कांग्रेस का प्लान: भाजपा को उसके गढ़ में ही दी जाये पटखनी

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झांसी। यूं तो पूरा उत्तर प्रदेश दशकों से भारतीय जनता पार्टी का गढ़ बना हुआ है। पिछले तीन दशकों पर नजर डाली जाये तो देखा जा सकता है कि उथल-पुथल की राजनीति के दौर में यहां के मतदाताओं ने अधिकांशतः भाजपा पर ही भरोसा जताया है। यूपी का ही वह हिस्सा जिसे बुन्देलखण्ड के नाम से जाना जाता है, वहां वर्तमान में भाजपा का ही वर्चस्व है। पिछले आम चुनावों के परिणामों को देखा जाये तो बुन्देलखण्ड की चारों लोकसभा सीटों पर भाजपा की ही कब्जा था। वर्ष 2017 में हुये विधानसभा चुनावों में भी पार्टी ने सभी 19 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। यह बुन्देलखण्ड आज पूरी तरह भाजपा का गढ़ माना जा रहा है। वर्तमान में चल रहे लोकसभा चुनाव में जिस तरह भारतीय जनता पार्टी को मात देने के लिये गठबंधन नामक हथियार को धार देने में विरोधी दल जुटे हुये हैं। उससे पता चलता है कि भाजपा को उसके ही गढ़ में घेरने की तैयारी की जा चुकी है। प्रदेश में सपा-बसपा के बीच हुये गठबंधन के बाद कांग्रेस ने जिस तरह से जन अधिकार पार्टी, महान दल से चुनावी गठबंधन किया है। उससे लोग चैंक उठे हैं। पूरे प्रदेश के साथ बुन्देलों का भी चैंकना स्वभाविक था। बुन्देले इस वजह से चकित रहे कि दौर कांग्रेस का चाहे कितना भी खराब रहा हो लेकिन झांसी ललितपुर संसदीय सीट पर अपवादों को छोड़कर अधिकांश चुनावों में सीधी लड़ाई कांग्रेस से रही है। आज भी अपने अस्तित्व की तलाश में संघर्ष कर रही कांग्रेस पार्टी को भाजपा कतई हल्के में नहीं लेती है, भले ही वह ऊपरी तौर पर कांग्रेस को लड़ाई से बाहर बताती रहे।
बात चल रही है कांग्रेस द्वारा जन अधिकार पार्टी व महान दल के साथ गठबंधन करने से होने वाले नफा-नुकसान की और इसकी की कांग्रेस ने आखिर झांसी जैसी महत्वपूर्ण संसदीय सीट जन अधिकार पार्टी को तोहफे में क्यों दे दी। जबकि, इस सीट से दावेदारी करने वालों में पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य, राजेन्द्र सिंह यादव, राहुल रिछारिया, सुधांशु त्रिपाठी, अरविन्द वशिष्ठ, चन्द्रशेखर तिवारी, जैसे कद्दावर कांग्रेसियों के नाम थे। कांग्रेस की इस रणनीति को समझने के लिये समय को थोड़ा पीछे ले चलते हैं। नब्बे के दशक का अंतिम दौर….यह वह दौर था जिस समय आज पूरे देश में अधिकतर राज्यों के साथ केन्द्र में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी अपने वजूद को फैलाने में जुटी हुई थी। उस दौर में भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी वीपी सिंह की केन्द्र में सरकार बनवाने के बाद राम मन्दिर मुद्दे को हवा देकर पार्टी को मजबूती देने के कार्य में जुटे हुये थे। इसके लिये आडवाणी ने राम रथयात्रा निकाल कर पूरे देश में एक गरम माहौल पैदा कर दिया था। राम मन्दिर का मुद्दा इसी रथयात्रा के माध्यम से भाजपा को संजीवनी प्रदान कर गया। इसके बाद वर्ष 1989 के आम लोकसभा चुनाव में राजेन्द्र अग्निहोत्री ने पहली बार भारतीय जनता पार्टी को बुन्देलखण्ड की महत्वपूर्ण झांसी संसदीय क्षेत्र में परचम फैलाने का मौका दे दिया। इसके बाद के बुन्देलखण्ड के हर लोकसभा चुनाव में भाजपा ने ही जीत हासिल की सिवाय 1999 व 2004, 2009 में हुये लोकसभा चुनाव को छोड़कर। वर्तमान में भी यह सीट भाजपा के पास ही है और फायर ब्राण्ड नेता उमा भारती को यहां से सांसद होने का गौरव प्राप्त है। लगातार जीत हासिल करने के कारण ही अब यह सीट परम्परागत रूप से भाजपा की मानी जाने लगी है। पहले यह तमगा कांग्रेस के पास हुआ करता था। अब सीधे आते हैं वर्तमान लोकसभा चुनावों पर। भाजपा को रोकने के लिये प्रदेश में सपा-बसपा के