की आय में बढ़ोतरी करना है। उन्होंने कहा कि पराली के माध्यम से किसानों की आय बढ़ायी जाने की उद्देश्य से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को भी इस कार्यक्रम में जोड़ा जाए। उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे अधिकारी व कर्मचारियों से आव्हान किया कि महिला समूह की महिलाएं सदस्यों को प्रेरित किया जाए। उन्होंने बताया कि किसानी और खेती में महिलाओं की सहभागिता अधिक है इसलिए महिलाओं पर अधिक फोकस किया जाए। कृषि भवन के उप संभागीय सभागार में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में जिला कृषि अधिकारी श्री के के सिंह द्वारा कुपोषण की रोकथाम हेतु हरी सब्जियां व फलों के बारे में जानकारी दी गई जिनका प्रभाव हमारे पोषण पर पड़ता है। उन्होंने इसके अतिरिक्त बताया कि जो लोग अपनी खेतों में पराली जलाते हैं,वह ना जलाएं क्योंकि इससे मिट्टी की उर्वरकता कम होती है व मिट्टी ऊसर हो जाती है,जिससे फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पराली जलाने से हमारा पर्यावरण दूषित होता है जिसका प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। उन्होंने गोष्ठी में फसल अवशेष अथवा पराली जलाने से होने वाले नुकसान एवं इसके उचित प्रबंधन से होने वाले लाभों को समूह की महिलाओं को विस्तार से बताया। उन्होंने सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा वेस्ट डीकम्पोजर के प्रयोग को बढ़ावा दिये जाने पर विशेष बल दिया। उन्होंने समूह की महिलाओं को फसल अवशेष के उचित प्रबंधन हेतु इन-सीटू योजनान्तगर्त नव विकसित क़ृषि यंत्रों यथा सुपर स्ट्रा मैनेजमेनट सिस्टम (सुपर एस0एम0एस0), हैप्पीसीडर, सुपर सीडर, जीरो टिल सीड कम फ़र्टिलाइज़र ड्रिल, श्रब मास्टर, पेडी स्ट्राचार, श्रेडर, मल्चर, रोटरी स्लेार, हाइड्रोलिक रिवसेर्बल, एम0बी0प्लाऊ, बेलिंग मीन, क्राप रीपर की जानकारी देते हुये विभाग द्वारा अनुमन्य अनुदान से भी परिचित कराया और इन सभी का लाभ लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने शासन की मंशा के अनुरूप धान का पुवाल ग्राम सभा द्वारा अपने खर्च पर निराश्रित गोवंश स्थल तक भेजे जाने की प्रक्रिया की भी जानकारी दी।
के के सिंह द्वारा बताया गया कि पराली को जलाने से रोकने हेतु जनपद के सभी कम्बाईन हार्वेस्टर में सुपर स्ट्राॅ मैनेजमेन्ट सिस्टम लगाया जाना अनिवार्य कर दिया गया है। एस0एम0एस0 के बगैर जो कम्बाईन कटाई करते हुए पायी जायेगी, उसके मालिक के विरूद्ध एनजीटी की गाईडलाइन के अनुसार सुसंगत धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कराते हुए कम्बाईन सीज कर दी जायेगी तथा अथर्दण्ड भी लगाया जायेगा। इसके निगरानी हेतु जनपद के सभी कम्बाइन पर जिलाधिकारी के द्वारा कमर्चारियों की ड्यूटी भी लगा दी गयी है तथा जागरूकता कायर्क्रम प्रत्येक ग्राम/ न्याय पंचायत कार्यक्रम आयोजित कराए जा रहे हैं। उन्होंने बताया गया कि कृषक फसल अवशेष को कम्पोस्ट में परिवतिर्त किये जाने हेतु निशुल्क डीकम्पोजर प्राप्त कर इसके प्रयोग की विधि कृषि विभाग के कार्मिको द्वारा प्राप्त करते हुए इस कार्य में आगे आने का सुझाव दिया। उक्त के अतिरिक्त सोने महिलाओं को बताया कि विकास खण्ड स्तर पर सभी गांव में पराली प्रबंधन एवं पराली को आग ना लगाने संबंधित जागरूकता गोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है। उप संभागीय सभागार में आयोजित एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में विषय वस्तु विशेषज्ञ दीपक कुशवाहा द्वारा मशरूम उत्पादन हेतु सभी महिला समूह की सहभागिता पर जोर देते हुए कहा कि मशरूम के अंदर विभिन्न पोषक तत्व उपस्थित रहते हैं,जिसमें विटामिन,प्रोटीन व अन्य तत्व शामिल हैं। जिनके नियमित उपयोग से हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा,उन्होंने बताया कि बहुत कम लागत में मशरूम का उत्पादन अपने घरों में किया जा सकता है। अतः आप सभी ज्यादा से ज्यादा संख्या में क्षेत्र की महिलाओं को प्रेरित करें ताकि वह मशरूम उत्पादन करें और उसका उपभोग करें। उन्होंने मशरूम उत्पादन की विधि के बारे में बताया कि मशरूम में एक अलग स्वाद और समृद्ध प्रोटीन के साथ पोटेशियम, फास्फोरस, सेलेनियम, नियासिन आदि कई महत्वपूर्ण योगिक होते हैं जिसकी उत्पादन लागत कम होने के साथ लगभग 45 दिनों में इसकी फसल तैयार हो जाती है। उन्होंने कहा कि मशरूम बाहरी और आंतरिक दोनों स्थितियों में अच्छी तरह से विकसित(उत्पादन)हो सकता है, बाहरी खेती में बारिश,हवा या उच्च तापमान से खेती प्रभावित हो सकती है तथा उपज को कम कर सकती है परंतु मशरूम की प्रजातियों के साथ यह स्थिति नहीं है। कृषि भवन के उप संभागीय सभागार में आयोजित कार्यक्रम में एसडीओ मऊरानीपुर श्रीमती डिंपल कैन, विनय मोघे एस0एम0एस0, विषय वस्तु विशेषज्ञ सुश्री अल्पना बाजपेई सहित अन्य विभागीय अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे।

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