बीच गठबंधन हुआ है। इन दोनों दलों की परफाॅर्मेन्स पर नजर डाली जाये तो पता चलता है कि पिछले कुछ चुनावों से यह दल भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। सपा को एक बार झांसी से जीत हासिल करने का गौरव प्राप्त है और बसपा हर चुनाव में अपने को मजबूत करती चली आ रही है। कांग्रेस को संजीवनी देने के लिये प्रियंका का सक्रिय राजनीति में आना ही इस बात के लिये काफी था कि अब यूपी की राजनीति में कई उथल पुथल की घटनायें होंगी। क्योंकि अभी तक प्रियंका ने जिस तरह की रणनीति अपनाई है वह इस ओर इशारा करती है कि कांग्रेस भले ही न जीते लेकिन वह भाजपा को नहीं जीतने के लिये पूरी दम लगा देगी। इसके साथ ही प्रियंका यह भी नहीं चाहती हैं कि कांग्रेस ही सपा-बसपा गठबंधन के हारने का कारण बने। प्रियंका की इसी रणनीति के तहत कांग्रेस एक तरह से उन सीटों पर गठबंधन को वाॅकओवर दे रही है जहां से उनकी जीत की संभावना है। इसके अलावा उन सीटों पर जहां कांग्रेस के कारण गठबंधन हार सकता है वहां से कमजोर अथवा उस दल को मौका देने की तैयारी की जा रही है जो गठबंधन का कम और भाजपा का नुकसान ज्यादा करे। जन अधिकार पार्टी, महान दल और अपना दल कृष्णा गुट से हुआ समझौता भी इसी रणनीति को उजागर करता है। वर्ष 2014 में हुये लोकसभा चुनाव में उमा भारती भाजपा को 575889 तथा दूसरे स्थान पर रहे चंद्रपाल सिंह यादव सपा को 3,85,422 मत प्राप्त हुये थे। तीसरे स्थान पर बसपा रही जिनकी प्रत्याशी अनुराधा शर्मा को 213792 मत प्राप्त हुये थे। यह वह चुनाव था जिसमें प्रधानमंत्री मोदी का मैजिक लोगों के सिर पर चढ़कर बोला था। सपा बसपा को पिछले चुनाव में प्राप्त मतों का योग उमा भारती को मिले मतों से अधिक होता है। आंकड़ों के इस आधार पर सपा-बसपा गठबंधन भाजपा पर भारी प्रतीत दिखता है। लेकिन जातिगत आंकड़ों को देखा जाये तो कुशवाहा समाज झांसी सहित पूरे बुन्देलखण्ड में काफी प्रभाव दिखता है। वर्तमान में कुशवाहा समाज में एकजुटता अन्य जातियों की अपेक्षा कहीं अधिक है। कुशवाहा समाज की एकता पिछले विधानसभा चुनावों में कई बार देखने को मिली है। हालांकि आज के दौर में कुशवाहा समाज को भाजपा के समर्थक के रूप में पहचाना जाता है। जिस जन अधिकार पार्टी को कांग्रेस ने झांसी की सीट तोहफे के रूप में दी है, उसके मुखिया बाबूसिंह कुशवाहा हैं जो कि एक समय में बसपा सुप्रीमो मायावती के खासमखास माने जाते थे और पूरे प्रदेश में उनकी तूती बोलती थी। इसके अलावा बुन्देलखण्ड के कुशवाहा समाज में उनको काफी इज्जत से देखा जाता है। इसकी बानगी उस दौर में दिखी थी जब बसपा से निकाले जाने के बाद उनकों खनन घोटाले में जेल भेजा गया। उस दौर में कुशवाहा समाज चट्टान की तरह उनके साथ डटा रहा। बुन्देलखण्ड की राजनीति के जानकारों को कहना है कि कांग्रेस का यह तीर एक साथ कई निशानों को साध रहा है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि यदि बाबूसिंह कुशवाहा स्वयं यहां से मैदान में उतरते हैं तो चुनाव काफी रोचक होगा। क्योंकि कुशवाहा समाज का एक बड़ा वोट बैंक स्वतः ही उनकी ओर मुड़ जायेगा। यदि वह स्वयं नहीं उतरते हैं तो भी वह अपनी समाज के कुछ हजार वोटों को भी अपने प्रत्याशी के पक्ष में डलवा लेंगे। जो भी वोट जन अधिकार पार्टी को मिलेगा प्रत्यक्ष रूप में वह भाजपा का ही होगा। आंकड़ों के लिहाज से देखा जाये तो कांग्रेस ने छोटे दलों के साथ गठबंधन का जो दांव खेला है, वह इस धारणा को मजबूत कर रहा है कि कांग्रेस जीतने के लिये नहीं बल्कि भाजपा को उनके ही गढ़ माने जाने वाले इलाकों में पटखनी देने का इरादा रख रही है और सपा-बसपा गठबंधन को ही अप्रत्यक्ष रूप से मजबूत करने में जुटी हुई है।

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